राकेश दुबे@प्रतिदिन। भारतीय जनता पार्टी में नित नये जुमले उछल रहे हैं और भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष पुरुष लाल कृष्ण आडवाणी चुप है और यह कहकर चुप हैं की पार्टी अब उनके विचार से नहीं चलती हैं | पार्टी और खासकर वह राजनीतिक पार्टी जो कभी सत्ता का स्वाद चख चुकी हो उसमे निर्णय के कई केंद्र होते है और अगर कभी यह लगे की यह पार्टी सत्ता में पुन: आ सकती है तो कुछ केंद्र बेवजह बनने लगते हैं और कुछ केंद्र मीडिया बनवा देते हैं| भाजपा में यही हो रहा है |
प्रधानमंत्री कौन होगा ? नरेंद्र मोदी होंगे या नहीं ? आडवाणी जी प्रधानमंत्री बनेगे या नहीं| राजनाथ सिंह का क्या होगा ? जैसे विषयों पर कोई भी कुछ भी बोल रहा है | राजनाथ सिंह को कल एक फरमान जारी करना पडा की इस विषय पर कोई नहीं बोलेगा | आडवाणी जी मर्यादित नेता है, वे इस विषय को संसदीय बोर्ड का विषय बताते पर कोई उनसे पूछे तब न | किसी ने सुशील मोदी से भी नहीं पूछा था और न किसी ने विजय गोयल से ही पूछा था पर दोनों कह बैठे थे उनकी तरह और लोग भी कह रहे थे | पार्टी आदेश के बाद कुछ लोग सामने नहीं पीठ पीछे कह रहे हैं | ख़ैर |
आडवाणी जी, पिछले चुनाव में संसदीय बोर्ड ने क्या यह तय किया था की प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार कौन होगा ? ऐसे ही निर्णय कराने की कोशिश इस बार भी हो रही है | जब पार्टी आपके विचार से नहीं चल रही तो आपको साफ बात कहना चाहिए |गोविन्दाचार्य जी ने रायपुर में सही कहा कि आपकी भूमिका भाजपा के इधर-उधर डोलते कागजों को न उड़ने देने वाले पेपर वेट की तरह हो गई है | जरा भूमिका को बदलें,और विरार बैठक के निर्णयों के आलोक में भाजपा के लिए कुछ कहें –करें | भाजपा का इसीमे शुभ होगा |