राकेश दुबे@प्रतिदिन/ रामसिंह 12 वां कैदी था, जिसने तिहाड़ में आत्महत्या का प्रयास किया और सफल हो गया| कथित अपराधी था पर गरीब था| शराबी था पर गेंगस्टर नही था| रसूखदार नही था ,उसकी राजनीतिक पहुंच नहीं थी| अगर यह सब होता तो उसके पास भी वो सब होता जो दमदार कैदियों के पास होता है|
दूसरे कैदियों में और रामसिंह में एक समानता थी कि वह भी न्यायिक रिमांड पर था| पुलिस और न्यायिक रिमांड पर रहने वाले कैदी और सजा भोग रहे कैदी जेल मेन्यूल से इतर क्या –क्या सुविधा प्राप्त कर लेते हैं, जिनके रसूख होते हैं| तिहाड़ के बारे में ऐसे अनेक किस्से कहानी समाचार पत्रों में छपे होते हैं| सरकार के दोहरे मापदन्डों कि यह एक बानगी है|
खेल में एक खिलाडी है विजेंदर| उनकी पत्नी के नाम दर्ज गाड़ी ड्रग्स डील में मिली है| उनके साथी उन पर ड्रग्स लेने के आरोप लगा रहे हैं, सरकार चुप है| यहाँ भी कुछ ऐसा ही है| विजेंदर मुक्केबाज है| उनकी ही तरह मेडल लेन वाले भारतीय पद्धति की कुश्ती के खिलाडी रोजमर्रे की जिंदगी से संघर्ष करते अब कुश्ती को बचाने के लिए दिल्ली के जन्तर-मन्तर पर चकरघिन्नी हो रहे हैं| सरकार विजेंदर के लिए नियम बदले जा रही है, कुश्ती पर सरकार चुप है|
रेल तो आप हम रोज़ भोगते हैं| लटके,भटके और जैसे तैसे आम आदमी चला जाता है और रसूखदार लोगों के लिए रेल लेट भी कर दी जाती है| किसी भी घटना कि न्यायिक जाँच होना चाहिए| पर सरकार कि इस विभेदकारी नीति पर भी विचार होना चाहिए की वह शासन किसके लिए करती है| गुंडों के लिए, अपराधियों के लिए, रसूखदार लोगों के लिए या आम आदमी [अरविन्द केजरीवाल कि पार्टी से इतर] के लिए|
- लेखक श्री राकेश दुबे प्रख्यात पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।