भोपाल। आम अध्यापक की ओर से अनिल नेमा ने भारत के राष्ट्रपति महोदय को एक पत्र लिखकर अवगत कराया है कि मध्यप्रदेश सरकार पिछले 17 सालों से संविधान के अनुच्छेद 23 का उल्लंघन कर रही है, जिसमें लिखा है कि किसी व्यक्ति को नियम विरुद्ध कम पारिश्रमिक देकर शोषण करना अपराध है।
श्री नेमा ने राष्ट्रपति महोदय को लिखे गए पत्र की एक छायाप्रति भोपालसमाचार.कॉम को भी भेजी है। हम इस पत्र को शब्दश: प्रकाशित कर रहे हैं। आप भी पढ़िए क्या कुछ लिखा गया है इस पत्र में :—
आदरणीय महामहिम राष्ट्रपति महोदय,
प्रणाम।
संविधान निर्माता बाबा साहेब की जयन्ती के अवसर पर मध्यप्रदेश में शिक्षित बरोजगारों के साथ पिछले 17 साल से हो रहे शोषण की व्यथा को पत्र के माध्यम से आप तक प्रेषित कर रहा हूं, मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप अपने व्यस्तम कार्यक्रम में से कुछ पल निकलकर मध्यप्रदेश के शोषित अध्यापकों को न्याय दिलाने में अपना सहयोग प्रदान करेंगे।
महोदय जी, मध्यप्रदेश के शसकीय विघालयों में शिक्षक के रिक्त पदों के विरूद्ध शिक्षक का नाम बदलकर शिक्षाकर्मी, अध्यापक, संविदा शिक्षक की भर्ती पंचायत व नगरीय प्रशसन के माध्यम से की जा रही है परन्तु वेतन का भुगतान शिक्षा विभाग द्वारा ही मध्यप्रदेश सरकार से प्राप्त होता है।
महोदय जी सरकार ने पंचायत व नगरीय निकाय को नियोक्ता बनाकर वेतन व सुविधाये कम रखने का चक्रव्यूह रचा है। महोदय जी जब स्कूलों की समस्त गतिविधियों का संचालन स्कूल शिक्षा विभाग करता है तो फिर अध्यापकों की नियुक्ति पंचायत के माध्यम से क्यों? सरकार के द्वारा खेले गये तार्किक शतरंज के इस खेल में मात्र वेतन के मसले को लेकर भर्ती में पंचायती@नगरीय निकाय प्रक्रिया अपनाई गई तकि आमजनो को यह दिखाया जा सके कि अध्यापक,’िशक्षा विभाग के शिक्षकों से भिन्न है तथा वेतन का अलग होना तर्क संगत लगे।
महामहिम जी वास्तविकता यह है कि ’शिक्षा विभाग के शिक्षकों की तुलना में मात्र वेतन के अलावा अध्यापक हर मामले में शिक्षकों के समतुल्य है। भर्ती के स्रोत,विज्ञापन ,शक्षणिक योग्यता ,कार्य की प्रकृति ,कार्य के घंटे,उत्तरदायित्व,वि’वसनीयता,गोपनीयता ,मूल्यांकन क्षमता,नियमितता,एक ही कार्यस्थल,सरकार द्वारा समय समय पर प्रदत्त कार्य,जनगणना, निर्वाचन,कार्य आदेश का प्रतिपालन इत्यादि में समानता होने के बावजूद वेतनमान एवं मिलने वाली अन्यसुविधाओं में भारी अंतर होना भारतीय संविधान एवं प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के विरूद्ध है।
महामहिम जी संविधान के अनुच्छेद 23-24 में समाज के कमजोर वर्गो का शोषण रोकने के लिये कुछ प्रावधान उल्लेखित है ,अनुच्छेद 23 के प्रावधान के अनुसार किसी व्यक्ति को पारिश्रमिक दिये बिना या नियम के विरूद्ध कम पारिश्रमिक देकर काम लेना दंडनीय अपराध माना गया है। महोदय मध्यप्रदेश प्रदेश सरकार पिछले 17 सालों से शिक्षा कर्मी/अध्यापक को चपरासी से भी कम वेतन देकर शिक्षकीय कार्य ले रही है।
महामहिम जी इस बात का उल्लेख भी आव’यक है कि मध्यप्रदेश में शशसकीय अनुदान प्राप्त स्कूलों के शिक्षकों को भी वही वेतन व सुविधा प्राप्त हो रही है जो शिक्षा विभाग के ’िशक्षकों को प्राप्त है तो फिर यही वेतनमान व अन्य सुविधाओं से अध्यापकों को क्यों महफूज रखा जा रहा है?वेतन सबंधी मामले में मध्यप्रदेश सरकार का सौतेला व्यवहार आर्थिक व सामाजिक ’ाोषण का घोतक है। महामहीम जी क्या ये मसला अन्याय की श्रेणी में नही आता? क्या ये संविधान मंे प्रदत्त मौलिक अधिकारों का हनन नही है ?अनुच्छेद 14 मे स्पष्ट लिखा है कि दे’ा के समस्त नागरिको को कानून की समस्त समानता प्राप्त होगी,अनुच्छेद 16 के अनुसार लोक नियोजन के पद अवसर की समानता एवं अनुच्छेद 39 डी के अनुसार ‘‘समान कार्य के लिये समान वेतन’’ हमारे संवैधानिक हक है फिर भी हक की इस लड़ाई में17 साल से हमें न्याय नहीं मिला है । महोदय जी मध्यप्रदेश के दो लाख साठ हजार अध्यापक चपरासी से कम वेतन पर शिक्षकीय कार्य करने के लिये विवश है।
मुझे आश ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि अध्यापकों की इस हक की लड़ाई में आप हमें अपना सहयोग प्रदान करेंगे।
आपका
अनिल नेमा
आम अध्यापक
वरि.अध्यापक श .क.उ.मा.वि.अमरवाड़ा
जिला-छिन्दवाड़ा (म.प्र.)
मोबाइल- 9329498050