शेख शकील@खंडवा। मध्यप्रदेश के खंडवा जिला न्यायालय में आज एक अनोखा फैसला आया जिसमें कुदरत के कानून को आधार मान कर न्यायाधीश ने फैसला सुनाया।
मामला बकरा चोरी का है जिसमें दो दावेदारों ने अपना हक जताया था। मामला थाने होंते हुऐं न्यायालय पहुचा जहा न्यायाधीश ने दोनो दावेदारो से बकरे की माँ को न्यायालय बुलाया। और निर्देष दिये की दोनो माताओं को बकरे से दूर रखा जाऐं, बकरा जिस माँ के पास जाऐंगा। उसके असली मालिक की पहचान हो जाएगी। आखिर हुआ भी वही बकरा छुटते ही अपनी असल माँ के पास जा पहुचा और जिस मालिक के ऊपर बकरा चोरी का इल्जाम था वही उसका असली मालिक निकला|फैसला न्यायाधीश गंगाचरण दुबे ने सुनाया|
करीब दो दिन पहले अकबर ने गांव तलवड़ीया के गजराज से 3700 रूपये में बकरा खरीदा था। उसी दिन दोपहर को अकबर इस बकरे को सिंगोट बाजार में बेचने के लिये ले गया था। बाजार में विनोद बारेला ने अकबर पर आरोप लगाया की यह बकरा उसका है। जो चार दिन पूर्व गुम हो गया था, विनोद ने पिपलोद थाने में अकबर के खिलाफ चोरी की रिपोर्ट दर्ज कराई। पुलिस नें अकबर और गजराज की एक न सुनी और हवालात में डाल दिया।
अकबर के वकील मोहन गंगराड़े ने तेज़ न्यूज़ को बताया कि मामला जब न्यायालय में आया तो न्यायाधीश के सामने बकरे के असली मालिक की पहचान करना मुश्किल हो गया क्योकि दोनो के बकरे का रंग काला था। और गवाह भी दोनो तरफ से मजबूत थे। न्यायाधीश गंगाचरण दुबे ने दोनो मालिको से बकरे की माताओं को कोर्ट में बुलवाया और फैसला दे दिया। बकरे को दोनो माताओं से दूर रखा जब 200 लोगो की भीड़ के सामने उसे छोड़ा तो वह अपनी मूल माँ के पास पहुँच गया।
अकबर ने बताया कि दरअसल विनोद बारेला का बकरा भी 4 दिन पहले ही चोरी गया था। उसकी शिकायत पर अकबर और गजराज के खिलाफ चोरी का मामला दर्ज हुआ था। यदि कुदरत अपना फैसला नही सुनाती तो दोनो बेगुनाहो को चोरी के जुर्म में 3 साल तक की सजा हो सकती थी। अब वह खुश है की बकरे ने उन्हे बचा लिया। कभी-कभी कुछ फैसले ऐसे भी होते है जिनका निराकरण प्रकृति खुद निकाल लेती है। ऐसे फैसले न्यायालय की चार दिवारी में नही दिये जा सकते।