कीर्तिराणा/पचमेल/ अब क्षेत्रीय भाषाओं के ख़त्म होते मान-सम्मान को लेकर समाजों में सजगता पैदा हुई है। सिंधी समाज की महिलाएं शपथ और संकल्प ले रही हैं की बच्चो को सिंधी भाषा से जोड़ने का कम करेंगी। राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने का आन्दोलन चल रहा है। इसी तरह मालवी भाषा के मान के लिए मालवी जाजम जैसे आयोजन नियमित हो रहे हैं। अपनी बोली के लिए जागी यह ललक एक तरह से अपनी भाषा के साथ खुद हमारे ही द्वारा वर्षो तक की गई धोखाधड़ी का अब प्रायश्चित लगती है।
बगीचे में टेंट लगा हुआ था। महिलाओं की खूब चहल-पहल थी। पहले लगा की कोई कीर्तन समारोह के लिए महिलाएं जुट रही हैं लेकिन जानकारी ली तो पता चला की महिला सिंधी समाज का शपथ विधि समारोह है। शपथ विधि से आभास यह हुआ की संस्था के चुनाव हुए होंगे तो नवानिर्वाचित महिला पदाधिकारी पूरे कार्यकाल के दौरान समाज की उन्नति के लिए संगठन के माध्यम से काम करने की शपथ लेंगी। अपनी जानकारी बढाने के लिए कुछ महिलाओं से चर्चा की तो जानकार आश्चर्य हुआ की शपथ विधि तो है लेकिन सारी महिलाएं यह संकल्प लेंगी की अपने घरों-समाज में अपने बच्चों को सिंधी भाषा बोलने-समझाने के लिए प्रेरित करेंगी।
इंदौर के महिला सिंधी समाज की ही तरह भोपाल के बैरागढ के सिंधी समाज ने भी मातृभाषा से दूर होती जा रही आज की पीढी में भाषाई लगाव जागृत करने के लिए ऐसी ही पहल शुरू की है। महाराष्ट्र में सिंधी समाज का गढ़ समझे जाने वाले उल्हास नगर में भी समाज के संगठनों द्वारा इस दिशा में अभियान चलाया जा रहा है। यही नहीं समाज की पंचायतों-संतों द्वारा भी अपने धार्मिक समागम में अपनी बात-अपनी भाषा में कहने का आह्वान किया जाने लगा है।
मुझे ऐसे में आम मराठी भाषियों को लेकर दिए जाने वाले मीठे उलाहने याद आते हैं की जहां महाराष्ट्रीयन समाज के दो लोग मिले की आपल्या-आपल्या में गप्पा-गोष्ठी शुरू कर देते हैं फिर यह भी नहीं देखते की साथ खड़े लोग उनकी भाषा समझ भी पा रहे हैं या नहीं। कई बार तो ऐसा भी हुआ की छजलानी को सिंधी समाज का और मुझे राणे समझ कर परिचय प्राप्त करने वालों ने अपनी मातृभाषा में चर्चा शुरू कर दी। तब अफ़सोस भी हुआ की काश हमें भी उनकी भाषा बोलना आती। महाराष्ट्रीयन समाज का अपनी भाषा के प्रति जो समर्पण-लगाव है वैसा लगाव अन्य समाजों में कम ही नजर आता है। गाँव-चौपाल से गायब होती मालवी की हालत डायनासोर जैसी ना हो जाए शायद इसीलिए मालवी जाजम जैसे साप्ताहिक आयोजन में श्रोता-साहित्यकारों की संख्या में इजाफा होने लगा है।
राजस्थान के प्रमुख शहरों में पत्रकारिता और "आपणी भाषा-आपणी बात" जैसे आन्दोलन में सहयोग के वक्त राजस्थानी भाषा के वैभव को पुन: स्थापित करने के लिए संघर्षरत परलीका (हनुमानगढ़) के सत्यनारायण सोनी सहित अन्य भाषाविदों से चर्चा होती थी तो उनका यह दर्द उभर आता था कि आजादी से पहले शिक्षा और राजकार्य का माध्यम रहने के साथ ही साहित्यिक दृष्टि से समृद्ध मानी जाने वाली राजस्थानी भाषा को पहले जैसा गौरव दिलाने के लिए मुश्किलें आ रही हैं तो उसके प्रमुख कारणों में एक बड़ा कारण आज की पीढी का अपनी बोली-अपनी भाषा से दूर होते जाना भी है।
मातृभाषा को लेकर महात्मा गांधी का सदैव आग्रह रहा और सम्मेलनों में उन्होंने कहा भी है की जो बालक अपनी मातृभाषा की बजाय दूसरी भाषा में शिक्षा ग्रहण करते हैं वो आत्महत्या करते हैं। मेरी मातृभाषा में चाहे जितनी खामियां क्यों ना हो लेकिन मैं उससे वैसे ही चिपके रहूँगा जैसे बच्चा माँ के सीने से चिपका रहता है।
मुझे लगता है की अपनी भाषा को अपने ही घर से बेदखल करने के गुनाहगार तो हम ही लोग हैं। हमें अपने बच्चों को कान्वेंट में पढ़ाना स्टेट्स सिम्बल लगता है। घर आए मेहमानों के सामने बच्चे से हम "जोनी-जानी यस पापा.." सुनाने का तो खूब आग्रह करते हैं लेकिन इस बात की चिंता कहाँ करते हैं की उसे अपनी बोली की कहावतें, गीत आदि भी आते हैं या नहीं। अंग्रेजी माध्यम वाले स्कूलों में एडमिशन के लिए हमें रात भर कतार में खड़े रहने की कथा सुनाने में गर्व महसूस होता है पर हम यह नहीं देख पाते की वहां गेट बाहर कर दी गई अपनी बोली को हम भी बुहार कर बाहर फेंकने जैसा ही काम कर रहे हैं।
समाजों द्वारा संचालित किए जाने वाले स्कूलों में क्षेत्रीय भाषा को अनिवार्य कर भी दिया जाए तब भी हर चार-आठ कोस पर बदल जाने वाली बोलियाँ घर-घर में सम्मान तभी पा सकती हैं जब इन्हें भी बहन-बेटी-मौसी जितना प्रेम मिले। पहले तो ना आने वाली भाषा सीखने को एक अतिरिक्त योग्यता समझा जाता था और आज हालात ऐसे बनते जा रहे हैं की अपने हाथों बिगड़े कल को आज सुधारने, अपनी क्षेत्रीय बोली के मान सम्मान की रक्षा के लिए आन्दोलन करना पड रहे हैं। बच्चों को मातृभाषा का महत्व समझाने के लिए माँ,दादी , नानी संकल्प-शपथ लेना यह भी दर्शाता है संस्कारों का खेत ना जाने कब से बागड़ ही खा रही थी अच्छा हुआ की देर से ही सही चेते तो।