भोपाल। राजधानी में पानी सप्लाई के लिए बनाए गए कई ओवर हैडटेंक ऐसे हैं जो खतरनाक की श्रेणी में आते हैं। शहर में कुल 97 ओवर हैड टैंक हैं इसमें से 30-35 ओवर हैड टैंक हैं जो अपनी उम्र पूरी कर चुके हैं। यह सभी टंकियां ऐसी जगह हैं, जिनके आसपास घनी बसाहट है।
विशेषज्ञों के मुताबिक इनकी मरम्मत जल्द नहीं की गई तो कभी-भी बड़े हादसे का कारण बन सकती हैं। गौरतलब है कि उम्र पूरी कर चुकी टंकियों की मरम्मत करने के मुद्दे को नगर निगम परिषद की बैठक में भी कांग्रेस नेताओं ने उठाया है। नेता प्रतिपक्ष मो. सगीर के अनुसार पुराने भोपाल के साथ नए भोपाल में भी कई टंकियां जर्जर हो चुकी हैं। वे कई बार लिखित में भी इसकी शिकायत कर चुके हैं, बावजूद नगर निगम प्रशासन का ध्यान इस ओर नहीं हैं। इन टंकियों के प्रति लापरवाही का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इन टंकियों की मरम्मत तो दूर ठीक से सफाई और पुताई भी नहीं होती। घटना के बाद महापौर ने शहर की जर्जर टंकियों को गिराने की बात की है।
एक्सपर्ट से नहीं लेते सलाह
साइं नगर में बनी टंकी का निर्माण पुरानी तकनीक के आधार पर हुआ था। साथ ही शहर में जो नई टंकियां बनाई जा रही हैं, वो भी इसी डिजाइन पर आधारित है। डिजास्टर मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट के असि. डायरेक्टर दिलीप सिंह बताते हैं कि किसी भी हादसे के पीछे सबसे बड़ी वजह एक्सपर्ट की सलाह नहीं लेना है। वे बताते हैं कि नगर निगम जो नए टैंक का निर्माण कर रहा है, उसके लिए कभी भी डिजास्टर मैनेजमेंट या अन्य संस्थाओं से तकनीकी सलाह नहीं लेता। वे बताते हैं कई देशों में ओवरहैड टैंक की जगह अब अंडर ग्राउंउ टैंक का निर्माण किया जता है। जहां से पंपों के सहारे पानी सप्लाई किया जाता है।
यह होना चाहिए मानक
पीएचई के सेक्शन इंजीनियर राजेन्द्र सक्सेना के अनुसार टंकियों के निर्माण के लिए पीएचई के अपने मानक हैं। इन मानकों के अनुसार किसी भी टंकी की डिजाइन टंकी की ऊंचाई, चौड़ाई और पानी भरने की क्षमता के अनुसार तय किए जाते हैं। किसी भी टंकी के निर्माण में दीवारों की थिकनेस कम से कम 6 इंच होना जरूरी है। इसके साथ ही इसके पिलर्स में लगने वाले लोहे के सरिये की मोटाई भी टंकी के आकार पर निर्भर होती है। उन्होंने बताया कि 300 फुट की टंकियों में 16 एमएम का सरिया लगाया जाना आवश्यक है। ओवरहैड टैंक की गुणवत्ता उसमें मिलाए गए मेटेरियल के सही अनुपात पर निर्भर होती है। इसके लिए 1-2-4 के अनुपात में मसाला तैयार किया जाता है। इसमें एक भाग सीमेंट, दो भाग रेत और चार भाग पत्थर की गिट्टी का उपययोग किया जाता है। मैनिट के सिविल प्रोफेसर डॉ. नितिन डांडीकर बताते हैं कि इसके निर्माण चार आधारों पर किया जाता है। इसमें साइट इंवेस्टीगेशन, डिजाइन , कंस्ट्रक्शन और मैनेजमेंट शामिल है। इन चारों आधारों पर खरा उतरने के बाद ही सुरक्षित निर्माण किया जा सकता है।