भोपाल। ग्वालियर से राजनीति शुरू करने राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचने वाले नरेन्द्र तोमर अपने ही संभाग में भाजपा को संभाल नहीं पा रहे हैं। 15 दिसम्बर को होने वाले भाजपा जिलाध्यक्षों का निर्वाचन 15 फरवरी तक नहीं हो पाया। वेटिंग लिस्ट में शामिल मध्यप्रदेश के 12 जिलों में तीन ग्वालियर संभाग के हैं।
भाजपा में आंतरिक कलह का निराकरण किसी के पास नहीं है। युवा आयोग के बाद मध्यप्रदेश के 12 जिलों के जिलाध्यक्षों के चुनावों में हो रही धकापेल राजनीति ने इसे साबित कर दिया है।
यदि नरेन्द्र तोमर के अपने संभाग ग्वालियर की ही बात करें तो 6 में से 3 जिलों में भाजपा के जिलाध्यक्षों का निर्वाचन आज तक नहीं हो पाया है। अंतरकलह इस कदर हावी है कि कोई डिसीजन ही नहीं हो पा रहा है।
ग्वालियर जिले में तोमर गुट के ही देवेश शर्मा एवं अभय चौधरी आपस में भिड़े हुए हैं। इधर विवेक नारायण शेजवलकर का कार्ड भी आरएसएस की ओर से आ गया है। नरेन्द्र तोमर यहां धर्मसंकट में हैं। सबसे पहले तो आरएसएस का कार्ड खारिज करवाना है, फिर अपने ही दोनों समर्थकों को बिठाकर समझौता करवाना है। हालात यह है कि तोमर के पास ग्वालियर की समस्या का कोई समाधान नहीं है। अगला चुनाव भी यहीं से लड़ना है। किसे जिलाध्यक्ष बनाएं और किसे अपना विरोधी बना लें वो तय नहीं कर पा रहे हैं।
यशोधरा राजे सिंधिया के गढ़ शिवपुरी में भी हालात ऐसे ही हैं। सिंधिया की ओर से ओमी गुरू का नाम चलाया जा रहा है, जबकि नरेन्द्र तोमर चाहते हैं कि रणवीर रावत को रिपीट कर दिया जाए। प्रभात झा भी यही चाहते थे, बावजूद इसके सिंधिया के प्रभाव के चलते मनमानी की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं। यहां यशोधरा राजे सिंधिया को नाराज करना बहुत नुक्सानदायक हो सकता है। नरवर के नगरपालिका चुनावों में भाजपा सिंधिया को नाराज करके खामियाजा भुगत चुकी है। उसे तीसरे स्थान पर ही सिमटना पड़ गया था। सनद रहे कि सिंधिया की कृपा से शिवपुरी भी भाजपा का गढ़ बना हुआ है एवं तमाम सरकारी समस्याओं के बावजूद शिवपुरी में भाजपा की स्थिति मजबूत है।
अशोकनगर के हालात तो और भी ज्यादा खराब हैं। नरेन्द्र तोमर यहां जगन्नाथ रघुवंशी को अध्यक्ष बनाना चाहते हैं परंतु स्थानीय दिग्गज देशराज सिंह ने भानू रघुवंशी का नाम आगे बढ़ा दिया है। न केवल नाम बढ़ाया है बल्कि खुली धमकी भी दी है कि यदि भानू को जिलाध्यक्ष नहीं बनाया तो यहां से इतने इस्तीफे कराउंगा कि गिनते गिनते थक जाओगे। सिंधिया गुट की ओर से यहां नीरज मानौरिया का नाम चलाया जा रहा है। सिंधिया का नाम जुड़ने के बाद मानौरिया का वजन अपने आप बढ़ गया है और सिंधिया को नाराज करना भी खतरे से खाली नहीं होगा।
भिंड में जिलाध्यक्ष तो घोषित हो गया परंतु नरेन्द्र तोमर यहां पर जिला कार्यसमिति की घोषणा आज तक नहीं करवा पाए। अनुशासन की दुहाई देने वाले नरेन्द्र तोमर भिंड में तमाम निर्देशों के बावजूद कार्यकारिणी न बन पाने पर मौन हैं।
मजेदार तो यह है कि यहां भाजपा के संगठन मंत्री, प्रभारी और तमाम पदाधिकारी मौजदू हैं, बावजूद अपने ग्वालियर की अंतर्कलह संभाले नहीं संभल रही है।