प्रतिदिन@राकेश दुबे/ भोजशाला को अपना आराध्य स्थल बताकर जो दो समुदाय वहां आराधना को अपना अधिकार मानते है, कल वहां हुई प्रशासनिक कार्रवाई जैसे आंसू गैस, लाठी चार्ज इत्यादि के लिये आज सरकार को कोस रहे हैं | शहर काजी ने भोजशाला में नमाज़ न होने का खंडन किया है और प्रशासन ने वहां पूजा करने वालों का जोरदार स्वागत लाठियों से किया |
इसमें प्रशासन कहाँ सफल रहा और इससे कौन खुश हुआ ? इन सवालों से बड़ा सवाल यह है कि कल के इस बवाल की पीछे कौन था ? आज पुलिस की एक गाड़ी में आग लगाने और पूरा धार जिला बंद रहने के समाचार हैं |
इस पूरी दुर्घटना की सारी कड़ियों को जोड़ने पर जो चित्र उभरता है | उसे इस कथा के माध्यम से समझा जा सकता है | एक स्कूल के विद्यार्थियों से कहा गया कि वे दिन में एक अच्छा काम करें | दूसरे दिन दो विद्यार्थी एक नेत्रहीन को सड़क पार करा आये | शिक्षक को अपनी शूरवीरता का किस्सा बयान किया – वो तो जा ही नहीं रहा था,हम दोनों ने उसे उठाया और सड़क पार करा दी | ऐसे ही धार में आरधना करा दी |
भारतीय वांग्मय में हर कथा की फलश्रुति भी होती है | इसकी फलश्रुति में श्री लाल कृष्ण आडवाणी द्वारा कई सभाओं में सुनाया गया किस्सा स्मरण में आता है | जिसमे राजा दंड स्वरूप सौ जूते अथवा सौ प्याज खाने की सजा देता है | आडवाणी जी बड़े रोचक ढंग से इससे शिक्षा लेने कि बात भी कहते हैं | यहाँ सजा शुरू हो गई है, दोनों सजा एक साथ |
इस सारे घटना क्रम की जाँच होगी |न्यायलय में मुकदमे भी है | कई लोग घोषित कई लोग अघोषित रूप से जेल में बंद है | जाँच आयोग के विषय बिंदु में राजनेताओं की भूमिका भी एक विषय हो तो जन सामान्य का भ्रम दूर होगा हमेशा के लिए |