एक बूढ़ी टंकी की तथा-कथा

त्वरित/चंदा बारगल/ सोमवार की सुबह...रोजमर्रा की तरह सुबह आठ बजे जब चाय की टपरी पर पहुंचा तो कुछ आटोचालकों की बातें सुन रहा नहीं गया...सो पूछ डाला...'क्या हो गया?' उनमें शुमार एक बर्रूकट चाचा बोले-'तुम यहां पूछ रहे हो? वहां मेला लगा है।' रहा नहीं गया, पुराना पत्रकार जाग गया सो फौरन कदम अपने आप मौके की ओर चल पड़े...मौका यानी घटनास्थल स्वामी विवेकानंद स्कूल के पीछे स्थित पानी की टंकी...जो रविवार-सोमवार की दरम्यानी रात ढ़ह गई...ढ़ह क्या गई, कहर बरपा गई...सात-आठ लोगों के प्राण पखेरू ले गई...जब घटनास्थल की ओर बढ़ रहा था तभी उस तरफ जा रहे लोगों में हलचल हुई,

लालबत्ती की कार को रास्ता देना था...पीछे भी कारें थी...कार आगे जाकर रूकी तो उसमें से उतरे राजधानी भोपाल के प्रभारी मंत्री जयंत मलैया...वे स्कूल भवन के गेट से सीधे—सीधे अंदर दाखिल हुए...उन्होंने सरसरी आंखों से मौका मुआयना किया, तभी राजधानी की महापौर कृष्णा गौर आ गईं और होले से खड़ी हो गईं...दोनों में दुआ—सलाम हुई...तभी एक मीडियाकर्मी अपना 'अलतुआ'लेकर लपका और जयंत भाई के सामने लगा दिया...जयंत भाई जैसे प्रतीक्षारत ही थे...उन्होंने बोलना शुरु किया...ऐसे दुर्भाग्यपूर्ण हादसे होते रहते हैं...कलेक्टर साहब ने मजीस्ट्रियल जांच की घोषणा कर दी है...टंकी की अपनी 'लाइफ' होती है, कुछ टंकियां लाइफ से अधिक भी चलती हैं...फिर वही दोहराना शुरु किया...मृतक को एक लाख...गंभीर जख्मी को इत्ते और जख्मी को उत्ते...किसी ने सवाल दागा कि रात की घटना के बाद से अब तक किसी जन प्रतिनिधि ने पीड़ितों की सुध नहीं ली...जयंत मलैया बोले—सूचना मिलते ही विधायक ध्रुवनारायणसिंह तत्काल पहुंच गए थे...ध्रुव भैया ने भी 'हां' में मुंडी घुमाई। वो बोले—मैं रोज सुबह घूमने जाता हूं, सूचना मिलते ही यहां पहुंचा। प्रशासनिक अधिकारी भी तुरंत पहुंच गए थे। 


जयंत भाई बोल रहे थे, तभी दूसरे मीडियाकर्मी भागते—दौड़ते वहां आ चुके थे...प्रभारी मंत्री के बाद बारी महापौर की थी...लग रहा था महापौर तैयारी से आईं थीं...बिल्कुल सज—संवरकर...उन्होंने वही दोहराया कि जांच करेंगे, जांच में जो दोषी पाया जाएगा, उसके खिलाफ कार्रवाई करेंगे...एक नौसिखुआ पत्रकार पूछ बैठा—क्या आप मजीस्ट्रियल जांच की घोषणा करेंगी? उन्होंने कहा—वो तो कलेक्टर साब कर चुके हैं...बात खत्म, आठ—दस मिनट में ही मौका—मुआयना हो गया। ध्रुवनारायण सिंह जयंत भाई की ओर मुखातिब होकर बोले—अभी तो कोई बात करने की स्थिति में नहीं है...बाद में स्थानीय लोगों से चर्चा करेंगे...। प्रभारी मंत्री की बातों से लगा कि उनकी सुबह की शुरूआत आज नहीं रही, घूमने को जो नहीं मिला। महापौर को भी दिक्कत हुई होगी, इत्ती सुबह सज—संवरकर बाहर निकलने की आदत नहीं होगी...मैं भी मन ही मन कोस रहा था उस बूढ़ी पानी की टंकी को, कलमुंही, नाशमिटी पानी की टंकी को, कितने लोगों की जान ले ली, कितने लोगों को जख्मी कर दिया और कितने घरों में कोहराम मचा दिया। फिर सोचा, उस बूढ़ी टंकी का आखिर क्या दोष? वह तो चीख—चीख कर कह रही थी कि मैं बूढ़ी हो चुकी हूं...नागरिक भी कह रहे थे...वहां की पार्षद शोभा राजू नरवाड़े भी गुस्से में कह रहीं थीं—'ये झूठ बोल रहे हैं भईया, मैंने बहुत बार शिकायत की।'मुझे लगा, उस बूढ़ी टंकी को दोष देना ठीक नहीं, वह तो अपना धर्म निभा रही थी, लोगों को पानी पिला रही थी, मरते दम तक पिला रही थी। ...तो फिर दोष किसका?

 महापौर और प्रभारी मंत्री ने कहा ही है, जांच करवाएंगे, जो दोषी होगा, उसके खिलाफ कार्रवाई करेंगे। हमारी यही परंपरा है, नियम है, कायदा है, बूढ़ी टंकी चीख—चीखकर कहती है कोई नहीं सुनता... न नगर निगम के अधिकारी...न प्रशासनिक अधिकारी...न महापौर...न कलेक्टर... न प्रभारी मंत्री। बकौल जयंतभाई, उसकी 'लाईफ' हो गई थी। उसे तो ढ़हना ही था, लेकिन हमारी व्यवस्था यदि सजग होती, अपने ज्ञानचक्षु खुले रखती तो शायद लोगों की जिंदगी में अंधेरा नहीं छाता। सात—आठ परिवार अनाथ नहीं होते, लोग जख्मी होकर कराह नहीं रह होते। अब हमेशा की तरह जांच होगी, जो दोषी पाया जाएगा उस पर कार्रवाई होगी, सवाल उठना लाजिमी है कि इस भ्रष्ट व्यवस्था के चलते क्या दोषी पाया जाएगा, और जो दोषी पाया जाएगा, वह कौन ​होगा? कोई अदना कर्मचारी या वरिष्ठ अफसर? 



जेहन में एक सवाल और कुलांचे मार रहा है कि क्या इत्ते बड़े शहर में एक अदद यही टंकी थी...जो ढ़ह गई...और भी तो होंगी जो बूढ़ी हो चुकी होंगी, वे भी तो कह रही होंगी कि मैं बूढ़ा गई हूं...मुझे ढहा दो... मुझे नवजीवन दे दो...कम से कम हमारी व्यवस्था के सूत्रधार इतना ही कर दें तो राजधानीवासी उनके एहसानमंद रहेंगे कि राजधानी की शेष बूढ़ी टंकियों की खैर—खबर ले लें। बाकी तो सब 'गोलमाल' है।

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