ऐसी क्या मजबूरी थी, जो यात्रा जरूरी थी

shailendra gupta
राकेश दुबे@प्रतिदिन। देश, दरगाह-दीवान और सेना के विरोध के बावजूद पकिस्तान के प्रधानमंत्री परवेज़ अशरफ की अजमेर यात्रा हो गई| उनके साथ हमनिवाला होने वाले सलमान खुर्शीद यह तक नहीं पूछ सकें कि उन जवानों के “सिर कहाँ है?” बड़ी चतुराई से सलमान खुर्शीद इसे निजी यात्रा बता रहे है|

हकीकत कुछ और ही है राजा परवेज़ अशरफ पाकिस्तान में डूबती नाव पर सवार है और यहाँ सलमान खुर्शीद| दिल्ली में चर्चा है कि इस यात्रा का विरोध देश की गुप्तचर एजेंसियों ने किया था| प्रधानमंत्री कार्यालय से भी प्रश्न खड़े किये गये, लेकिन सलमान खुर्शीद ने दबाव बना कर इस यात्रा की अनुमति दिलाई गई|

भारतीय सेना का भी इस मामले पर रुख कड़ा है| सेना प्रमुख ने आज साफ कहा है कि पूर्व के अनुभव अगर दोहराए गये तो भारतीय सेना ने चूड़ियाँ नहीं पहन रखी है| अजमेर में दरगाह के दीवान के साथ आज वहां की जनता दिखाई दी| भारी पुलिस बल के बावजूद प्रदर्शन हुआ और इतना तीव्र की अशरफ परवेज़ को रास्ता बदल कर ले जाना पड़ा| जयपुर में भी ऐसा ही हुआ|

अब महत्वपूर्ण बात भारत सरकार की विदेश नीति के मापदंड किसी भी निजी यात्रा को इतनी अहमियत नही देते| फिर इसे क्यों? पकिस्तान दूतावास इस बात से इंकार कर रहा है की यह यात्रा निजी थी| पकिस्तान की सेना के हेलीकाप्टर का इस्तेमाल भी इस यात्रा के निजी होने से इंकार करता है| सिर्फ एक ही कारण इस के पक्ष में दिखता है 2014 के चुनाव का वोट बैंक | अगर यही कारण है तो इससे घटिया और कुछ नहीं हो सकता| शहीदों के सिर का पता नहीं ऐसे कारणों से देश का सिर जरुर झुकता है ? देश की खातिर इसका जवाब आना चाहिए|

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