मध्यप्रदेश 2012: कुल बलात्कार 33500, सजा मात्र 580

भोपाल। नवभारत टाइम्स पर ब्लॉगिंग कर रहे शेख शकील ने एक चुभता हुआ मामला मध्यप्रदेश के पटल पर रखा है। उन्होंने बताया है कि कानून व्यवस्था को लेकर चुस्त बयान देने वाली मध्यप्रदेश सरकार के पुलिस विभाग की इन्वेटिगेशन कितनी लचर है कि आरोपियों को सजा ही नहीं दिला पाती। वर्ष 2012 कुल 33500 रेप के मामले दर्ज किए गए, परंतु सजा मात्र 580 को ही हुई। 

सनद रहे कि न्यायालय में यदि आरोपी बरी हो रहे हैं तो यह सीधे सीधे पुलिस की इन्वेस्टिगेशन पर सवाल खड़ा करते हैं, क्योंकि नियमानुसार पुलिस प्रकरण दर्ज करने के बाद इन्वेस्टिगेशन करती है और जब उसके पास इस बात के प्रमाण जमा हो जाते हैं कि सचमुच एफआईआर में दर्ज विवरण के अनुसार वारदात हुई है तब वह सजादेही के लिए न्यायालय में चालान प्रस्तुत करती है। 

व्यवस्था के अनुसार महत्वपूर्ण एफआईआर नहीं होती, माना जाता है कि एफआईआर तो झूठी भी हो सकती है, इसलिए पुलिस जांच करती है और जांच में दोषी पाए जाने पर ही न्यायालय में सजादेही के लिए प्रस्तुत करती है। यदि पुलिस की जांच प्रक्रिया लचर हो तब ही आरोपी न्यायालय से बरी हो पाता है। 

न्यायालय में किसी भी आरोपी का बरी होना दोनों स्थितियों में पुलिस को कटघरे में खड़ा करता है। यदि वह सचमुच निर्दोष था तब भी पुलिस की विवेचना लचर साबित होती है और यदि वह दोषी था परंतु पुलिस साक्ष्य नहीं जुटा पाई तब भी विवेचना ही कटघरे में आती है। यह विषय निश्चित रूप से बहुत गंभीर और चिंतन करने वाला है और शायद कांग्रेस के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा भी।  

हम ब्लॉगर शेख शकील के लेख को यथावत प्रकाशित कर रहे हैं। आप भी पढ़िए क्या कुछ लिखा है उन्होंने अपने ब्लॉग चुभती कलम में:-

मध्य प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 2012 में पुलिस बल संबंधी अनेक उल्लेखनीय फैसलों का  रिपोर्ट कार्ड सरकारी वेबसाइट पर जारी किया गया है इस रिपोर्टे कार्ड के अनुसार मध्यप्रदेश में वर्ष 2012 में जनसंख्या वृद्धि के अनुपात में पुलिस बल बढ़ाने के निर्णय के तारतम्य में पुलिस बल के लिए 21 हजार पद स्वीकृत किए गए महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों पर प्रभावी नियंत्रण के लिए पुलिस मुख्यालय स्तर पर विशेष महिला प्रकोष्ठ बना। प्रकोष्ठ की मुखिया अतिरिक्त महानिदेशक स्तर की महिला अधिकारी को बनाया गया। प्रदेश में इस प्रकोष्ठ के अधीन पृथक से इंदौर, भोपाल और जबलपुर में भी विशेष प्रकोष्ठ बनाए गए हैं। अनुविभागीय अधिकारी पुलिस मुख्यालय स्तर के थानों में एक डेस्क के मान से कुल 141 महिला डेस्क प्रारंभ की गयी है।  इसके अलावा मानव दुर्व्यापार को रोकने 16 इकाइयों का गठन किया गया।

सरकार का रिपोर्ट कार्ड यह बताने के लिए काफी है की मध्य प्रदेश में अपराधो पर कितना प्रभावी नियंत्रण है लेकिन इस रिपोर्ट कार्ड को विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान सरकार द्वारा पेश किये गए आंकड़े सवालों के कटघरे में खड़ा करते दिख रहे है, 
...है ना सोचने और चौकाने वाली बात की जिस प्रदेश में वर्ष 2012 में  महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों पर प्रभावी नियंत्रण के लिए  141 महिला डेस्क प्रारंभ की गयी बाबजूद इसके यहाँ अपराधो में कमी आने के बजाय महिलाओ से संबधित मामले अधिक हुए मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में ही जनवरी से अक्टूबर 2012 तक 114 वारदातों में 111 बलात्कार व तीन सामूहिक बलात्कार की घटनाएं हैं। आंकड़ों के अनुसार इस तरह की घटनाओं में ज्यादातर नाबालिगों को शिकार बनाया गया। बलात्कार की शिकार युवतियों में 1366 वयस्क जबकि 1453 नाबालिग थीं। 

दूसरी तरफ विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान सरकार द्वारा पेश किये गए  आंकड़ों के अनुसार इंदौर महिलाओं के लिए सबसे ज्यादा असुरक्षित है। शहर में बलात्कार की 150 वारदातें हुई हैं। इनमें से 141 बलात्कार और नौ सामूहिक बलात्कार की घटनाएं हैं। दो युवतियों की हवस का शिकार बनाने के बाद हत्या कर दी गई। इस तरह की वारदातों में जबलपुर दूसरे स्थान पर है, यहां 115 महिलाओं के साथ बलात्कार की घटना हुई।  मध्य प्रदेश में हर माह 25 युवतियां सामूहिक बलात्कार का शिकार बनती हैं जबकि हर रोज होने वाले बलात्कार का आंकड़ा नौ के करीब है।

मध्य प्रदेश में जनवरी से अक्टूबर 2012 तक राज्य में 2,613 युवतियां बलात्कार जबकि 255 युवतियां सामूहिक बलात्कार का शिकार बनी हैं। इस आंकड़े के अनुसार, हर रोज नौ और हर तीन घंटे में एक युवती हवस का शिकार बनी। इस आंकड़ो के पीछे सरकार का यह तर्क है की प्रदेश के थानों में बिना दवाव / भेदवाव के अपराध दर्ज कर कारवाही की जाती है सरकार आंकड़ो में नहीं कारवाही में विशवाश करती है ।

अब एक नजर पिछले कुछ आंकड़ो पर डाले तो सरकार का कथित रिपोर्ट  कार्ड एक बार फिर सवालों  के दायरे में होगा नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के आंकडे में मध्यप्रदेश  में जहां बलात्कार के मामले देश में भले ही नंबर वन हो, लेकिन सजा दिलाने के मामले में सबसे पीछे हैं। लिहाजा भले ही प्रदेश सरकार महिलाओ से जुड़े मामलों को गंभीरता से लेने का दावा करती है, लेकिन इतने मामलों में सजा न होने से पुलिस प्रशासन की कार्रवाई पर जरूर सवाल खड़े हो गए हैं। बीते एक दशक से ज्यादा  समय यानी वर्ष 2001 से लेकर अक्टूबर 2012 तक 33500 महिलाएं प्रदेश में बलात्कार का शिकार हुई , लेकिन सजा मात्र 580 आरोपियों को ही हुई।

यह आंकड़ा पीड़ितों के कुल आंकड़े का एक फीसदी भी नहीं है। फिलहाल  1370 मामले अभी भी न्यायालय में विचाराधीन हैं और उनके आरोपी अभी प्रदेशों की जेलों में बंद हैं। पुलिस आनन फानन में बलात्कार होने पर मामला तो दर्ज कर लेती है, लेकिन सबूत जुटाने के मामले में फिसड्डी साबित होती है। यही कारण है कि आरोपियों को सजा नहीं हो पाती। कई मामलों में पीड़ित पक्ष ही अदालती पेंच में फंसकर आरोपियों से समझौता करने में ही अपनी भलाई समझता है,,,,,,?      [ इस बात के लिए  जानकारों के अपने -अपने  तर्क है ]  जानकारों मानते है कि अपराधी को सजा न दिला पाना पुलिस की एक बड़ी नाकामी है।

शेख शकील का ब्लॉग पढ़ने के लिए कृपया यहां क्लिक करें

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