भारतीय जनता पार्टी में यशवंत सिन्हा, राम जेठमलानी और अब कलराज मिश्र ने पूरी तरह से मान लिया है कि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के लिए सर्वाधिक उपयुक्त उम्मीदवार हैं और पार्टी को उन्हें चुनाव के पहले ही इस पद का भावी उम्मीदवार घोषित कर देना चाहिए। भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह भी अब इसे आधा-अधूरा मानने लगे हैं।
उनकी शेष आधी राय में दो हिस्से है 1. संघ की मर्जी 2. अपने पद की निरापदता। भाजपा अध्यक्ष बनने के पहले वे मोदी के पक्ष में नहीं थे। वैसे इस सारी बहस के दौरान मोदी चुप हैं। उनके खास लोग दिल्ली में कह रहे हैं| मोदी केंद्र की बात मानेंगे पर अपनी तर्ज पर।
भाजपा के प्रत्येक निर्णय पर संघ की सहमति और असहमति को तवज्जो दी जाती है। संघ की कोई स्पष्ट राय इन दिनों नहीं आ रही है। भाजपा में संघ से भेजे गये संगठन मंत्री रामलाल का हर मामलें में सुरेश सोनी की ओर देखना भी संघ के अधिकारियों को नागवार गुजर रहा है। संघ के पूर्व अधिकारी एम् जी वैध्य उपाख्य बाबुराव जी राय कुछ अलग है। वहीं मनमोहन वैध्य, मोदी जी के अतिरिक्त किसी को पसंद नहीं करते। मोदी का वजन संघ के कुछ असंतुष्ट नेताओं के अतिरिक्त, संघ के सभी अनुषांगिक बड़ा हुआ मानते हैं। 7 फरवरी विश्व हिन्दू परिषद की बैठक रचना का मुख्य तत्व साधन संग्रह गुजरात से ही है।
अब भाजपा के अन्य नेता जो दिल्ली और अन्य राज्यों में है। अन्य मुख्यमंत्रियों को दिल्ली के नेता इस जवाबदारी के योग्य नहीं मानते। दिल्ली के नेता खुद नहीं तो तुरुप के पत्ते की तरह आडवाणी के नाम का आगे करेंगे। कांग्रेस में फैसला होने में देर नहीं लगेगी, भाजपा में यह राग पुराने फिल्मी गाने की तरह चल रहा है कि अभी बता दो मोदी प्रधानमंत्री होगा कि नहीं।