
भोपाल/रायसेन। गोरखपुर-देवरी से चैनपुर-बाड़ी तक करीब 80 किमी लंबी और 14 से 15 फीट चौड़ी प्राचीन दीवार निकली है। विंध्याचल पर्वत के ऊपर से निकली यह दीवार आज भी लोगों के लिए रहस्य बनी हुई है।
दीवार के बारे में बताया जाता है कि इसका निर्माण परमार कालीन राजाओं ने करवाया होगा। दीवार के बनाने का उददेश्य परमार राजाओं द्वारा अपने राज्य की सीमा को सुरक्षित रखना माना जा रहा है। यह तथ्य पुरातत्वविदों और प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा दीवार का जायजा लेने के बाद सामने आए हैं। इस दीवार का फिर से 15 मार्च से सर्वेक्षण कार्य प्रारंभ हो रहा है।
सैकड़ों गांवों के बीच से गुजरती है यह दीवार
रायसेन जिला मुख्यालय से 140 किमी दूर स्थित ग्राम गोरखपुर-देवरी से इस प्राचीन दीवार की शुरुआत हुई है, जो सैकड़ों गावों के बीच से होकर बाड़ी के चौकीगढ़ किले तक पहुंची है। जयपुर-जबलपुर नेशनल हाईवे क्रमांक-12 से लगे ग्राम गोरखपुर से बाड़ी की दूरी 80 किमी है, लेकिन प्राचीन दीवार विंध्याचल पर्वत के ऊपर से तो कहीं पर गांवों के आसपास से निकली है। इस लिहाज से इस दीवार की लंबाई कुछ ज्यादा भी हो सकती है, लेकिन कई स्थानों पर दीवार को तोड़ भी दिया गया है। टूटी दीवार के अवशेष गांवों के आसपास दिखाई देते हैं। जहां पर दीवार में खेप दिखाई देता है, तो वहां पर लगता है कि ग्रामीणों ने इस दीवार के पत्थर निकाल लिए हैं और उसका उपयोग अपने निजी कार्यों के लिए कर लिया है। इस कारण यह प्राचीन दीवार कई स्थानों पर टूटी हुई दिखाई देती है।
पुरातत्वविदों की टीम ने देखी प्राचीन दीवार
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के सेवानिवृत्त अधीक्षण पुरातत्वविद् डॉ. नारायण व्यास, भारतीय इतिहास संकलन योजना के प्रांतीय संगठन मंत्री सत्यनारायण शर्मा, जिला पुरातत्व संघ से अतिरिक्त कलेक्टर गजेंद्र सिंह नागेश, जिला समिति के अध्यक्ष राजीव चौबे, जेपी मुदगल और विनोद तिवारी ने 29 दिसंबर को इस प्राचीन दीवार का अवलोकन किया था और उसके बारे में कई तथ्य जुटाए। इस दौरान गोरखपुर के राज घराने से जुड़े अमरजीत सिंह राज, गांव के हनुमान मंदिर के महंत सुखदेव पाराशर, शिवकुमार पाराशर, शिक्षक उमेश पाराशर, मोहनलाल चौरसिया, राघवेन्द्र खरे, सरपंच पति अजय पाराशर सहित अन्य ग्रामीणों ने दीवार के बारे में दल को कई जानकारियां उपलब्ध कराईं।
चीन के बाद हो सकती दूसरी लंबी दीवार
गोरखपुर-देवरी से चैनपुर-बाड़ी तक निकली यह दीवार चीन के बाद दूसरी लंबी दीवार हो सकती है। यह तथ्य भी पुरातत्वविदों द्वारा खोजने का प्रयास किया जा रहा है। उनका मानना है कि जिले में स्थित में यह दीवार काफी लंबे क्षेत्र तक फैली हुई है। ये दीवार को बड़े-बड़े पत्थरों का उपयोग कर बनाई गई है। दीवार का संरक्षण कर दिया जाए, तो वह देशी एवं विदेशी पर्यटकों के लिए आकर्षण के साथ ही उनके लिए शोथ करने का माध्यम भी बन सकती है।
क्या कहते हैं पुरातत्वविद
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के सेवानिवृत्त अधीक्षण पुरातत्वविद् डॉ. नारायण व्यास का कहना है कि गोरखपुर का क्षेत्र में परमार कालीन राजाओं का आधिपत्य रहा है। इस क्षेत्र में परमार कालीन पुरासंपदा के अवशेष भी देखने का मिलते है। परमार राजाओं ने अपनी राज्य की सीमा को सुरक्षित करने और अपने क्षेत्र का सीमांकन करने के लिए यह दीवार उस समय बनवाना प्रतीत होता है। दीवार निर्माण ऐसा है कि पत्थरों को इंटर लाकिंग कर जोड़ा गया है। बीच में मिट्टी और पत्थरों की चिनकारियों को भरा गया है। इस कारण दीवार के यह पत्थर सालों बाद भी व्यवस्थित तरीके से जमे हुए हैं। श्री व्यास ने बताया कि इस क्षेत्र में परमार कालीन राजाओं का राज्य था। जबकि इसकी सीमा से लगे क्षेत्र जबलपुर में कलचुरी राजाओं का राज था। परमार और कलचुरी राजाओं में हमेशा विवाद होते रहते थे। इस कारण भी परमार राजाओं ने अपने राज्य की सीमा को सुरक्षित करने के लिए यह दीवार बनाई गई होगी।