भोपाल। सिमी आतंकी एनकाउंटर मामले को लेकर राज्य सरकार को जनसमर्थन मिल रहा है, लेकिन सियासत थमने का नाम नहीं ले रही है। एक तरफ सरकार जहां विपक्ष के सवालों से परेशान हैं वहीं सूबे के मुखिया और सूबे के गृहमंत्री के बयानों में विरोधाभास है।
विरोधाभासी बयानों के चलते ये मामला सियासत का हिस्सा बनता जा रहा है। दरअसल, सीएम ने घटना के तुरंत बाद जब अपने निवास पर प्रेसवार्ता की थी, इस दौरान उन्होंने जेल ब्रेक की घटना की जांच रिटायर डीजी नंदन दुबे से कराने और घटना को लेकर गृहमंत्री राजनाथ सिंह से बात कर एनआईए से जांच कराने की बात कही थी।
गृहमंत्री ने कहा- नहीं होगी जांच
घटना के दूसरे दिन ही सूबे के गृहमंत्री भूपेन्द्र सिंह ने एनकाउंटर मामले की जांच नहीं कराने की बात कहकर एक बार फिर विवाद खड़ा कर दिया। अब सवाल उठ रहा है कि सीएम ने अपने बयान में आखिर किस घटना की जांच एनआईए से कराने की बात कही थी और भूपेन्द्र सिंह एनकाउंटर की जांच कराने से क्यों इंकार कर रहे हैं।
सीएम शिवराज सिंह ने अपने बयान में घटना की जांच करने की बात कही थी पर उन्होंने ये कहीं नहीं कहा था कि घटना की जांच में एनकाउंटर शामिल नहीं है। उनके बयान के आधार पर ये माना गया था कि पूरी घटना की जांच एनआईए करेगी, जिसमें एनकाउंटर भी शामिल है।
गृहमंत्री ने जांच का दायरा क्यों बदला
दूसरी तरफ सूबे के गृहमंत्री भूपेन्द्र सिंह ने अनूपपुर जिले में पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि सिमी एनकाउंटर मामले की जांच की आवश्कता नहीं है। एनआईए केवल जेल ब्रेक मामले की जांच करेगी। गृहमंत्री ने कहा कि आंतकियों ने जेल से भागने की प्लानिंग कोई एक दिन में नहीं की थी। उन्होंने गार्ड की हत्या की है। चाबियां और सीढ़ी बनायी हैं। कैमरा बंद होना भी उस प्लान का हिस्सा हो सकता है। एनआईए की जांच में सब सामने आ जायेगा। आतंकियों के जेल के बाहर और अंदर किन लोगों से सम्पर्क थे। इन सब बातों की जांच एनआईए करेगी।
विरोधाभासी बयानों से सियासत तेज
अब इन दो विरोधाभासी बयानों को लेकर जहां सियासत तेज हो गयी है। वहीं एनकाउंटर की जांच न किए जाने के बयान पर सवाल खड़े हो रहे हैं। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार एनकाउंटर किसी भी तरह का हो, उसकी जांच की जाती है। सुप्रीम कोर्ट ने बाकायदा गाइडलाइन जारी की है और कहा है कि एनकाउंटर की जांच सीआईडी और मजिस्ट्रेट से अनिवार्य रूप से करायी जाए।
एनकाउंटर की जानकारी तत्काल राज्य और राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग को देने के अलावा घायल और पीड़ितों के बयान मजिस्ट्रेट के समक्ष कराए जाएं। सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन में जांच के कई बिंदु तय किए गए हैं।