कैसे दी जाती है फांसी?

मुंबई ब्यूरो। 26/11 के मुंबई फिदायिनी हमले के आतंकवादी मोहम्मद अजमल कसाब को आज पुणे के येरवडा जेल में फांसी दे दी गई। राष्ट्रपति प्रणब मुख्र्जी ने गत 5 नवंबर को कसाब की दया याचिका खारिज कर दी। इसके बाद फाइल 7 नवंबर को केंद्रीय गृहमंत्री सुशीलकुमार शिंदे के पास पहुंची और अगले दिन 8 नवंबर को वह महाराष्ट्र सरकार को मिल गई, तभी कसाब को फांसी की तारीख तय हो गई थी।

किसी अपराधी को फांसी देने के लिए एक विशेष नियमावली का पालन किया जाता है। उसके अनुसार ही कसाब को फांसी पर लटकाया गया। क्या है यह नियमावली, पाठकों की सुविधार्थ हम प्रकाशित कर रहे हैं:

राज्य सरकार द्वारा फांसी का दिन का तय करने के बाद जेल अधीक्षक कैदी के परिजनों को सूचना देते हैं।

कैदियों के रिश्तेदारों को या दूसरे कैदियों के रिश्तेदार फांसी के वक्त मौजूद नहीं रह सकते। केवल, समाज—शास्त्री उनकी इच्छा होने पर कारागृह अधीक्षक, वह अनुमति दे सकते हैं।

कारागृह की सुरक्षा व्यवस्था और नियमों को ध्यान में रखते हुए कैदी को श्रद्धास्थान पर प्रार्थना करने का मौका दिया जाता है।

फांसी देने के पहले अपराधी से अंतिम इच्छा पूछी जाती है और सूर्योदय के आसपास फांसी दी जाती है।

फांसी के दिन उस कारागार के अधीक्षक, उप अधीक्षक, सहायक अधीक्षक और चिकित्सा अधिकारी उपस्थित रहते हैं। जिला दंडाधिकारी द्वारा चुने गए कार्यपालिक दंडाधिकारी फांसी देते समय खुद मौजूद रहकर वारंट पर हस्ताक्षर करते हैं।

फांसी के पूर्व कैदी को पसंदीदा पदार्थ खाने में दिए जाते हैं। दूसरे दिन फांसी देने के दो घंटे पहले उठाकर स्नान कराया जाता है। नए वस्त्र पहनने को दिए जाते हैं।

काल—कोठरी से बाहर निकालते वक्त उसके चेहरे पर नकाब पहनाया जाता है और दोनों हाथ पीछे से बांधे जाते हैं। किसी भी परिस्थिति में वह फांसी की तैयारी न देख पाए, इस बात का ध्यान रखा जाता है।

फांसी दिए जाने के मृत शरीर को आधे घंटे तक वैसे ही रखा जाता है और चिकित्सा अधिकारी द्वारा मृत होने का प्रमाण—पत्र दिए जाने के बाद उसे नीचे उतारा जाता है।

कैदी के धर्म की परंपरा के मुताबिक, कैदी का अंतिम संस्कार किया जाता है। कैदी के परिजनों की लिखित विनती पर शव उनके सुपुर्द कर दिया जाता है। केवल, अंतिम संस्कार सार्वजनिक तौर पर न करने का प्रतिबंध उन पर लगाया जाता है।

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