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शोक की घड़ी में दावत उड़ाने वालों में मंत्री विजय शाह भी

भोपाल। दामिनी की मौत, राष्ट्रीय शोक के दिन दावत उड़ाने वालों में भाजपा विधायक विश्वास सारंग, कांग्रेस नेता अजय सिंह राहुल, सुरेश पचौरी के बाद अब भाजपा नेता और मध्यप्रदेश सरकार के मंत्री विजय शाह का नाम भी शामिल हो गया है। श्री शाह ने बांधवगढ़ में अपने मित्रों को शाही दावत दी। 


अपने एक सैकड़ा कांग्रेसियों की आफीसर्स मैस में हुई लजीज दावत के मामले में चुप्पी साधते हुए प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया ने मंत्री विजय शाह का मामला उजागर किया है। उन्होंने कहा कि दिल्ली में गैंगरेप की शिकार छात्रा की मृत्यु के शोक में जब सारा देश आंसू बहा रहा था तब भाजपा के एक विधायक भोपाल में अपने जन्मदिन का शाही जश्न मना रहा था। ऐसी संवेदनहीनता राज्य के आदिमजाति कल्याण मंत्री विजय शाह ने दिसम्बर महीने के अंतिम दिनों में दिखाई है। वे उमरिया जिले के बांधवगढ़ में नया वर्ष मनाने के लिए अपने 30 साथियों के साथ 30 दिसम्बर को ही बांधवगढ़ पहुंच गए थे। 

यह जानते हुए भी कि गैंगरेप की शिकार छात्रा की मृत्यु के कारण पिछले वर्षों की तरह सार्वजनिक रूप से नये वर्ष का जश्न नहीं मनाया जा रहा है, मंत्री ने 31 दिसम्बर को वहां शाही दावत दी। यह दावत कितनी शाही थी, उसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि 

  • एक क्विंटल मछली, 
  • 60 किलो मटन
  • 30 किलो मुर्गे 
  • लाखों की महंगी शराब 


मंगाई गई थी। आदिवासी और दलितों के कल्याण के लिए उत्तरदायी विभाग के मंत्री का यह आचरण भाजपा सरकार को शर्मसार करने के लिए काफी है। श्री भूरिया ने विजय शाह के इस गैर जिम्मेदाराना और अशोभनीय आचरण पर उनको मंत्री पद से बर्खास्त करने की मांग राज्यपाल से की है।

श्री भूरिया ने कहा है कि आदिमजाति एवं अनुसूचित कल्याण मंत्री का यह ‘‘शाही आचरण’’ इस कारण भी निंदनीय है कि उन्हीं दिनों आदिम जाति कल्याण विभाग की ओर से बांधवगढ़ में आयोजित ‘‘आदिरंग’’ नाम के लोक नृत्योत्सव में भाग लेने के लिए सैकड़ों की संख्या में आदिवासी लोक कलाकार भी बांधवगढ़ आये हुए थे। बताया गया है कि इन लोक कलाकारों को भारी अव्यवस्थाओं के बीच सरकारी छात्रावासों में ठहराया गया था। 

कलाकारों के ठहरने-खाने का इंतजाम भी संतोषजनक नहीं था। कार्यक्रम स्थल से 10 किलोमीटर दूर जिस छात्रावास में उन्हें ठहराया गया था, वहां नहाने आदि की पर्याप्त व्यवस्था भी नहीं थी। उसके लिए उन्हें रोज पास की नदी पर जाना पड़ता था। 

पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा है कि एक तरफ तो राज्य सरकार मुंबई के फिल्मी कलाकारों और गायक-संगीतकारों को अपने कार्यक्रमों में बुलाकर करोड़ों का एक मुश्त भुगतान करती है, जबकि दूसरी तरफ दुनिया भर में म.प्र. का गौरव बढ़ाने वाले आदिवासी लोक नृत्यों को सरकारी उत्सवों में प्रस्तुत करने वाले आदिवासी कलाकारों के साथ ‘‘केवल मजदूर’’ मानकर व्यवहार किया जाता है। आपने कहा है कि बांधवगढ़ में जब आदिवासी कलाकारों के पारिश्रमिक का सवाल उठा तो आदिमजाति कल्याण मंत्री ने यह कहकर चैंका दिया कि वे कोशिश करेंगे कि उन्हें दैनिक मजदूरी के बराबर तो पारिश्रमिक मिले। मंत्री के इस कथन में प्रदेश की समृद्ध आदिवासी संस्कृति और सम्मानित लोक कलाकारों का तिरस्कार साफ झलकता है। 

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