भोपाल। मुरैना में पुलिस स्टेशन पर हमला करने वाले लोगों की संख्या 500 नहीं 1000 से ज्यादा थी। 250 केमरा गांव में जाम लगाया, 250 बंधा गांव में हाइवे जाम किया और 600 पुलिस स्टेशन पर अटैक किया। इस हमले के बाद पुलिस वापस कोई कार्रवाई कर पाए इससे पहले ही सभी हमलावर बीहड़ों में कूद गए। सभी पाचों गांव खाली हो गए हैं अब वहां केवल महिलाएं और बच्चे हैं।
मुरैना में पुलिस स्टेशन पर हुए हमले और आगजनी की घटना ने एक बार फिर IPS नरेन्द्र कुमार की यादें ताजा कर दीं और उस इलाके में चल रहे अवैध उत्खनन को सबके सामने पूरी तरह से खोल कर रख दिया।
वो न भाजपाई हैं न कांग्रेसी
हमलाकरने वाले न भाजपाई हैं और न ही कांग्रेसी। वो तो केवल और केवल रेत माफिया गिरोह है। उस इलाके में रहने वाले गूजरों का पुश्तैनी कारोबार है रेत उत्खनन और वो कतई यह स्वीकार करने को तैयार नहीं कि इसके लिए वो किसी कानून का पालन करें। उन्हें जहां रेत मिलती है वो खोद लाते हैं।
इसलिए किया हमला
अवैध रेत उत्खनन में लगे लोग मूलत: गूजर जाति के हैं और रेत के कारोबार पर ही उनकी आजीविक चलती है। इनमें से ज्यादातर लोगों की जिंदगी भर की संपत्ति ही ट्रेक्टर होती है। चूंकि अवैध रेत उत्खनन में जप्त किए गए ट्रेक्टरों को राजसात कर लिया जाता है और वो वापस नहीं मिलता इसलिए गूजर किसी भी सूरत में अपना ट्रेक्टर पुलिस के सुपुर्द रखना नहीं चाहते। यही कारण था कि आईपीएस नरेन्द्र पर ट्रक्टर चढ़ाना पढ़ा और यही कारण रहा कि बीती रात पुलिस स्टेशन पर हमला किया गया। यहां काबिले गौर यह है कि ग्रामीण पुलिस स्टेशन पर हमला करके केवल ट्रेक्टर वापस ले गए, ट्राली और रेत अभी भी पुलिस के कब्जे में ही है। ग्रामीण एक व्यक्ति की गिरफ्तारी पर इतने आंदोलित नहीं होते जितने ट्रेक्टर की जप्ती पर हो जाते हैं।
क्या गलती करती है पुलिस
यहां पुलिस और रेतमाफिया के बीच संघर्ष आम बात है। छोटे मोटे हमले तो बाहर ही नहीं आ पाते। इस मामले में चार पुलिसकर्मियों को बंधक बनाया गया, एसपी की गाड़ी तोड़ दी गई और थाने में खड़ी गाड़ियों में आग लगाई गई इसलिए मामला प्रकाश में आ गया। स्थानीय पुलिसकर्मी अच्छे से जानते हैं कि यहां यदि रेत माफिया के खिलाफ कार्रवाई करनी है तो सौ पचास पुलिसकर्मी नहीं बल्कि पूरी 500 सिपाहियों की कंपनी चाहिए।
यहां का परंपरागत काम है अवैध रेत उत्खनन
रेत का अवैध रत्खनन मुरैना के विवादित पाचों गांवों का परंपरागत काम है और वो इसमें किसी की दखलअंदाजी बर्दाश्त नहीं करते। वो न तो खनन लाइसेंस के लिए अप्लाई करना चाहते और न ही अपनी आावाज सरकार तक पहुंचाने के लिए कोई लोकतांत्रिक रास्ता अपनाते। वो तो केवल उत्खनन करते हैं और बेच देते हैं। इस काम में जुटे लोग करोड़पति नहीं हैं, उनके जीवन भर की संपत्ति ही एक ट्रेक्टर होता है। ग्रामीणों को अपने परिवार में यदि किसी सदस्य की हत्या भी हो जाए तो इस तरह रियेक्ट नहीं करते जैसे ट्रेक्टर को बचाने के लिए करते हैं। वो किसी भी कीमत पर ट्रेक्टर जप्त होते देखना नहीं चाहते। उचित नेतृत्व न मिल पाने के कारण उनकी बात कभी सरकार तक नहीं पहुंच पाती।
फिलहाल कहां हैं हमलावर
खबर मिल रही है कि सभी हमलावरों सहित उन सभी पुरुषों ने भी गांव छोड़ दिया है जो हमले में शामिल नहीं थे। ज्यादातर लोग सीमापार कर राजस्थान में अपने रिश्तेदारों के पास पहुंच गए हैं और करीब 250 लोग बीहड़ों में कूद गए हैं। इसके बाद वो कहां जाएंगे किसी को कुछ मालूम नहीं।
अब पुलिस क्या करेगी
फिलहाल पुलिस के पास करने के लिए कुछ नहीं बचा है। प्रकरण दर्ज किया जा चुका है और गिरफ्तारी के लिए गांव में कोई मौजूद नहीं है, लेकिन यदि पुलिस पूरी कंपनी को गांव के बजाए उस स्थान पर एम्बुश लगाए जहां से अवैध उत्खनन होता है और ट्रेक्टरों की जप्ती का अभियान चलाए तो रेतमाफिया की कमर टूट सकती है, लेकिन यदि पुलिस ने अपना टारगेट ग्रामीणों को अरेस्ट करना बनाया तो ग्रामीणों को कोई परेशानी नहीं होगी। कुछ दिनों में वो सब पेश हो जाएंगे।