हिमालयी पक्षियों का प्राइमरी स्कूल है पेंच नेशनल पार्क

shailendra gupta
राकेश प्रजापति@धरती के रंग।  मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा में स्थित पेंच नेशनल पार्क अपनी कई सारी खूबियों के कारण प्रसिद्ध है परंतु इसकी एक और भी खूबी है और वो यह कि करीब 210 प्रजातियों के हिमालयी पक्षी यहां आते हैं, अपनी संतानों को जन्म देते हैं। उनकी प्राथमिक शिक्षा भी यहीं पूरी होती है, फिॅर वो वापस हिमालय चले जाते हैं।

देश का सर्वश्रेष्ठ टायगर रिजर्व होने का गौरव प्रात करने पेंच राष्ट्रीय उद्यान छिंदवाड़ा को 1993 में टाईगर रिजर्व घोषित किया गया । मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र की सीमा पर स्थित इस नेशनल पार्क में हिमालयी प्रदेशों के लगभग 210 प्रजापतियों के पक्षी आते है। अनेक दुर्लभ जीवों और सुविधाओं वाला पेंच नेशनल पार्क तेजी से पर्यटकों को अपनी ओर खींच रहा है।

खूबसूरत झीलें, ऊंचे-ऊंचे पेडों का सघन झुरमुट रंग-बिरंगे पक्षियों का करलव, शीतल हवा के झोंके, सोंधी-सोंधी महकती माटी, इठलाते-बलखाते रास्ते, वन्य प्राणियों का अनूठा संसार, सूर्य की नहायी-भीगी किरनें, सचमुच प्रकृति के समूचे तन-बदन पर हरितिमा का ऐसा अछोह सागर, मनके रोम-रोम में सिरहन भर देता हैं। पेंच नेशनल पार्क में कोलाहल करते 210 से अधिक प्रजाति के पक्षियों, पलक झपकते ही दिखने और गायब हो जाने वाले चीतल, सांभर और नीलगायें, भृकुटी ताने खडे जंगली भैंसों और लगभग 65 बाघों से भरा पडा है ।

इस राष्ट्रीय उद्यान का मुख्य प्रवेश द्वारा टुरिया गेट खवासा से 12 कि.मी. दूर पर स्थित है। खवासा, नागपुर-जबलपुर राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 07 पर, मध्यप्रदेष और महाराष्ट्र राज्यों की सीमा पर स्थित है।  पेंच राष्ट्रीय उद्यान केवल 01 नवम्बर से 30 जून तक ही पर्यटकों के लिये खुला रहता है।

पेंच राष्ट्रीय उद्यान और अन्तर्राष्ट्रीय पर्यटन पटल पर अपनी अलग पहचान बनाये हुये है । यह उद्यान अपनी प्राकृतिक छटा के लिये प्रसिद्ध है। सतपुडा की पर्वतमाला के दक्षिणी छोर पर उसकी तलहटी में स्थित यह राष्ट्रीय उद्यान 23 नवम्बर 1992 में टाईगर संरक्षण योजना के तहत टाईगर रिजर्व घोषित कर दिया गया। इसके बाद से ही इस क्षेत्र में वन्य प्राणियों की संख्या में तेजी से बढोतरी होने लगी। क्या आपको विश्वास होगा कि बर्फीले प्रदेशों या हिमालय की तराई में रहने और पलने वाले पक्षियों की आश्रय स्थली मध्यप्रदेश के किसी वन क्षेत्र में हो सकती है । शीत ऋतु में बर्फीले प्रदेशों के लगभग 210 विभिन्न प्रजातियों के पक्षी भोजन और प्रजनन के लिये हर वर्ष यहां आश्रय लेते है ।

पेंच राष्ट्रीय उद्यान को नजदीक से जानने वाले पक्षी विशेषज्ञ बताते है कि शीत ऋतु के दौरान यूं तो उद्यान में लगभग दो सौ दस विभिन्न प्रजातियों के पक्षी आश्रय लेते हैं, परन्तु उसमें से पचास से अधिक ऐसी प्रजातियों के पक्षी होते है, जो मध्य एशिया से लेकर हिमालय की तराई में बसे प्रदेशों में विचरण करते हैं, जों इस उद्यान में आकर वे अपनी वंश वृद्धि करते हैं। यहां आकर वे उनके नवजात मेहमान जब तक उडना नहीं सीख लेते, तब तक यहीं विचरण करते हैं और ग्रीष्म ऋतु के आगमन के साथ ही वापस अपने मूल प्रदेशों में लौट जाते हैं ।

पेंच नेशनल पार्क में जिन पक्षी प्रजातियों का मुख्य रुप से आना-जाना है, उनमें पीफोल, रेड जंगल फोल, कोपीजेन्ट, क्रीमसन, बेस्ट ड्र्रबारबेट, रेडवेन्टेड बुलबुल, राकेट टेल ड्रोगों, मेंगपाई राबिन, लेसर, व्हीस्टल टील, विनेटल सोवेला, ब्राहमनी हक प्रमुख हैं । देष भर में तेजी से विलुप्त होते जा रहे गिद्ध भी यहा बहुतायात में पाये जाते है, जिनमें दो प्रकार के गिद्ध प्रमुख है । पहला ‘किंग बलचर‘ जिसके गले में लाल घेरा होता है और दूसरा ‘व्हाईट ब्रेंद बलचर‘ जिसके पीछे सफेद पट्टा होता है । यहा राज तोता (करन मिट्ठू) और बाज सहित प्रदेश का राज पक्षी -‘दूधराज‘ भी विचरण करते दिखाई देते है।  अतः यह कहना उचित होगा कि बर्फीले प्रदेशों के पक्षियों की नर्सरी और दुर्लभ पक्षियों के आश्रय स्थल के रुप में पेंच राष्ट्रीय उद्यान तेजी से विकसित होता जा रहा है।


सिवनी और छिन्दवाडा जिले की सीमाओं पर 292.83 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले इस राष्ट्रीय उद्यान का नामकरण, इसे दो भागों में विभक्त करने वाली पेंच नदी के नाम पर हुआ है । यह नदी उद्यान के उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर बहती है तथा इसकी दक्षिणी सीमा महाराष्ट्र राज्य की सीमा से मिलती है ।

बाघों की संख्या में दो गुनी वृद्धि दर्ज कराकर देश का सर्वश्रेष्ठ टाईगर रिजर्व होने का गौरव प्राप्त करने वाल पेंच नेशनल पार्क के खाते में एक और उपलब्धि जुड गई है । पेंच नेशनल पार्क में वर्ष 2012 की गणना के अनुसार चीतलों की संख्या 70 हजार हो गई हैं । इसी तरह 11 वर्ष के अंतराल में यहां पर चीतलों की संख्या में 9 गुना से ज्यादा वृद्धि दर्ज की गई है।

नील गाय, सांभर व जंगली सुअर भी हुये दो गुने

पिछले दो वर्षो के दौरान पार्क में नील गाय एवं सांभर की संख्या में भी लगभग दुगनी वृद्धि दर्ज की गई है । इसके अलावा जंगली सुअर की संख्या भी दो व वर्षो में दुगनी हुई है । पेंच नेषनल पार्क में षाकाहारी वन्य प्राणियों की वर्ष 2012 की गणना रिपोर्ट के अनुसार चीतल- 69 हजार 260, नील गाय-2 हजार 847, बायसन-एक हजार 877, सांभर-6 हजार 167 व जंगली सुअर 10 हजार 328 बतायी गई है ।  इसके अतिरिक्त चैसिंघा, चिंकारा और भेडें भी काफी संख्या में है । यहाॅं लोमडी, जंगली बिल्ली और जंगली कुत्ते भी अक्सर दिखाई देते हैं । भालू, लकडबग्घा, षाही अजगर और लैपर्ड कैट भी यहाॅंॅं दिखाई दे जाते हैं ।

पेंच नेषनल पार्क के कोर एरिया में पहली बार बाधों की गणना की गई है । इस गणना के अनुसार पार्क के कोर एरिया में 55 बाघ जिसमें से 30 वयस्क बाघ और 25 अवयस्क बाघ हैं । भारतीय वन्य जीव संस्थान द्वारा वर्ष 2010-11 में की गई गणना में सिवनी-छिन्दवाडा एवं महाराष्ट्र की सीमा में विस्तृत पेंच नेषनल पार्क के लैण्डस्केप एरिया में औसतन 65 बाघों के होने की गणना की गई थी । इस गणना के बाद पिछले डेढ वर्षो के दौरान लगभग 20 षावकों का जन्म हुआ है। इससे अनुमान लगाया जा रहा है, कि पेंच नेषनल पार्क के लैंडस्केप एरिया में अब औसतन 80 से अधिक बाघ हो गये हैं ।

हाथी की सवारी से आसान हुआ बाघों को देखना


पेंच नेषनल पार्क में हाथी भ्रमण अर्थात ‘एलिफेंट सफारी‘ से पार्क के कई अंदरुनी इलाकों का भ्रमण करना आसान हो गया है । पिछले कुछ वर्षो में पर्यटकों को आकर्षित करने और पर्यटकों की सुविधाओं के लिये किये गये प्रयासों  और नेषनल पार्क के रखरखाव और गतिविधियों के सफल परिणामस्वरुप पेंच टाईगर उद्यान के सभी जानवर पर्यटकों से सामंजस्य बैठाने लगे है। इसी का परिणाम यह है कि षर्मीले माने जाने वाले पेंच के बाघों को अब बडी आसानी से देखा जा सकता है और वे अपने दर्षन बिना किसी हिचकिचाहट के  पर्यटकों को दे रहे है ।

अंतर्राष्ट्रीय जल विद्य्ुत परियोजना के तहत तोतलाडोह बांध बनने से मध्यप्रदेष का कुल 5451 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र, डूब क्षेत्र में आता है । इस बांध के बन जाने से राष्ट्रीय उद्यान के मध्य भाग में पानी की विषाल झील बन गई है, जो वन्यप्राणियों की पानी की आवष्यकता की दृष्टि से बहुत उपयुक्त है । डूब क्षेत्र में छिन्दवाडा जिले का 31.271 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र तथा सिवनी जिले का 17.246 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र आता है ।

पेंच नेषनल पार्क में पर्यटन की अपार संभावनायें हैं । कान्हा और बांधवगढ जैसे विख्यात राष्ट्रीय उद्यानश्देखने वाले पर्यटन विषेषज्ञों का मानना है कि प्राकृतिक सौन्दर्य की दृष्टि से पेंच टाईगर उद्यान बेहतर स्थिति में है । यह अपनी आसान पहुंच के कारण पर्यटकों के लिए लोकप्रिय स्थल के रुप में परिवर्तित हो रहा है । नागपुर-जबलपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित होने के कारण यहाॅं आसानी से पहुंचा जा सकता है और यहाॅं प्रकृति के साथ-साथ वन्य प्राणियों और प्रवासी पक्षियों की उपस्थिति और भी मनोहारी दृष्य देखते ही बनता है ।


  • लेखक राकेश प्रजापति प्रसार भारती के संवाददाता है एवं छिंदवाड़ा में कार्यरत हैं।

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