चंदा बारगल/ बसंत को ऋतुओं का राजा यानी ऋतुराज कहा जाता है और हिंदू संस्कृति में बसंत का अपना विशिष्ट महत्व है और राजा भोज की नगरी धार जैसी बसंतपंचमी की पूजा शायद ही किसी दूसरे शहर में होती हो। जो महत्व अयोध्या में राम का और मथुरा कृष्ण का है, वही महत्व धार में मां सरस्वती का है, किंतु यह क्या बसंत पंचमी पर मां सरस्वती की पूजा भी हुई मुस्लिम भाइयों की इबादत भी, भले ही भारी तनाव, दहशत और बलप्रयोग के बीच हुई हो।
यह सब हुआ है 'शिव-राज' में। राज-व्यवस्था की बात करें तो 'शिव-राज' छत्रपति शिवाजी महाराज की मिसाल हम देते आए हैं और छत्रपति शिवाजी महाराज के शासनकाल और देवी अहिल्याबाई होलकर की मिसाल हमारे सामने है। इन दिनों मप्र के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के लिए 'शिव-राज' शब्द प्रयुक्त किया जा रहा है।
यदि हम भोजशाला के संदर्भ में बात करें तो वहां न भाजपा थी और न ही सरकार। वहां था तो केवल प्रशासन और प्रशासन में भी इंदौर रेंज की आईजी अनुराधा शंकर, जिन्होंने सारे सूत्र सम्हाल रखे थे। बेशक, धार बारूद के ढ़ेर पर बैठा था और जरा-सी चिनगारी उसे शोले में बदल सकती थी, ऐसे आसन्न संकट से धार को बखूबी बचा लिया गया।
अब जब, बसंत पंचमी बीते तीन हो चुके हैं, तब 'शिव-राज' के ही मंत्री कैलाश विजयवर्गीय आईजी अनुराधा शंकर के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। कैलाश विजयवर्गीय ने यहां तक कहा है कि ऐसे अफसर बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे। उनका तर्क है कि हमारे राज में हमारे मुख्यमंत्री के खिलाफ पार्टी के कार्यकर्ता नारे लगा रहे हैं, तो यह नौबत अफसरों की वजह से ही आई है।
धार, भाजपा का गढ़ माना जाता है और इसे गढ़ने का श्रेय भाजपा के वरिष्ठ नेता विक्रम वर्मा को जाता है। संप्रति उनकी पत्नी नीना वर्मा वहां से विधायक हैं। वे न इस आंदोलन में कहीं दिखाई दीं और न ही मां सरस्वती के पूजन में। उन्होंने तीन दिन बाद अपनी जुबान को कष्ट दिया और मुंह खोला तो प्रशासन पर तोप दाग दी।
धार के प्रभारी मंत्री महेंद्र हार्डिया तो कहीं परिदृश्य में ही नहीं थे, वे दो दिन बाद धार पहुंचे भी तो मुख्यमंत्री के कहने पर, इसलिए उन्हें क्षुब्ध नागरिकों ने अपने आक्रोश का शिकार बनाया। आखिर, प्रभारी मंत्री होता क्यों है? जो पिट गए हैं, वे कोई और नहीं, भाजपाई या हिंदूवादी ही हैं। साधना की कद्र हो और भावनाएं इस तरह कुचली जाएंगी तो यह 'शिव-राज' के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं।