
संघ और संगठन फिर परिवार | और इस परिवार में रेहटी,इछावर अब छत्तीसगढ़ में कवर्धा, भोपाल और दिल्ली में खुद के और बच्चों के मित्र शामिल| सब की चिंता सबके शुभ की कामना | इसी कारण नानाजी सबके सब नानाजी के |
अंतिम यात्रा में कंधा देते हए शिवराज सिंह को भी वह सीख याद आ रही होगी| जो विधायक विश्राम गृह की खंड क्रमांक -१ में १९७७ में हम जैसे कुछ छात्र कार्यकर्ताओं को दी थी |कुछ भी हो जाये,अपनी और से कुछ भी गलत न हो| सिद्धांत तो सारे नेता बता देते है, पर उन पर चलने वाली पीढ़ी के अंतिम सिपाही थे नानाजी | राज्यसभा से लौटने के बाद कई बार मैंने पूछा अब क्या ? एक जवाब था -पार्टी का निर्णय | न किसी से शिकवा , न शिकायत और बहुत कुरेदने पर भी किसी की आलोचना नहीं|
भाजपा जिस दौर से गुजर रही है , उसमे ऐसे प्रकाश स्तम्भ की जरूरत है
| प्रणाम |