राकेश दुबे@प्रतिदिन। देश को अपने पीछे देखने की हसरत रखने वाले अर्थात देश ने नेता खुद कैसा व्यवहार कर रहे है| आम नागरिकों में चर्चा के विषय बन रहे हैं| कोई इस मामले पहले बयान देता है फिर पलटता है| कोई किसी को ऐसे संबोधनों से संबोधित करता जो सभ्य नहीं कहे जा सकते| अखबारों में भविष्यवाणी होने लगी है कि आज किसकी बात का कौन जवाब दे रहे हैं|
कल दिल्ली से लौटते समय मेरे सहयात्रीजो चर्चा कर रहे थे| उनमे अजित पवार का वह भाषण जिसमे उन्होंने लघुशंका से तालाब भरने की बात कही थी, मधुमक्खी को देवी या कुछ और बताने के चर्चा ,रामासरे का सोनिया द्वारा सपा के आगे हाथ जोड़ने और बेनी मुलायम संवाद चर्चा के विषय थे |इस चर्चा में एक 10 साल के बालक ने अपने पालक से पूछ लिया कि “ये ऐसे क्यों बोलते हैं ?” थोड़ी देर चुप रहने के बाद पालक ने एक बड़ी संयत टिप्पणी की “क्या करें बेचारे ठीक से बोल नहीं पाते|”
अजित पवार हो, बेनी बाबू हो, कपिल सिब्बल हो, मुलायम सिंह हो या कोई और सभी को यह सोचना चाहिए की वो जो बोल रहे है ये शब्द अगर वापिस न हुए तो क्या होगा ? एक दूसरे के वाक्यों पर टिप्पणी तक तो ठीक है उसको आधार बनाकर भ्रम पैदा करना अब नया शगल बनता जा रहा है| विदेशी मीडिया में अजित पवार का यह भाषण निंदनीय कहा जा रहा है|
कुछ की मातृभाषा के कारण उन्हें उनके सहायक लिखित स्क्रिप्ट देते है| उनकी मजबूरी हो सकती है, परन्तु जो अपने पढ़े लिखे होने का दावा करते हैं, उनके बोल वचन तो अक्षम्य है| शायद वह पालक सही था कि “क्या करें बेचारे ठीक से बोल नहीं पाते|”