दया करिये संजू बाबा पर ...!

राकेश दुबे@प्रतिदिन। संजय दत्त को यह साफ हो गया है कि सज़ा के दौरान वे पश्चताप कर सकेंगे और उन लोगों से माफ़ी मांग सकेंगे जो उस दिन बम ब्लास्ट की सीरिज़ में मारे गये हैं और उनके परिजन आज भी दुखी है| यह संजय दत्त को विरासत में मिला बेहतरीन  मानवीय स्वभाव है| उनके माता पिता में मानवीय गुण और राष्ट्रीय संस्थाओं के प्रति आदर कूट-कूट के भरा था| आज भारत की न्याय प्रणाली के प्रति उनका आदर स्व. सुनील दत्त की विरासत का विस्तार है|

उनके प्रशंसकों द्वारा उनके लिए जो प्रयास किये जा रहे हैं, उसे देखकर एक कथा याद आती है| एक आंग्लभाषी स्कूल था| वहां के शिक्षक ने छात्रों को सिखाया कि जीवन में कोई न कोई काम अच्छा करना चाहिए| बच्चे पढ़ लिख कर जब सेवा निवृत्त हो गये, तो उन्हें याद आया की कुछ अच्छा काम नहीं किया जीवन यूँ ही निकल गया| रात को भोजन पूर्व फुर्सत के क्षणों के दौरान मंथन कर प्रण किया की कल कुछ अच्छा काम करेंगे| 

सुबह घूमने निकले तो देखा कि एक नेत्रहीन व्यक्ति सडक पर खड़ा है, वे उसे सड़क पार कराने लगे| उस नेत्रहीन ने मना किया, उसे घुड़क दिया| तुम कुछ जानते नहीं बाकी लोगों की तरह मूर्ख हो| उसे जबरन सडक के दूसरे कौने पर छोड़ दिया| घर आकर सारे अखबारों को फोन कर दिया कि यह अच्छा काम आज कर दिया है अख़बार में छाप दीजिये| किसी रिपोर्टर ने जाँच की तो पाया कि वह नेत्रहीन व्यक्ति तो कहीं जाना ही नहीं चाहता था| साहब ने जबरन भेज दिया|ऐसी दया कोई किसी पर न करे तो बेहतर है|

संजय दत्त ने भारतीय न्यायपालिका के निर्णय को शिरोधार्य किया है| इस बहाने मीडिया में सुर्खी पाने को लालायित लोगों को यह भी देखना चाहिए की कितने निरपराध लोग जेलों में बंद है ,उनके लिए प्रयास करें तो शायद सुर्खी न मिले लेकिन जीवन सार्थक होगा|

  • लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रख्यात स्तंभकार हैं।


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