ज्ञान की गंगोत्री जहाँ बहती हो,विश्व में जिस देश और नस्ल को ज्ञान के नाम पर नमन किया जाता हो | कई देशों के विद्वान जहाँ आज भी शोध के लिए आते हों | उस भारत के पेटेंट रद्द हो जाएँ , है न आश्चर्य की बात| जी, हाँ, ऐसा हुआ है और होते रहने की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता |
2010 के आंकड़े बताते हैं, पेटेंट के लिए भेजे गये भारतीय आवेदनों में से अधिसंख्य रद्द हो गये| क्यों 5000 करोड़ की राशि से श्याम गंगाराम पित्रोदा [अमेरिका जाकर सैम पित्रोदा होने वाले] की अध्यक्षता में बनी नेशनल इनोवेशन काउन्सिलऔर नेशनल नालेज काउन्सिल से ने कौन सा तीर मारा | सिर्फ एक तीर मारा की स्व. राजीव गाँधी की दोस्ती,और उसके नाम पर वे अब तक नवाजे जा रहे हैं |
यह सारी बात यहाँ ऐसे ही नहीं की जा रही है| भारत के बड़े वैज्ञानिक केंद्र और भारत सरकार के आंकड़े प्रमाणित करते हैं कि 1983 से अब तक कुल 826000 पेटेंट किये गये है इनमे से अनेक आवेदनों के रद्द होने के बाद भारत को बमुश्किल 6168 पेटेंट मिले | जबकि चीन को इसी अवधि में 128489 पेटेंट मिले| चीन में इस मद पर भारत से एक चौथाई राशि भी खर्च नहीं की गई | बकौल सैम पित्रोदा “मेरी दिलचस्पी ऐसी प्रोद्योगिकी में है जो सब कुछ बदल दे”|
अभी तो वे देश की मुद्रा को डालर में बदलने और निरस्त आवेदनों की संख्या बड़ाने में ही कामयाब रहे हैं | भारत सरकार चुपचाप है | पता नही कौन सी गोपनीय तकनीक संभल कर रखी है | नेशनल इनोवेशन काउन्सिल के सभी सदस्यों के पास भौतिकी या बायो तकनालाजी में डिग्री है,और इनमे से कोई भी किसी उत्पादन से नहीं जुड़ा है सबके सब विदेश से लौटे हैं और पित्रोदा के प्यादे हैं |