राकेश दुबे@प्रतिदिन। चरैवेति में छपे लेख और लेखक आर एल फ्रांसिस के बयान के बाद कुछ ऐसा लगने लगा है कि नब्ज पर हाथ रख दिया गया है या सच की प्रतिक्रिया टाइपराइटर की तरह हो रही है मारो कहीं लगेगा वहीँ | इस सारे घटनाक्रम में अब कुछ ऐसा हो रहा है जिसे आम कहावत खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचे | इस सारे घटनाक्रम को समझने के लिए दोनों संगठनों को समझना जरूरी है |
आर एल फ्रांसिस दिल्ली में क्रिश्चियन सन्गठन चलाते हैं , क्रिश्चियन समाज के सुधारवादियों में उनकी गिनती होती है | भोपाल में भी इनके समर्थक है और विरोधी भी | उनके इस लेख का विरोध पहली बार छपने पर नहीं हुआ | महिला दिवस पर यह लेख छपा और पढ़ा गया |
दीनदयाल विचार प्रकाशन एकात्म मानववाद के प्रवर्तक पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचार अर्थात संघ और भाजपा के विचारों के प्रकाशन की एक संस्था है | इसमें पदाधिकारी और सम्पादक सभी संघ की विचारधारा के अनुरूप चलने वाले होता है | वर्तमान सम्पादक तो संघ के पूर्व प्रचारक है | फ्रांसिस और सौमित्र दोनों में एक समानता है दोनों सुधारवादी है | मामला कुछ तूल पकड़ गया है |क्रिश्चियन समुदाय से ज्यादा और भाजपा से ज्यादा चिंता पत्रिका के सचिव को है |
पता नही क्यों उन्हें प्रदेश भाजपा से ज्यादा चिंता आगे आनेवाले चुनाव की है , वैसे उनके लक्षित चुनाव क्षेत्र होशंगाबाद का समीकरण अलग है | ठीक ऐसे ही क्रिश्चियन समाज से ज्यादा चिंता कांग्रेस को है | और उसकी शिकायत फ्रांसिस से नहीं है ,पूरी तरह भाजपा से है | सम्पादक के दोष{जो है नहीं } को उजागर करने के बहाने पूरे संघठन को चर्चा का विषय बनाने की कोशिश हो रही है | इसे ही राजनीति कहते हैं और चुनाव तक ऐसा बहुत कुछ होना हैं |