राकेश दुबे@प्रतिदिन। अगर मंडल कमीशन की रिपोर्ट मानें तो देश में अभी 3743 वर्ग ऐसे हैं जो अपने लिय आरक्षण की मांग कर सकते हैं। 68 साल में भारतीय समाज को हजारों टुकड़ों में तोडऩे की व्यवस्था को एक बार फिर हवा मिलना शुरू हुई है।
इस बीच ताजा आंकड़ों के अनुसार 2000 में एक प्रतिशत ऊपर के वर्ग का देश की 37 प्रतिशत संपत्ति पर कब्जा था जो 2005 में 43 प्रतिशत, 2010 में 48.6 प्रतिशत और पिछले साल तक 2014 में बढ़कर 49 प्रतिशत हो गया। मतलब देश की आधी संपत्ति मात्र एक प्रतिशत के पास चली गई। एक और तथ्य उल्लेखनीय है । देश के सबसे गरीब 10 प्रतिशत और सबसे अमीर दस प्रतिशत के बीच की खाई जो 2000 में 1840 गुना थी वह 2005 में 2150 गुना, 2010 में 2430 गुना और २०१४ में २४५० गुना हो गई है| आज़ादी के दिन से आज तक हम इस खाई को पाटने की बात करते रहे और खाई और चौड़ी होती जा रही है |
पहले सारे नेता समाज की समानता का नारा लेकर आते है और ५ साल के अंदर समाज के उस एक प्रतिशत में शामिल हो जाते है , जिसे वे कल तक गाली देते रहे हैं |लालू, मुलायम, नीतीश कांशीराम और मायावती सभी ऐसे ही उभरे हैं | सत्ता इन वोटों के सौदागरों के हाथ ब्लैकमेल होती रही है ऐसा नहीं होता ओ समृद्ध पटेलों के लिए आरक्षण और उसकी रैली में इतनी भीड़ नहीं होती | यह बतलाती है की पिछले ६८ सालों में हमने सोच का स्तर वही २५०० साल पुराना रखा, जब हमने समाज को पहचान समूहों में बांटा था और उनका स्तरीकरण करके शोषण का कभी न खत्म होने वाला सिलसिला शुरू किया। चूंकि कुछ अभावग्रस्त पहचान समूह सामाजिक विकास में पीछे रह गए और यह तर्क दिया कि समाज को इन्हें मुआवजे के सहित बराबर पर लाना होगा। हम ब्रिटेन के विदेश मंत्री (भारतीय मामलों के) वुड द्वारा लार्ड एल्गिन को १८६२ में दिए गये मन्त्र “ भारत तोड़ो” से अब तक उबर नहीं सके हैं | अंग्रेजों ने १९३२ में कम्युनल अवार्ड के जरिये इसकी शुरूआत की और अब इसे हार्दिक पटेल जैसे लोग हवा दे रहे हैं।
संविधान निर्माताओं को जाति या धर्म-आधारित आरक्षण कतई मंजूर नहीं था। इसीलिए अनुच्छेद १५(१) में स्पष्ट रूप से राज्य को जाति, धर्म, नस्ल या जन्म स्थान को लेकर भेदभाव न करने का प्रावधान बना। अनुच्छेद १६ (४) आरक्षण के कानून बनाने के अधिकार तो राज्य को दिए गए, लेकिन वहां शब्द पिछड़े वर्ग का प्रयोग किया गया न कि जाति का। गणतंत्र बनाने के एक साल में ही तत्कालीन मद्रास सरकार ने एक आदेश जारी कर जाति आधारित आरक्षण को मंजूरी दी जिसे उच्चतम न्यायालय ने गलत करार दिया। लेकिन तत्कालीन केन्द्रीय सरकार को यह फैसला नागवार गुजरा और तत्काल संविधान संशोधन किया गया जिसके तहत अनुच्छेद १५ (४) जोड़ा गया | यह सिलसिला अभी भी चल रहा है और चुनाव में वोट बैंक की तरह प्रयोग हो रहा है | १९६३ में सुप्रीम कोर्ट ने एमआर बालाजी केस में 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण न करने का निर्देश दिया वर्ना अब तक आरक्षण 100 प्रतिशत हो जाता |
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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