भोपाल। प्रदेश कांग्रेस के मीडिया विभाग के अध्यक्ष मानक अग्रवाल ने आज जारी बयान में कहा है कि प्रगति की दौड़ में सबसे पीछे खड़े आदिवासियों के उत्थान के लिये सीधे तौर पर जिम्मेदार आदिमजाति कल्याण विभाग इन दिनों ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार के दलदल में फंसा हुआ है।
स्कूल, छात्रावास और आश्रम संस्थाओं के लिए विभाग द्वारा जिला स्तर पर हर वर्ष अरबों की सामग्री खरीदी जाती है। इस खरीदी में होने वाला भ्रष्टाचार आदिमजाति कल्याण विभाग में बुलंदियों को छू रहा है। इसके अलावा विशेष पिछड़ी जनजातियों से संबंधित योजनाओं में भी भारी भ्रष्टाचार हो रहा है।
अग्रवाल कहा है कि श्योपुर जिले में आदिवासियों की काफी जनसंख्या है। वर्ष 2011-12 में जिले के विभागीय छात्रावासों और आश्रम स्कूलों के लिए सामग्री की करोड़ों की अनियमित खरीदी की गई है। इन सामग्रियों में स्कूल बैग, जूते, मोजे, कंबल, स्वेटर, गद्दे और कंबल कवर शामिल हैं। इस घोटाले के संबंध में लोकायुक्त और आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो को भी सप्रमाण शिकायत की गई है।
बताया गया है कि राजनीतिक दबाव डलवाकर यह शिकायत वापस कराई गई है। घोटाले में कलेक्टर और आदिमजाति कल्याण विभाग के सहायक आयुक्त की तरफ उंगली उठाई जा रही है। ऐसी दशा में राज्य सरकार को श्योपुर जिले में वर्ष 2011-12 में विभागीय खरीदियों की तत्काल उच्च स्तरीय जांच कराना चाहिए।
श्री अग्रवाल ने कहा है कि यह घोटाला काफी बड़ा है, इस कारण ऐसी शिकायत है कि इसको भोपाल में उच्च स्तर पर 40 लाख रूपये में रफा-दफा कर दिया गया है, जिसको लेकर आदिमजाति कल्याण विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों की भूमिका भी संदेह के घेरे में है। मुरैना के लोकेन्द्र पाराशर नामक व्यक्ति ने इस संबंध में लोकायुक्त में शपथ पत्र प्रस्तुत की जांच की मांग की है।
उन्होंने कहा है कि आदिमजाति कल्याण विभाग की इन जिला स्तरीय करोड़ों की खरीदियों में राज्य सरकार के भंडार क्रय नियमों की धज्जियां उड़ाई गई है। सामग्री की प्राप्त मात्रा एवं गुणवत्ता भी संदिग्ध बतायी गई है। सप्लाई आर्डर के अनुसार सामग्री प्राप्त न होने के बावजूद प्रतिष्ठानों को पूरा भुगतान कर दिया गया है। शिकायत है कि ये सारी खरीदियां कमीशनखोरी की नीयत से दलालों के माध्यम से की गई हैं।
कांग्रेस के मीडिया विभाग प्रमुख ने आगे कहा है कि श्योपुर जिले में सहरिया विशेष पिछड़े जनजाति समूह के हितग्राहियों को बैल जोड़ी और दुधारू पशु देने की योजना में भी घपले की शिकायतें हैं। इस खरीदी पर वर्ष 2011-12 में 75 लाख रूपये खर्च होना बताया गया है। सहरियाओं को ऐसे बीमार और कमजोर बैल खरीद कर दिये गए जो एक महीने के भीतर ही मर गए।
योजनांतर्गत दलालों के माध्यम से दी गई अधिकांश बेलजोडियां भी खेती के काम के लायक नहीं हैं। आपने इन संदिग्ध खरीदियों में श्योपुर के जिला कलेक्टर और सहायक आयुक्त की भूमिका की गहन जांच कराने और प्रथम दृष्टया स्पष्ट आरोपों के आधार पर दोनों के विरूद्व भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और अनुसूचितजाति जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत आपराधिक प्रकरण दर्ज कराने की मांग की है।