स्मरण शेष / देव श्रीमाली/ मोबाईल पर घंटी और डिस्प्ले पर अपने मित्र ब्रजेश राजपूत का नाम देखकर मैं मेले में चल रही कलेक्टर की प्रेस कॉन्फ्रेंस से बाहर निकला । बड़े इच्छा थी कि उनसे लम्बी बात करूंगा । कई दिनों से उनसे बातचीत नहीं हो सकी थी । मेरे हेल्लो कहने से पहले ही ब्रजेश जी की आवाज थी । मुझे कुछ जानकारी चाहिए और एक बुरी खबर देनी है । मैं हिल गया । ब्रजेश जी बहुत संजीदा इंसान है । बहुत तौलकर बोलते हैं ।मैंने कहा - क्या हुआ ? वे बोले - अलीगढ की रास्ता कहाँ है ?....एटा कैसे जाते है ? मेरे दोस्त वेद को जानते हो ?
मेरी चिंताएं बढ़ती जा रही थी । ब्रजेश जी से ऐसे सिलसिलाहीन बातचीत से मेरा पहला साबका था । उन्होंने उतनी ही बेतरतीब तरीके से बताया कि वेद भाई नहीं रहे । वे अपने गाँव एटा गए थे वहां से लौटते समय अलीगढ के पास सड़क हादसे में उनकी दुखद मौत हो गयी ।उनके परिवार को दिल्ली के रास्ते भोपाल से एटा भेजने की व्यवस्था कर रहे है । सब कुछ एक सांस में बोलते ही अचानक फोन काट दिया । पहली बार मैंने उन्हें नि:शब्द देखा । एकदम बदहवास और विचलित ।
इस खबर ने मुझे भी तोड़ दिया । मेरा वेद से पुराना याराना था । नब्बे के दशक में उनका कुछ समय के लिए ग्वालियर में आना हुआ था तब हम लोगों ने साथ काम किया और फिर हमारे संपर्क खो गए । दो साल पहले अचानक उन्होंने मुझे कॉल किया और संपर्कों को फिर से परवाज़ लगा दिए । यही उनकी विशेषता थी । वेद एक बेहद संवेदनशील और सलीकेदार इंसान थे । वे सभी पत्रकारों को प्रिय थे और गजब का आत्मविश्वास समेटकर रखते थे । कुछ महीनो में ही मेरी उनसे तीन मुलाकातें हुईं । लम्बी -लम्बी मुलाकातें । मैं अपने छोटे बेटे देवांग के साथ भोपाल गया ।
जब उन्हें पता चला कि में ब्रजेश जी के घर आ रहा हूँ तो वे वहां पहले ही पहुँच गए ।वहां मनोज शर्मा भी पहुंचे और हम तीनो ने मिलकर एक -दो नहीं कई घंटों तक खूब बातचीत की । पत्रकारिता ,रोजगार,राजनीति से लेकर चम्बल और देश प्रदेश पर नितांत ऑफ बीट बातचीत । इसके बाद मुझे दो माह पहले योजना आयोग की एक कार्यशाला में भाग लेने भोपाल जाने का मौका मिला । अशोका लेक ब्यू होटल में आयोजित इस कार्यशाला में हम लोग दो दिनों तक साथ रहे । भोपाल और देश भर से आये तमाम लोगों से उन्होंने मेरा परिचय कार्य और काफी अतिरेक परिचय के साथ ...और आखिरी मुलाकत पिछले महीने ग्वालियर में ही हुई । वे किसी प्रोजेक्ट के सिलसिले में ग्वालियर आये तो मुझे कॉल कर बुलाया हम लोग साथ बैठे और डिनर भी किया । अनेक महत्वपूर्ण योजनाओं पर उनसे चर्चा हुई ।
वेद व्रत गिरी पूरे जीवन भर अपने नाम के अनुरूप काम करते रहे । वे वेदों की तरह सर्वग्राही और मौलिक विचारों के धनी थे । कार्य का संकल्प लेकर उसे पूरा करने में वे अपने को एक व्रत की तरह झोंकते थे और अपने संकल्प को पूरा करने के लिए अपने निश्चय को गिरी यानी पहाड़ के तरह दृढ़ रखते थे । वे सिर्फ्त सवा चार दशक के थे लेकिन उनके पास अनुभव और विचार उनकी उम्र से ज्यादा परिपक्व थे ।वे अच्छे इंसान,अच्छे दोस्त ,वेहतर सलाहकार और संवेदनशील पत्रकार थे । वेद निजी लाभ के लिए न तो अपनी संवेदनशीलता छोड़ने को तैयार होते थे और न ही किसी प्रकार के समझौते को लेकिन सादगी की पूंजी उन्होंने सदैव अपने साथ रखी । वेद जैसे लोग बिरले होते हैं और उनकी रिक्तित्ता सदैव रिक्त ही रहती है । वे नहीं रहनेगे लेकिन अपने दोस्तों को रोज याद आयेंगे । उनकी खिचडी दाड़ी वाला मुस्कराता चेहरा हमेशा की तरह हमेशा आँखों में दिखेगा । एक अच्छे इंसान ....वेहतरीन पत्रकार और अच्छे दोस्त को अश्रुपूरित विनम्र श्रद्धांजलि ।