भोपाल। शिवराज सरकार के मैदानी आयोजनों का घरबैठे प्रेसनोटिया विरोध करने वाली कांग्रेस ने एक बार फिर अपनी परंपरा का पालन करते हुए कैलाश खेर के आयोजन में सुरेन्द्र पटवा के प्रचार पर आपत्ति जताई है। सनद रहे कि यह मामला दैनिक भास्कर के टेबलॉयड डीबी स्टार ने पहले पेज पर उठाया था, और शाम को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूरिया का बयान चला आया।
सामान्यत: एक्टिव विपक्ष का आशय ऐसे संगठन से होता है जो मीडिया के माध्यम से मुद्दों की ओर ध्यान दिलाए, परंतु मध्यप्रदेश में कांग्रेस, मीडिया द्वारा उजागर किए गए मामलों पर प्रेसनोट जारी कर विरोध दर्ज कराया करती है। यह परंपरा बहुत पुरानी है परंतु चुनाव नजदीक आने के बाद भी यह अलाली बंद नहीं हुई है।
भोजपुर उत्सव के दौरान कैलाश खेर ने जनता से स्थानीय विधायक सुरेन्द्र पटवा के लिए वोट मांगे थे। सरकारी आयोजन होने के कारण इस तरह की अपील कतई उचित नहीं थी। कांग्रेस को इसकी कानो कान खबर नहीं लगी। उसका नेटवर्क धरा का धरा रह गया जबकि डीबी स्टार जैसे टेबलॉयड ने दूसरे दिन इस मामले पर काम किया और तीसरे दिन प्रकाशित किया।
जैसे ही डीबी स्टार ने मामला उठाया, पीसीसी से प्रेसनोट चला आया। भूरिया जी ने कड़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने बालाघाट में हुए अटल ज्योति कार्यक्रम पर भी कार्यक्रम सम्पन्न हो जाने के लगभग एक सप्ताह बाद आपत्ति जताई है। आपत्ति भी मैदानी नहीं, बस प्रेसनोटी। अब ऐसी पार्टी जिसका नेटवर्क राजधानी में ही इतना कमजोर है, मामलों की जानकारी के लिए उसे मीडिया पर निर्भर रहना पड़ता है, से चुनावों में क्या उम्मीद की जाए समीक्षा का विषय है।
खैर जो भी हो, फिलहाल पढ़िए वो हुंकार जो केवल बयानों में ही दिखाई देती है (समझदारों के लिए चुटकुला, नासमझों के लिए गंभीर आरोप) :-
सरकारी कार्यक्रमों का भाजपा के चुनावी हित में दुरूपयोग बंद होना चाहिए: भूरिया
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया ने लाखों के खर्च पर सरकार द्वारा आयोजित होने वाले कार्यक्रमों का भारतीय जनता पार्टी के चुनावी हित में बढ़ते दुरूपयोग पर गहरी चिंता प्रगट करते हुए कहा है कि ऐसा दुरूपयोग, सरकार और भाजपा दोनों के लिए शोभनीय नहीं है। यह मान्य नैतिक सिद्धांतों के विपरीत भी है।
‘‘सरकार’’ और ‘‘सत्तारूढ़ पार्टी’’ दो अलग-अलग फेक्टर हैं। दोनों के बीच नैतिकता की लक्ष्मण रेखा हमेशा रही है। अफसोस की बात है कि शिवराज सिंह के दूसरे कार्यकाल में इस ‘‘लक्ष्मण रेखा’’ को बेशर्मी के साथ बार-बार लांघा जा रहा है। आयोजन तो शत-प्रतिशत सरकारी रहते हैं, किंतु उनका दोहन भारतीय जनता पार्टी की चुनावी संभावनाओं को बेहतर बनाने और भाजपा के वर्तमान विधायकों के प्रचार के लिये किया जा रहा है।
(अपना सवाल यह है कि जब सरकार धड़ाधड़ सरकारी धन का दुरुपयोग कर रही है तो आप चुप क्यों बैठे है। सड़कों पर क्यों नहीं उतरते, अखबारी विरोध कब तक करते रहोगे। ऐसे आयोजनों का अपने स्तर पर वीडियोग्राफी क्यों नहीं कराते, न्यायालय भी कोई चीज होती है, क्या वकीलों को देने के लिए भी फीस नहीं बची, या फिर शिवराज सरकार से फिक्सिंग है, सांप निकल जाने के बाद लाठियां पीटें ताकि राहुल गांधी भी खुश और मौके पर मुद्दा न उठाए ताकि अपने प्रिय मित्र शिवराज सिंह भी खुश। )
भूरिया ने कहा है कि मुख्य मंत्री को इसमें चाहे कोई बुराई नजर न आ रही हो, परन्तु जनता सब देख रही है और खूब समझ भी रही है। उन्होंने मुख्यमंत्री को चेतावनी दी है कि अब तक जो हो चुका है-वह तो हो गया, लेकिन सरकारी कार्यक्रमों का सत्तारूढ़ पार्टी के चुनावी हित में दुरूपयोग अब बंद हो जाना चाहिए। सरकारी आयोजनों की आड़ में भाजपा का चुनावी प्रचार को चुनावी वर्ष में कांगे्रस कतई बर्दाश्त नहीं करेगी।
(अब तक जो हुआ उस पर माफी देने का लाइसेंस भूरिया को किसने दिया। सरकारी खजाने में जमा एक एक पैसा जनता से टैक्स द्वारा वसूला गया है। मध्यप्रदेश में तो गैस सिलेण्डर तक पर एंट्री टैक्स है। दुरुपयोग जनता के पैसे का और माफी देने चले आए भूरिया। जनता ने कांग्रेस को वोट सरकार को माफ करने के लिए नहीं दिए थे। ठेकेदारी क्यों की जा रही है। क्या संघर्ष करने की हिम्मत नहीं है, या बात कुछ और ही है। )
श्री भूरिया ने सरकारी कार्यक्रमों के राजनीतिक उपयोग के उदाहरण देते हुए कहा है कि अटल ज्योति योजना से संबंधित कार्यक्रम शत-प्रतिशत सरकार के खर्च कर हो रहे हैं। 24 घंटे बिजली देने के ढि़ंढ़ोरे की मदद से भाजपा को चुनावी फायदा पहुंचाने की ‘‘अपवित्र भावना’’ से भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी को मुख्य मंत्री बार-बार प्रदेश में बुलाते हैं। श्री आडवाणी को बुलवाने में कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन जब वे सरकारी कार्यक्रम में भाजपा की उपलब्धियों के पंचम स्वर में गान करते हैं और राजनीतिक भाषण देते हैं, तो वह एतराज की बात है। यदि मुख्य मंत्री अपने राजनीतिक गॉड फादर को खुश करना ही चाहते हैं, तो भारतीय जनता पार्टी के जल्से आयोजित करें और आडवाणी जी के जी भर कर भाषण कराएं, कांग्रेस कोई आपत्ति दर्ज नहीं करायेगी।
(कार्यक्रम के एक सप्ताह बाद याद आया, सरकारी धन का दुरुपयोग किया गया है। कार्यक्रम के दूसरे दिन क्या अध्यक्ष समेत पूरी प्रदेश कांग्रेस कार्यसमिति छुट्टी पर गई हुई थी। )
आपने कहा है कि महाशिवरात्रि के उपलक्ष में राज्य सरकार के संस्कृति विभाग ने लाखों के खर्च से भोजपुर उत्सव आयोजित किया था, जिसमें सूफी गायक कैलाश खेर के गायन का कार्यक्रम भी शामिल था। कैलाश खरे ने चलते कार्यक्रम के बीच भोजपुर विधान सभा क्षेत्र के भाजपा विधायक सुरेन्द्र पटवा की ओर से पर्ची आने पर पहले तो उनकी तारीफ में खूब कसीदे पढ़े और फिर गायक खरे ने माईक पर कहा ‘‘आज का यह कार्यक्रम विधायकजी (सुरेन्द्र पटवा) की वजह से ही हो रहा है। ऐसे विधायक को आपको वोट देना चाहिए। क्या आप अगले चुनाव में सुरेन्द्र पटवा को वोट देंगे ?’’ गायक ने अपीलनुमा अपनी बात को तीन बार दोहराया भी था और श्रोताओं से विधायक के समर्थन में हाथ भी उठवाये थे। यह बात दूसरी है कि तीन बार निवेदन के बाद भी सुरेन्द्र पटवा को दुबारा चुनने के बारे में काफी कम लोगों ने हाथ उठाएं।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा है कि भोजपुर उत्सव का राजनीतिक फायदा क्षेत्रीय विधायक पटवा ने उठाया है, इसलिए कांग्रेस कार्यक्रम के खर्च की वसूली उनसे करने की मांग करना चाहती थी, किंतु भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं होगी, ऐसी आशा करते हुए खर्च की वसूली की मांग फिलहाल नहीं कर रही है। आपने विश्वास प्रगट किया है कि राज्य सरकार भविष्य में कांग्रेस को ऐसा मौका नहीं देगी, जब किसी सरकारी कार्यक्रम के चलते पार्टी को उसका उग्र विरोध करने के लिए मजबूर होना पड़े।
(मामला डीबी स्टार में छपने के बाद याद आया। आयोजन 10 मार्च को हुआ। विरोध 11 मार्च की सुबह दर्ज कराया जाना चाहिए था। विधानसभा भी चल ही रही है और बोर्डआफिस से लेकर विधानसभा तक सारी सड़कें कांग्रेसियों की इंतजार में हैं, फिर घर से निकलने की जहमत क्यों नहीं उठाई। मामले की जानकारी भी थी या नहीं। राजधानी में कांग्रेस का क्या कोई इन्फार्मेशन नेटवर्क ही नहीं है। दिनांक 12 मार्च को जब डीबी स्टार ने मामला उठाया तब भी विरोध दर्ज नहीं कराया, क्या सेटिंग चल रही थी, आज 13 मार्च को प्रेसनोट रिलीज करने का क्या फायदा। )
जबाव जनता को चाहिए, उस जनता को जो टैक्स चुकाती है, उस जनता को जो वोट देती है कांग्रेस को और जिसके बूते पर कांतिलाल भूरिया पूरे प्रदेश में लोकप्रिय होना चाहते हैं।
अंत में केवल एक सवाल, इस कमजोर नेटवर्क के चलते पीसीसी में किसको अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए।