सुरक्षा घेरों से बाहर आकर देखें, देश में क्या हो रहा है ? प्लीज़ ..!

shailendra gupta
राकेश दुबे@प्रतिदिन। देश की राजधानी दिल्ली में पिछले 24 घंटों में दुष्कृत्य के आठ मामले हए हैं| जयपुर में वकीलों पर भारी बल प्रयोग हुआ है| पंजाब में वकीलों पर दर्ज मामलों में उच्च न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ा| बिहार और मध्यप्रदेश में शिक्षकों पर बल प्रयोग हुआ| दिल्ली में व्यापारी सडक पर है,कहाँ है सरकारें ?

हैं, मौजूद हैं| नागरिकों से वसूले टैक्स से बने बंगलों में और उसी टैक्स से बने सुरक्षा घेरे में| क्या इसीलिए इन्हें चुना था की देश और प्रदेश जलते रहे और ये संसद और विधानसभा में चिंता व्यक्त करते रहे ,बस|

देश में और प्रदेश में अपने को राजनीतिक दल कहने वाले कहाँ है? सारे राजनीतिक दल गाँधी,लोहिया,जयप्रकाश और दीनदयाल को अपना आदर्श कहते नहीं थकते हैं| इनमे से किसी  भी महात्मा ने कभी बंगले में बैठ कर राजनीति नहीं की| ये जन नेता थे| इन्हें वोट की चिंता थी न वोट बैंक की| नोट वाले बैंकों और विशेष कर  टैक्स हेवेन देशों के बैंको से, कमीशनखोरी से इनका दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं था| बेधडक जनता में निकल जाते थे|

यह बात मनमोहन जी आपको और आपकी कुर्सी की ओर ताक रहे उन सभी नेताओं को इसलिए याद दिलाई जा रही है कि जन सामान्य का विश्वास आपकी सरकारों पर कम होता जा रहा है| विश्वास वापिसी का अर्थ सिर्फ तिकडम के आधार पर  चुनाव जीतना नहीं होता| देश चलाना होता है और उसमें सबसे ज्यादा लगता है जनप्रिय होना| देश की केंद्र सरकार का साथ “जनप्रियता” का विशेषण छोड़ चुका है| प्रदेश की कुछ सरकारें इस विशेषण को पाने के लिये  जरुर प्रयासरत है, लेकिन एक दो राज्य देश नहीं हो सकते| अफ़सोस इस बात का भी किसी एक नेता की इतनी आवाज़ भी नही है जिसे पूरा देश मान दे|

  • लेखक श्री राकेश दुबे प्रख्यात पत्रकार एवं स्तंभकार हैं। 

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