भोपाल। मध्यप्रदेश में अगले वर्ष नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव की छाया इस वर्ष पर साफ नजर आई और पूरे साल राजनीतिक गतिविधियां अपने चरम पर रहीं। राजनीतिक विश्लेषक अगले विधानसभा चुनाव को कांग्रेस एवं भाजपा के लिए महत्वपूर्ण मान रहे हैं।
दिसंबर 2003 से पहले मध्यप्रदेश को एक तरह से कांग्रेस का गढ़ माना जाता था, क्योंकि इससे पहले यहां कोई भी गैर कांग्रेसी सरकार अपना पांच साल का तयशुदा कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी थी, लेकिन दिग्विजय सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के 10 साल के शासन के बाद सत्ता में आई भाजपा की सरकार ने अपना पहला पांच साल का कार्यकाल तो पूरा किया ही, बल्कि उसके बाद 2008 के विधानसभा चुनाव में भी जीत का सिलसिला जारी रखा।
भाजपा की नजर अब नवंबर 2013 के चुनाव पर है और उसका पूरा प्रयास है कि वह लगातार तीसरी जीत हासिल करके इतिहास बनाए। वहीं, कांग्रेस भी इस बार जीत हासिल करके प्रदेश में अपनी खोई प्रतिष्ठा वापस पाने का सपना संजोए है।
भाजपा ने वर्ष 2008 का चुनाव मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अगुआई में जीता था और तब नरेन्द्र सिंह तोमर पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष थे, उनके बाद अध्यक्ष की कुर्सी प्रभात झा को सौंपी गई, लेकिन साल का अंत होते-होते हुए संगठन चुनाव में झा के बजाए फिर तोमर का नाम आगे आया और पार्टी ने आगामी चुनाव पर नजर रखते हुए उन्हें यह कमान सौंप दी।
प्रदेश भाजपा में हुए इस बदलाव को हल्के ढंग से लेते हुए कांग्रेस ने कहा कि इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता और वह अगला विधानसभा चुनाव जीतकर इस प्रदेश में फिर से सरकार बनाने जा रही है। कांग्रेस में भी बीत रहे साल में प्रदेश अध्यक्ष सांसद कांतिलाल भूरिया को हटाने की मुहिम ने जोर पकड़ा।
पार्टी का एक वर्ग उनके स्थान पर केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के हाथों में प्रदेश संगठन की कमान देखना चाहता था और उसकी यह भी मंशा थी कि सिंधिया को ही अगले मुख्यमंत्री के बतौर आगे किया जाए। पार्टी आलाकमान ने कुछ कांग्रेसियों के इस प्रयास की हवा यह कहकर निकाल दी कि मध्यप्रदेश में अगला विधानसभा चुनाव प्रदेशाध्यक्ष भूरिया एवं राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता अजय सिंह राहुल के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा।
प्रदेश में तीसरे मोर्चे की कोई आहट नहीं है। भाजपा और कांग्रेस को छोड़ दिया जाए, तो यहां अन्य राजनीतिक दलों की कोई बिसात नहीं है। इसके बावजूद मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी ने तीसरा मोर्चा कायम करने की गरज से गैर भाजपा, गैर कांग्रेस राजनीतिक दलों की प्रदेश इकाइयों की बैठक जुलाई-अगस्त 2012 में आहूत की, लेकिन उसके बाद उनकी कोई गतिविधि सामने नहीं आई।
भाजपा सरकार के खिलाफ प्रदेश में अवैध उत्खनन का आरोप लगाते हुए प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस काफी मुखर रही और उसने भ्रष्टाचार को लेकर भी जमकर आवाज उठाई। इसके लिए उसने विधानसभा के पिछले बजट सत्र में जोरदार हंगामा मचाया तथा सदन की कार्यवाही कई बार बाधित की।
कांग्रेस ने कटनी जिले के बरही थाना क्षेत्र के डोकरिया-बुजबुजा गांवों में एक निजी ताप बिजली घर संयंत्र के लिए अधिग्रहीत की जा रही जमीन अधिग्रहण के विरोध में स्थानीय किसानों के आंदोलन का समर्थन किया तथा विधानसभा के शीतकालीन सत्र में कामरोको प्रस्ताव पेश किया, जिसे सरकार ने चर्चा के लिए मंजूर कर लिया।
किसानों के समर्थन में कांग्रेस ने कटनी में एक विशाल रैली का आयोजन किया, जिसमें कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह तथा प्रभारी महासचिव बीके हरिप्रसाद सहित अनेक पार्टी नेताओं ने शिरकत की थी। बीत रहे वर्ष की प्रमुख राजनीतिक घटनाओं में श्रीलंका के राष्ट्रपति महिन्दा राजपक्षे एवं नेपाल के प्रधानमंत्री ल्योन्छेन जिगमी योजेर थिनले की मध्यप्रदेश के बौद्ध स्थल सांची की यात्रा उल्लेखनीय रही। ये दोनो सांची में भारत के पहले बौद्ध एवं भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय की आधारशिला रखने आए थे।
श्रीलंका में तमिलों के हुए नरसंहार को लेकर तमिलनाडु की मएमलारची द्रविड़ मुनेत्र कृषगम पार्टी ने श्रीलंका के राष्ट्रपति राजपक्षे की सांची यात्रा का विरोध किया और उसके महासचिव वायको ने इसे लेकर मुख्यमंत्री चौहान को पत्र भी लिखा, लेकिन सरकार अपने कार्यक्रम पर अटल रही।
वायको ने अपने समर्थकों सहित कई बसों एवं कारों के जरिए महाराष्ट्र के नागपुर के रास्ते सांची पहुंचने के लिए जब मध्यप्रदेश की सीमा में प्रवेश किया, तो उन्हें पाण्ढुर्णा के निकट रोक लिया गया तथा दो दिन बाद वायको एवं उनके समर्थकों को गिरफ्तार कर लिया गया। हालांकि, इसके अगले ही दिन उन्हें रिहा कर दिया गया तथा ये सब तमिलनाडु के लिए लौट गए।