सत्यकथा: एक तड़पती हवस और हत्याकांड

सिंगरौली में घटित हुआ एक हत्याकांड की कहानी तड़पती हवस से हत्याकांड तक के सफर को बयां करती है। कैसे एक खुशहाल घर में आ लग गई और कैसे रंगीन सपनों के पीछे दबे पांव मौत घर के भीतर तक चली आई। 

दिन का वक्त था, मौसम में गुनगुनी ठंड अब भी थी, लेकिन दिन की हवा अचानक उस समय गर्मा गई जब सिंगरौली जिले के सरई थाना प्रभारी मलखान सिंह को भरसेड़ी गांव में रहने वाले राजू साहू ने आकर अपने माता-पिता, पत्नी सुनीता और तेरह वर्षीय बेटी पूजा सहित घर के चार सदस्यों की हत्या तथा लूट की जानकारी दी। एक ही परिवार के चार लोगों की हत्या की बात सुनकर थाना प्रभारी ने तत्काल घटना की जानकारी एसपी इरशाद वली, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक संजीव सिन्हा तथा एसडीओपी पीएल कुर्वे को दी। राजू के घर के बाहर अच्छा खासा मजमा लगा था जगह-जगह फैला खून, क्राइम सीन को खासा डरावना बना रहा था। कुछ देर बाद पुलिस अधिकारी भी मौके पर पहुंचे, घटनास्थल के निरीक्षण के बाद पुलिस अपने काम में लग गई।

सबसे महत्वपूर्ण थी संदिग्ध जयभान सिंह की गिरफ्तारी, जिस पर राजू ने अपनी एफआईआर में शक व्यक्त किया था। कागजी कार्रवाई के बाद पुलिस ने चारों लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दीं और मुखबिरों की एक टीम ने फरार हो चुके जयभान सिंह की गिरफ्तारी के लिए उसके गांव लामी में डेरा डाल लिया। पुलिस पर भी इस जघन्य हत्याकांड के आरोपियों को पकडऩे का दबाव बढ़ रहा था। एक दिन अचानक आधी रात को मुखबिर ने जयभान के घर पहुंचने की खबर पुलिस को दी। सूचना मिलते ही टीआई ने टीम के साथ मिलकर जयभान के घर को चारों ओर से घेर लिया। अपनी पत्नी के साथ सो रहे जयभान को जैसे ही खतरे की भनक लगी, वह खेतों की तरफ भाग निकला। पूरे इंतेजाम के साथ आई पुलिस की टीम ने उसे जल्द ही पकड़ लिया और थाने ले आई। थाने में उसने सामूहिक हत्याकांड और लूट में शामिल उसके दो साथियों के नाम के साथ पूरी कहानी बताई।

घटना के बाद गांव वालों का कहना था कि दफीने में मिली माया छत्रपति के परिवार का काल बनकर आई थी। गांव के लोगों के अनुसार पहले यह इलाका डकैतों से भरा पड़ा था जो पुलिस से बचने के लिए अक्सर अपनी लूट का माल किसी पहचान के सहारे खेतों में दबा देते थे। ऐसे में कई बार डकैतों के मारे जाने, पकड़े जाने पर या उनके जेल से छूटकर वापस आने तक वह धन या तो किसी दूसरे के हाथ लग जाता है या खेत की पहचान का चिन्ह ही उस समय तक नष्ट हो जाता है, जिसके कारण वह धन जमीन में ही गड़ा रह जाता है। गांव वाले यह भी मानते हैं कि ऐसा धन हर किसी को नहीं फलता। जिसको फलता है वह राजा बन जाता है, वर्ना सब कुछ नष्ट कर देता है।

सुनीता चाहती थी कि उसका पति राजू सारा कामधाम छोड़कर चौबीसों घंटे उसके साथ रहें, उसकी तारीफ करें और वे बाहर घूमने जाएं, लेकिन राजू ने ऐसा नहीं किया। कभी वह बेशर्म बनकर राजू से अंदर कमरे में चलकर सोने का कहती भी तो राजू जवान हो रही बेटी के साथ जाकर सोने का कहकर उसे टाल देता। ऐसे में सुनीता के पास कोई और चारा नहीं रह जाता था कि वह अपने तन-मन की आग में रात भर सुलगती रहें। सुनीता के जिस्म की आग एक दिन इस तरह से पूरे घर को जला देगी इस बात का किसी को अंदाजा तक न था।

छत्र धारी साहू के पड़ोस में रहने वाले रामाश्रय यादव के घर उसका रिश्तेदार जयभान सिंह रहने पहुंचा, जयभान जब घर के बाहर बैठा था, उसी समय सुनीता वहां से निकलीं। सुनीता की सुंदरता और उसकी मस्त चाल देखकर जयभान ने न जाने क्या भाप लिया कि वह बार-बार रामाश्रय के घर आने लगा। इस दौरान उसने सुनीता के ससुर छत्रधारी से भी थोड़ी जान-पहचान बना ली। सुनीता के नजदीक पहुंचने के फेर में वह छत्रपति के घर भी आने-जाने लगा। सुनीता ने भी जयभान की आंखों में उसे देखकर उतर आने वाले खून को जल्द ही नाप-तौल लिया। जयभान जिस रोज गांव में आता सुनीता खूब सजती और बार-बार बाहर आकर जयभान के मन में जल रही आग को हवा देकर अंदर चली जाती।

सुनीता की हरकतों से जयभान को भी अंदाजा हो गया था कि सुनीता भी वही चाहती है जो उसके मन में है। एक दिन मौका देखकर वह दोपहर के समय सुनीता के घर में घुस गया। जयभान जब एक घंटे बाद सुनीता के घर से बाहर निकला तब उसके चेहरे पर संतोष के भाव थे, तो घर के अंदर बिस्तर पर लेटी सुनीता की गहरी-गहरी सांसें भी कुछ और ही संकेत दे रही थी। इसके बाद तो अक्सर ही जयभान गांव में आता और मौका देखकर सुनीता के घर उससे मिलने चला जाता। उन दोनों के लिए मौकों की कोई कमी भी न थी, पति सुबह होते ही होटल खोलने दूसरे गांव चला जाता था और सास-ससुर खेत पर। घर पर रह जाती केवल बेटी पूजा, जो दोपहर होते-होते सहेलियों के साथ खेलने निकल जाती थी। घर पर कभी मौका न मिलने पर सुनीता भी अक्सर किसी बहाने से गांव के बाहर एकांत में प्रेम-मिलन के लिए पहुंच जाया करती थी।

 प्रेम संबंधों के दौरान जयभान ने सुनीता से कहा कि वह उसे रानी बनाकर रखना चाहता है, इस पर सुनीता ने कहा कि रानी तो मैं अब भी हूं महारानी बनाने की बात करो। जयभान पर भरोसा करते हुए सुनीता ने बताया कि मेरे ससुर को खेत में सोने से भरा घड़ा मिला है, लेकिन कंजूस उसे अपने कब्जे में छुपाकर रखता है। ये मर जाए तो कल मैं सोने की बनकर पूरे गांव में घूमूं। क्या कह रही हो? सच कह रही हूं, लेकिन यह बात गांव में किसी को पता नहीं है। घर में भी हम चार के अलावा बेटी पूजा को भी नहीं बताया कि कहीं वह नादानी में किसी को बता न दें। फिर तुमने मुझे क्यों बता दिया? तुम्हारी बात ही कुछ और जब तुम्हें अपना देह सौंप दिया, तो दौलत देह से बड़ी थोड़ी न होती है। इतना कहकर सुनीता शर्माती हुई जयभान की बांहों में एक बार फिर सिमटने आतुर हो उठी।

इस राज को जानने के बाद जयभान का मन सुनीता के जिस्म से निकलकर उस दौलत पर फिसल रहा था, जो सुनीता के ससुर को खेत में मिली थी। उस रोज वह बेमन से सुनीता के मन की इच्छा पूरी कर अपने गांव चला गया, लेकिन उसके दिमाग में अब भी धन घूम रहा था। पहले उसने धन को पाने में सुनीता की मदद लेनी चाही, परंतु वह जानता था कि सुनीता ऐसा नहीं करेगी। जयभान बस किसी भी तरह धन पाना चाहता था। इस बीच उसकी मुलाकात गांव के छटे बदमाश बब्बू सिंह व सत्यनारायण तिवारी से हो गई। उसने उन दोनों को पूरी बात बताकर  अपने साथ लूट के लिए तैयार कर लिया।

प्लान के तहत तीनों भरखेड़ी रेलवे स्टेशन के पास मिले और अपने साथ धारदार हथियार लेकर छत्रधारी साहू के घर पहुंच गए। अंदर घुसते ही आंगन में उनको छत्रधारी मिला, जिससे जयभान ने सोने के घड़े के बारे में पूछा तो उसने इस बात से इंकार किया। अपनी प्रेमिका की बात पर विश्वास करते हुए जयभान ने उसके साथ मारपीट शुरू कर दी। उसी वक्त सुनीता की सास वहां आ गई और शोर मचाने लगी। पकड़े जाने के भय से तीनों ने मिलकर उन दोनों की चाकुओं से गोद कर हत्या कर दी।

दोनों को मारने के बाद अब वे तीनों सुनीता की तरफ बढ़े, यह देखकर सुनीता ने अपने बचाव में उन तीनों पर हमला भी किया। इस बीच बब्बू व सत्यनारायण ने उसे पकड़कर काबू में कर लिया और उससे पूछताछ करने लगे। सुनीता से जानकारी न मिलने पर उन्होंने खुद ही धन को खोजने की सोची। इससे पहले उन्होंने सुनीता को भी ठिकाने लगा दिया और सोने के घड़े की खोज शुरू कर दी। इस बीच सुनीता की बेटी पूजा भी आ गई और उसने जयभान को पहचान लिया, इसलिए तीनों ने मिलकर उसे भी मौत के घाट उतार दिया। घर में जो कुछ भी मिला उसे समेट कर वे वहां से भाग निकलें।

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