भोपाल। मध्यप्रदेश में अध्यापकों की हड़ताल के चलते कई जिलों में शक्तिशाली प्रदर्शन दिखाई दे रहे हैं परंतु राजधानी में आंदोलन बहुत धीमा हो गया है। यहां आंदोलन के नाम पर ठीक वैसी ही रस्म अदायगी हो रही है जैसी की विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस किया करती है।
इस बार राजधानी में हुआ अध्यापकों का आंदोलन कई दफा उपहास का पात्र बना। प्रांताध्यक्ष मुरलीधर पाटीदार ने आमरण अनशन की घोषणा की। 24 फरवरी को वो अनशन पर बैठे भी, उनके साथ संयोजक ब्रजेश शर्मा ने भी अनशन शुरू कर दिया परंतु वो एक सप्ताह भी उपवास नहीं रख पाए। अस्पताल गए और अनशन तोड़ डाला।
मध्यप्रदेश के कई जिलों से खबर मिली है कि अनशन शुरू किया गया परंतु उसे लम्बा नहीं चलाया जा सका और अनशन तोड़ दिए गए। स्वयं पाटीदार को भी तीन बार अस्पताल भर्ती कराया गया, जीवन रक्षक दवाएं दीं और डिस्चार्ज कर दिया। एक बार भी पाटीदार एवं उनकी टीम की ओर से इस प्रक्रिया का विरोध नहीं किया गया।
इस प्रदर्शन ने शिवराज सरकार के सामने स्पष्ट कर दिया कि अध्यापक केवल वोटबैंक का दबाव बना सकते हैं, इसके अलावा लम्बा संघर्ष करने की हिम्मत इनमें नहीं है। वो पार्टटाइम आंदोलन ही कर सकते हैं। इसका पूरा पूरा लाभ शिवराज सरकार ने उठाया और हड़तालियों को बार बार कहा गया कि आप हड़ताल जारी रखें। जब मन भर जाए तब वार्ता के लिए आइएगा।
आमरण अनशन तोड़ने के बाद तो जैसे राजधानी में आंदोलन एक रस्मअदायगी भर रह गया है। सोमवती अमावस्या के अवसर पर महिलाएं यूं ही उपवास रखतीं हैं, बस शाहजहानी पार्क आ गए और इसी उपवास को विरोध स्वरूप किया गया उपवास बता दिया गया।
आज मंगलवार को सुन्दरकांड का पाठ करके विरोध जताया गया। अब मंगलवार को सुन्दरकांड का पाठ। बुधवार को गणेश चालीसा, गुरुवार को ब्रहस्पतिदेव की कथा, शुक्रवार को संतोषी माता का व्रत, शनिवार को तेल की पकौड़ियों का भंडारा, रविवार को पाक में सपरिवार पिकनिक मनाकर विरोध प्रदर्शन।
11 को सोमवती अमावस्या का व्रत, 12 मार्च मंगलवार को सुन्दरकांड का पाठ, 13 मार्च को शिवमंदिर में जाकर फूलहरा बनाओ, 20 को होलकाष्टक, 23 को अमालिकी एकादशी, 26 को होलिका दहन में शिवराज की बुराईयां जलाओ, सत्यनारायण जी की कथा करके वचन की याद दिलाओ, 27 को एक दूसरे को काला रंग लगाकर विरोध, भाजपा के विधायक और मंत्रियों को भी काले टीके लगाओ, 29 को भाजपाईयों को रक्षासूत्र बांधकर आओ, महिला अध्यापकों को सीएम हाउस भेज दो रक्षा सूत्र बांधने के लिए।
समझ नही आ रहा हड़ताल चल रही है या धार्मिक सांस्कृतिक आयोजन। पता नहीं कहां और किस दिशा में चला जा रहा है यह आंदोलन। शुरू करने से पहले सोचा नहीं, अब चलाए रखना मुश्किल हो रहा है। दस,बीस,पचास से ज्यादा संख्या दिखाई नहीं दे रही। इससे ज्यादा तो पार्क में रोज चार घंटे गुजारने वालों की संख्या है। कोई समझाओ इन्हे पार्टटाइम आंदोलनों से अधिकार नहीं मिलते और सरकारें भी नहीं झुकतीं। जब अन्ना जैसे आंदोलन से नहीं झुकीं तो इन सांस्कृतिक आयोजनों से क्या होगा।