हिमालय के अवसादों से बनी घाटी में स्थापित हैं रतलाम के छोटा केदारेश्वर महादेव

shailendra gupta
रतलाम। बांसवाडा मार्ग पर स्थित है ,यह ग्राम सरवन से महज 6 किमी. व मकोडियारूंडी गाँव के समीप प्रकृति कि गोद में बाबा केदारेश्वर का धार्मिक स्थल है | बाबा केदारेश्वर प्रकृति कि गोद में अपनी मनमोहक छटा को बिखेरता धार्मिक स्थान है, जो कि कुदरत कि अनुपम कृति है| जिसे देख कर लोगो का मन बार-बार जाने के लिए अनायास ही खीचा चला जाता है| न चाहते हुए भी लोग वहाँ जाना चाहते है|

मुख्य सड़क मार्ग (रतलाम -बांसवाडा) पर छोटा केदारेश्वर के नाम से एक बोर्ड लगा हुआ है तथा बगल में हनुमान जी कि प्रतिमा भी लगी हुई है इस स्थान लगभग 200 मीटर का ढालदार कच्चे रास्ते का निर्माण किया गया है जिससे होकर सभी श्रध्दालु छोटा केदारेश्वर पहुँचते है सड़क में 200 मीटर चलने के बाद छोटा केदारेश्वर जी का स्थान दिखाई देने लगता है जो कि घाटी में लगभग 50 मीटर नीचे स्थित है इसी स्थान से अगर हम चारो ओर विहंगम दृष्टि डाले तो हमें दिखाई देता है कि यह एक भ्रंश घाटी है,, भूगोलवेत्ताओ का मत है कि इस घाटी का निर्माण हिमालय उत्थान के बाद हुआ क्योकि यहाँ पर अवसादी चट्टानें पाई जाती है जो रेत ,बालू ,चिका,मिट्टी से बनी है जो हिमालय से जो नदियों के द्वारा लाए गए गए अवसादो से बनी है जिन्हें हम बलुआ पत्थर के रूप से पहचान कर सकते है, तथा कुछ चट्टानें ज्वालामुखी के दरारी उद्भेदन से निकले लावा से बनी है , जिनकी पहचान हम बेसाल्ट चट्टानों के रूप में कर सकते है ,कालांतर में जब इस घटी के आस -पास प्रथ्वी के आतंरिक शक्तियों के हलचल के कारण भ्रंश उत्पन्न हो गए है और यह स्थान ग्फ्हाती के रूप में नीचे बैठ गया |आस-पास कि सभी चट्टानों में क्रेक्स (दरारे) पाए जाते है |जिनके कारण 200 या 300 वर्षो में यह स्थान अनाच्छादन के कारण समप्राय मैदान में परिवर्तित हो जाएगा|


यहाँ पे तीन बरसाती नदियाँ बहती है (गंगा,यमुना,सरस्वती /काल्पनिक नाम) छोटा केदारेश्वर के ठीक सिर के ऊपर से माँ गंगा प्रवाहित होती है ,ऐसा कहा जाता है कि अयोध्या के राजा भागीरथ को अपने पूर्वजो को मोक्ष (तारने के लिए )दिलाने के लिए स्वर्ग लोक से पृथ्वी पर गंगा को लाने के लिए कठोर तप किया |पर गंगा का बहाव इतना विकराल था कि उसको पृथ्वी पर लाना असंभव था क्योकि इससे सम्पूर्ण पृथ्वी ही बह जाती |तब तपस्वी भागीरथ ने भगवान शंकरजी से विनय प्रार्थना कि तब भगवान शंकरजी गंगा जी को अपनी जटाओ में धारण किया और एक पतली धारा के रूप में गंगा जी को पृथ्वी पर प्रवाहित किया ,तब राजा भागीरथ ने अपने पूर्वजो कि अस्थियो को गंगा में प्रवाहित किया और उनके पूर्वजो को मोक्ष प्राप्त हुआ तब से गंगा अनवरत इस धरा पर प्रवाहित हो रही है |सम्पूर्ण जगत में लोग अपने परिवार जनों को मोक्ष दिलाने के लिए उनकी अस्थियो को गंगा में प्रवाहित करते है |यह गंगा तो हिमालय से निकलती है और उत्तर दिशा में प्रवाहित होकर दक्षिण -पूर्व में बंगाल सागर में मिलो जाती है|

बाबा केदारेश्वर के सिर से निकलने वाली गंगा पूर्व से पश्चिम कि ओर बहती है तथा 60 फीट गहरे जलप्रपात (waterfall )का निर्माण करती है | छोटा केदारेश्वर  के उत्तर कि ओर यमुना और सरस्वती का प्रवाह है ,यमुना उत्तर -पश्चिम से बहकर  लगभग 40 फीट गहरे जलप्रपात (waterfall ) का निर्माण करती है तथा सरस्वती भी उत्तर-पूर्व से बहाकर लगभग 30 फीट गहरे जलप्रपात (waterfall ) का निर्माण करती है तथा ये तीनो नदिया लगभग 50 मीटर बहाने के बाद आपस में मिल जाती है |इसलिए इस स्थान को संगम के नाम से जानते है आगे चलकर बुन्दन नदी में यह धारा मिल जाती है ,बुन्दन नदी के तट पर एक बहुत ही प्यारा गाँव जो अपने आप में पूर्ण बहुत सारी सामाजिक परम्पराओं को समेटे हुए सरवन गाँव स्थित है | बुन्दन नदी बांसवाडा के करीब माही (माता ) नदी में मिल जाती है |

जहाँ पर अभी हम चारो ओर से छोटा केदारेश्वर का सिंहावलोकन कर रहे थे | वही पर छोटा केदारेश्वर में पूजन करने के लिए पूजन सामग्री प्राप्त हो जाती है ,,दुकानों से जब हम गुफा कि ओर जाते है तो 70 बड़ी वक्राकर सीढियों का निर्माण किया गया है |सीढियों का दूसरा किनारा लगभग 40 मीटर गहरी खाई कि ओर पड़ता है | सुरक्षा कि दृष्टि से इस किनारे पर जी.आई. पाईपो कि रेलिंग बनाई गई है |सीढियों के ऊपर से अगर हम नीचे कि ओर दृष्टि डाले तो बाबा केदारेश्वेर कि गुफा व लक्ष्मण कुण्ड जिसमे गंगा गिरती हुई दिखाई देती है |आस-पास के गाँव के लोगो कि मान्यता है कि जो लोग इस कुण्ड में स्नान करेंगे उनको पाप और रोगों से मुक्ति मिलेगी इसलिए आप को अधिकतर लोग इस कुण्ड में स्नान करते हुए मिल जाते है |

सीढियों से जैसे हम नीचे उतारते है तो एक पहाड़ी के अन्दर वक्राकर (घुमावदार )कमरा बना है जो कि लगभग 45 मीटर लम्बा व 25 मीटर चौड़ाई लिए हुए है इस कमरे में अधिकाधिक हिस्सा समतल है ,बाकि हिस्सा उबड़-खाबड़ है | इस कमरे का पश्चिमी हिस्सा पूर्णतः खुला है |इस ओर से बाबा केदारेश्वर कि जटाओ से गिरती गंगा को झरना /जलप्रपात (waterfall )के रूप में प्राकृतिक का सौंदर्य  दर्शन किया जा सकता है गंगा जी को लक्षमण कुण्ड में गिरते हुए स्पष्ट देखा जा सकता है|

गुफा के मध्य भाग में छोटा केदारेश्वर विराजमान है जो कि एक 1.5  मीटर ऊँचे व 4 वर्ग मीटर चबूतरे पर स्थित है |चबूतरे के मध्य में छोटा केदारेश्वर शिवलिंग के रूप में स्थित है ,जिसका मुख उत्तर कि ओर है ,पश्चिम में शिवजी का वहां नंदी बैठा है ,जिसका मुख पूर्व कि ओर है ऐसा लगा रहा है मनो ध्यानमग्न होकर शिवजी कि अराधना कर रहा हो | शिवलिंग के पूर्वी हिस्से में गणेश जी कि दीवार पर खुदी हुई है|

चबूतरे से लगभग 12 मीटर कि दुरी पर बजरंगबली कि मूर्ति है |जो भी श्रध्दालु यहाँ आते है वो बजरंगबली के पास ही नारियल बधारते (तोड़ना /फोड़ना ) है ,क्योकि केदारेश्वर जी में नारियल वधारा नही जाता है ,वहां पर समूचा नारियल ही चढ़ाया जाता है |छोटा केदारेश्वर में महाम्रंत्युन्जय जप व अन्य मंत्रो के द्वारा व अगरबत्ती ,फूल ,बेलपत्री का उपयोग किया जाता है  |

महामृत्युन्जय मन्त्र ****
ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टिम वर्धनम  |
उर्वरुकमेव बन्धनात ,मृत्योर्मा मुक्षयीय मामृतात ||

इस मन्त्र का जाप करने से जीवन में आने वाली बाधाओ का नाश होता है  | ऐसा लगता है कि गुफा को किसी ने तोड़-तोड़ कर बनाया गया है |पर यह तो कुदरत का अद्वतीय करिश्मा है |इसे भगवान शंकर ने स्वयं अपने हाथो से बनाया है | इस धार्मिक स्थान में जितने समय तक घुमो उतना ही कम है ,यह स्थान लोगो के आस्था व श्रध्दा का केंद्र है ,जो लोग बाबा केदारेश्वर का श्रवण के सोमवारों में उनकी पूजा ,अर्चना ,उपासना,या अराधना करता है व व्रत या उपवास होकर उनका मनन व चिंतन करता है ,उन भक्तो कि मनोकामनाए बाबा केदारेश्वर अवश्य ही पूर्ण करते करते है |

गुफा से बहार नीचे कि ओर रेलिंग के सहारे लगभग 20 सीढियों से उतर कर नीचे जाना पड़ता है ,सीढियों के बगल में ही लक्षमण कुण्ड है ,कुण्ड से लगभग 25 मीटर कि दुरी में लगभग 6 मीटर ऊँचा व 4 मीटर चौड़ा एक विशाल पत्थर खड़ा है ,,वाही पर तीनो नदियो का संगम होता है ,,उस पत्थर में चढ़ कर चारो ओर देखते है तो हमें ऊँची-ऊँची पहाड़ियां दिखाई देती है |चारो तरफ हरीतिमा मखमली चादर के रूप में फैली हुई दिखाई देती है इस वर्षा कि फुहारे चार चाँद लगा देती है |

अगर हम यह सवाल करे कि ""दुनिया में स्वर्ग कहाँ है "" तो जवाब यही मिलता है कि **छोटा केदारेश्वर **| यहाँ पर चारो ओर से अठखेलिया करती हुई जलधाराए ,जब जलप्रपात के रूप में उतरती है तो तो मनो स्वयं गंगा,यमुना,सरस्वती मिलने आई हो ,,,पत्थर से उत्तर कि ओर से यमुना व सरस्वती नदियाँ बहकर आती है दोनों नदियाँ लगभग 30 फीट गहरे जलप्रपातो का निर्माण करती है |प्राकृतिक सौंदर्य करने वालो का यहं ताँता लगा रहता है ,,यहाँ पर फोटोग्राफी का भी अपना एक मजा है दो-चार फोटोग्राफरों का श्रवण माह में जमावड़ा लगा रहता है ,,दर्शक इन फोटोग्राफरों से विभिन्न आकृतियो  व मुद्राओं में अपने आप को कैद करवाते है ,,कुछ लोग तो झरने के बगल में,में ,तो कुछ लोग पानी में आधा डूब कर ,तो कुछ लोग नीचे बैठ कर अपनी यादों को तस्वीर के रूप में संजोने का कार्य करते है |

लोगो का शौक यहीं पूरा नही होता ,वो अपना शौक पूरा करने के लिए मोबाईल कैमरे से फोटोग्राफी का शौक पूरा करते है ,,और जहाँ भी जाते अपनी इन हसीन वादियों को मोबाईल में कैद द्रस्यो से रूबरू होते है |प्रति वर्ष श्रवण माह के सोमवारों में श्रध्दालुओ व दर्शको कि भीड़ जमा होती है ,लेकिन श्रवण माह के अंतिम सोमवार को मेला लगता है ,,इस मेले में बाबा केदारेश्वर व प्राकृतिक के मनोरम द्रश्यो का दर्शन करना व मनोरंजनात्मक लुफ्त उठना न भूले |

जय भोले बम-बम
नरेन्द्र कुमार पासी

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