सुरेश चौहान@महिला दिवस पर विशेष। जब वोडाफोन के एक विज्ञापन में दो पैसो मे लड़की पटाने की बात की जाती है तब कौन ताली बजाता है? पेन्टी हो या पेन्ट हो, कॉलगेट या पेप्सोडेंट हो, साबुन या डिटरजेण्ट हो , कोई भी विज्ञापन हो,सब में ये छरहरे बदन वाली छोरियों के अधनंगे बदन को परोसना क्या नारीत्व के साथ बलात्कार नहीं है?
फिल्म को चलाने के लिए आईटम सॉन्ग के नाम पर लड़कियो को जिस तरह मटकवाया जाता है या यू कहे लगभग आधा नंगा करके उसके अंग प्रत्यंग को फोकस के साथ दिखाया जाता है वो स्त्रीयत्व के साथ बलात्कार करना नहीं है क्या?
पत्रिकाए हो या अखबार सबमे आधी नंगी लड़कियो के फोटो किसके लिए और क्या सिखाने के लिए भरपूर मात्र मे छापे जाते है? ये स्त्रीयत्व का बलात्कार नहीं है क्या?
दिन रात , टीवी हो या पेपर, फिल्मे हो या सीरियल, लगातार स्त्रीयत्व का बलात्कार होते देखने वाले, और उस पर खुश होने वाले, उस का समर्थन करने वाले क्या बलात्कारी नहीं है?
संस्कृति के साथ , मर्यादाओ के साथ, संस्कारो के साथ, लज्जा के साथ जो ये सब किया जा रहा है वो बलात्कार नहीं है क्या?
निरंतर हो रहे नारीत्व के बलात्कार के समर्थको को नारी के बलात्कार पर शर्म आना उसी तरह है जैसे मांस खाने वाला, लहसुन प्याज पर नाक सिकोडे जिस देश में "आजा तेरी _ मारू , तेरे सर से __का भूत उतारू" जैसा गाना गाने वाला हनीसिंह, सीरियल किसर कहे जाना वाला इमरान हाशमी, और इसी तरह का नंगा नाच फैलाने वाले भांड युवाओ के " आइडल" बन रहे हो वहा बलात्कार और छेडछाड़ की घटनाए नहीं तो और क्या बढ़ेगा?
कुल मिलाकर मेरे कहने का अर्थ ये है भाई कि जब हम स्त्रीयत्व का सम्मान करना सीखेंगे
तभी हम नारी का सम्मान करना सीख पाएंगे।...!!!
- लेखक श्री सुरेश चौहान मूलत: एडवोकेट हैं एवं ग्वालियर में निवास करते हैं। श्री चौहान से 094 25 619966 पर संपर्क किया जा सकता है।