अब MP में रहना नहीं चाहतीं अनुराधा शंकर

भोपाल (उपदेश अवस्थी)। धार भोजशाला मामले में धुंआधार सफलतम पारी के अवार्ड स्वरूप मिले तबादले ने इन्दौर की तत्कालीन आईजी अनुराधा शंकर को पूरी तरह से तोड़कर रख दिया है। हालांकि वो खुद को संभालने का भरपूर प्रयास कर रहीं हैं परंतु भावनाओं पर काबू कर पाना संभव नहीं हो पा रहा है। वो इन दिनों मध्यप्रदेश छोड़ने पर विचार कर रहीं हैं।

सनद रहे कि धार भोजशाला मामले में शिवराज सरकार ने इन्दौर आईजी अनुराधा शंकर को फ्रीहेण्ड दे दिया था। उन्होंने भी अपनी जिम्मेदारी भरपूर निभाई। यदि थोड़ी देर का उपद्रव छोड़ दिया जाए तो शिवराज सरकार की लाज बचाने में वो पूरी तरह से कामयाब रहीं।

आईपीएस लॉबी के साथ साथ आईएएस लॉबी ने भी उनके मैनेजमेंट की जमकर तारीफ की, लेकिन एक अदद प्रेसकान्फरेंस के बाद केबीनेट मंत्री कैलाश विजयर्गीय ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल डाला, हालांकि इस पॉलिटिकल अटैक के खिलाफ सुमित्रा ताई ने उन्हें बेहतर कवर दिया, लेकिन अंतत: यह मामला कैलाश विजयर्गीय के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बना और जैसा कि हमेशा होता आया है, राजनैतिक प्रतिष्ठा के लिए प्रशासनिक बली ले ही ली गई। इस संदर्भ में भोपालसमाचार.कॉम ने 18 फरवरी को ही मामले का खुलासा कर दिया था और हुआ भी वही।

अनुराधा शंकर के आईजी इन्दौर से तबादले पर किसी को कोई आपत्ति नहीं है, स्वयं अनुराधा शंकर को भी नहीं, लेकिन प्रशासनिक पंडितों का कहना है कि पीएचक्यू में लाकर उन्हें दण्डित किया गया है। यह कतई नहीं होना चाहिए था। उन्हें इन्दौर से हटाकर भोपाल आईजी बनाया जा सकता था और यह उनके लिए भी पुरस्कार होता, उधर कैलाश विजयर्गीय का हठ भी साध लिया जाता, परंतु ऐसा नहीं हुआ।

हमारे सूत्रों की मानें तो अनुराधा शंकर स्वयं भी इससे बहुत आहत हैं। वो लगातार इस संदर्भ में सार्वजनिक प्रतिक्रिया से बच रहीं हैं, लेकिन तकलीफ तो तकलीफ ही है, वो भी धार जैसी सफलता के बाद। यदि वहां एक भी चूक हो जाती तो शिवराज सरकार पर हमलों की गिनती नहीं हो पाती। केन्द्र सरकार को भी शिवराज सरकार के खिलाफ कदम उठाने का मौका मिल सकता था। ऐसी जबर्दस्त सफलता के बाद मिली सजा ने अनुरोधा शंकर तो तोड़कर रख दिया है।

हमारे कानाफूसी एक्सपर्टस के पास उपलब्ध जानकारी के अनुसार अनुराधा शंकर इन दिनों अवसाद में हैं और शिवराज सरकार का चक्कर छोड़कर सीबीआई में जाने का मन बना रहीं हैं। फैसला अभी नहीं हुआ है, शायद कुछ समय लगे लेकिन इस विकल्प पर विचार उन्होंने शुरू कर दिया है। यदि ऐसा हुआ तो यह तय है कि मध्यप्रदेश एक और बेहतरीन आईपीएस अधिकारी को खो देगा। इसका नुक्सान किसी नेता, दल या सरकार को हो न हो, मध्यप्रदेश को जरूर होगा।

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