छटपटा रहे हैं मध्यप्रदेश के अध्यापक, नए अन्ना की तलाश

shailendra gupta
भोपाल (उपदेश अवस्थी)। मध्यप्रदेश के अध्यापक तेजी से छटपटा रहे हैं और अध्यापकों के नेता अपनी राजनीति में जुटे हुए हैं। अध्यापकों की छटपटाहट है कि उनके वेतनवृद्धि के अलावा वो किसी भी सूरत में शिक्षा विभाग में संविलियन चाहते हैं। उन्हें मालूम है कि इससे बेहतर मौका फिर अगले पांच साल तक नहीं मिलेगा।

पूरे मध्यप्रदेश के गुरूजी, संविदा शिक्षक और अध्यापक केवल और केवल एक ही मंशा रखते हैं। किसी भी सूरत में शिक्षा विभाग में संविलियन और समान काम समान वेतन। संविलियन हो गया तो यह सब आसान हो जाएगा। 

अध्यापकों को मालूम है कि यह सबकुछ आसान नहीं है, लेकिन इसके लिए वो किसी भी स्तर पर संघर्ष करने को तैयार हैं। अध्यापकों के भीतर गुस्सा तेजी से बढ़ता जा रहा है। अब तो सोशल मीडिया के अलावा अपने नेताओं के फेसबुक पेज पर भी प्रदेश भर के अध्यापक कमेंट पेस्ट कर रहे हैं। वो किसी भी सूरत में चरणबद्ध आंदोलन या प्रतीक्षा करने के मूड में नहीं हैं। 

अध्यापकों का मानना है कि आगामी विधानसभा सत्र निकट है और इससे पहले यदि सरकार पर दवाब नहीं बनाया गया तो सबकुछ हाथ से निकल जाएगा। प्रक्रियाओं को अध्यापक बहुत बेहतर समझते हैं और उन्हें मालूम है कि संविलियन का फैसला विधानसभा सदन के भीतर ही हो सकता है। 

इधर अध्यापकों की राजनीति करने वाले नेताओं के अपने अपने गुणाभाग चल रहे हैं। वो इस बात को पूरी तरह से मान बैठे हैं कि संविलियन असंभव है और वो किसी भी सूरत में नहीं हो सकता। अत: जो मिल रहा है उसे ही लेकर चुप बैठ जाए। 

कुछ नेताओं ने पिछले दिनों सीएम शिवराज सिंह से मुलाकात कर उन्हें विश्वास दिलाया था कि अध्यापक हड़ताल पर नहीं जाएंगे। अंदर की बात यह है कि बार बार गुर्रा रही शिवराज सरकार भी भीतर से डरी हुई है। उन्हें मालूम है कि चुनाव जीतना है तो अध्यापकों को खुश करना ही होगा। कोई कुछ भी कहता रहे लेकिन राज की बात यही है कि दिग्विजय सिंह सरकार को गिराने वाली लॉबी यही संविदा शिक्षक और शिक्षा विभाग के कर्मचारी ही थे। 

संविदा शिक्षकों एवं अध्यापकों को भी अपनी ताकत मालूम है और अब वो इस बात को भी कहने से गुरेज नहीं कर रहे कि यदि नेताओं ने उनका नेतृत्व नहीं किया। आंदोलन को बेचने की कोशिश की और अध्यापकों के साथ अन्याय हुआ तो भले ही संविलियन न हो परंतु चुनाव में शिवराज सरकार को सबक जरूर सिखाएंगे। 

कुल मिलाकर लावा उबल रहा है। यह ठीक वैसा ही है जैसा कि पिछले दिनों जंतरमंतर पर दिखाई दिया था। फिलहाल प्रदेश स्तर पर कोई एक सर्वमान्य नेता सामने नहीं आया है, लेकिन यदि कोई नया अन्ना इन अध्यापकों को मिल गया तो तय मानिए शिवराज सरकार एक नए संकट में फंसने वाली है। 

संविदा शिक्षक एवं अध्यापकों से आग्रह है कि कृपया अपनी भावनाएं वो चाहे पक्ष में हों या विपक्ष में नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में शेयर करें ताकि वो एकमुश्त सभी को दिखाई दें। अपने अपने स्तर पर व्यक्त की जा रहीं प्रतिक्रियाएं अध्यापकों की शक्ति का प्रदर्शन नहीं कर पा रहीं हैं। 

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