भोपाल। चंबल घड़ियाल अभ्यारण्य क्षेत्र के प्रतिबंधित क्षेत्र में पाइप लाइन बिछाने के नाम पर करोड़ों डकारने वाले एक वरिष्ठ इंजीनियर को सरकार ने बाहर का रास्ता दिखा दिया है। इस वन क्षेत्र में वन विभाग की मनाही के बाद भी इंजीनियर ने एक ठेकेदार को पंप और पाइप लाइन सप्लाई का काम देकर करीब दो करोड़ का भुगतान कर दिया था।
इस इंजीनियर को इसके साथ के ही अफसरों ने बचाने की भरपूर कोशिश की, लेकिन सरकार ने अनिवार्य सेवानिवृत्ति देकर विभाग से विदा कर दिया है। मामला भिण्ड जिले में कनेरा उद्वहन सिंचाई परियोजना का है। वर्ष 2009 से 2011 के दौरान भिण्ड में जल संसाधन संभाग के कार्यपालन यंत्री आरए शर्मा ने यहां खुलेआम सरकार की आंखों में धूल झोंकी। मामला सामने आने पर कार्रवाई शुरू हुई, आरोप पत्र दिया और पिछले साल फरवरी में विभागीय जांच बिठाई गई। जांच अधिकारी जीएस श्रीवास्तव मुख्य अभियंता यमुना कछार ग्वालियर को बनाया गया। श्रीवास्तव ने जांच कर जो रिपोर्ट शासन को दी वह भी चौंकाने वाले निकली। श्रीवास्तव ने अपने इस साथी इंजीनियर को आंशिक दोषी बताकर माफ करने की वकालत की। विभाग ने फिर से जांच कराई और पाया कि श्रीवास्तव ने जांच में सारे तथ्य शामिल नहीं किए और जांच अधिकारी की सीमा से बाहर इसका दण्ड के संबंध में अनुशंसा कर दी। लिहाज उनकी रिपोर्ट खारिज कर दी गई।
29 करोड़ की सप्लाई
विभाग से मिली जानकारी के अनुसार इस परियोजना के लिए ठेकेदार ने 29 करोड़ 75 लाख की सामग्री सप्लाई जिसके विरूद्ध उसे 14 करोड़ 46 का भुगतान कार्यपालन यंत्री शर्मा ने किया। इसमें से एक करोड़ 98 लाख 61 हजार का भुगतान फर्जी पाया गया।
वन विभाग ने किया था मना, फिर भी...
अभ्यारण्य क्षेत्र होने के कारण वन विभाग ने वर्ष कार्यपालन यंत्री को पत्रा लिखकर परियोजना का काम शुरू नहीं करने के लिए कहा था। लेकिनकार्यपालन यंत्री पाइप सप्लाई कराकर उसका भुगतान भी कर दिया। विभाग को दिए अपने जवाब में शर्मा ने कहा कि उन्हें इस पत्र का संज्ञान नहीं था लेकिन पत्र में ही एक जगह उन्होंने पत्र मिलने की बात भी कही। उनके इस सफेद झूठ को पकड़ ने विभाग ने साबित कर दिया कि शर्मा ने फर्जी भुगतान किया है।