भोपाल। वो इन्दौर में हाथठेले पर पूरे दिन जूस निकालकर बेचते थे, लेकिन उनकी अपनी सेहत निरंतर गिर रही थी। बीमार हों तो भी हाथठेला लगाना उनकी मजबूरी थी। छह महीने तक जो यातना झेली उसकी दास्तां जब बाल कल्याण समिति के सामने इंदौर से लौटे बच्चों ने सुनायी तो वहां मौजूद सारे लोग भावुक हो उठे।
बात हो रही है उत्तरप्रदेश के रिसिया, नानपारा, नवाबगंज, मोतीपुर और रामगांव से इंदौर लाए गए बच्चों की। यह बच्चे ढाई हजार से साढ़े तीन हजार रुपये प्रतिमाह कमायी का लालच देकर इंदौर लाए गए थे। यहां के विनोबा नगर मुहल्ले में बच्चों को हाथठेले पर काम दिया गया। बताते चलें कि रिसिया और बहराइच के कई लोग इंदौर में रहते हैं। यह वहां अपना कारोबार काफी बढ़ा चुके हैं। वहां मजदूरी अधिक होने के नाते यह कारोबारी अपने पैतृक गांवों से 28 बच्चों को लेकर गए और यह कहा कि हर बच्चे को उसके श्रम के मुताबिक तनख्वाह दी जाएगी।
लेकिन हुआ ठीक इसके उलट। कुछ दिन तो तनख्वाह दी गयी लेकिन बाद में इन लोगों ने हाथ खड़े कर लिए। इससे पहले 17 बच्चे किसी तरह वापस ले आए गए। सामाजिक संगठन देहात के सामने जब यह मामला आया तो इंदौर चाइल्ड हेल्पलाइन से मदद लेकर बच्चों को मुक्त कराने का अभियान छेड़ा गया। देहात के मुख्य कार्यकारी डॉ.जितेंद्र चतुर्वेदी ने बताया कि मध्यप्रदेश प्रशासन ने सकारात्मक भूमिका निभायी और बच्चे आजाद हुए। इनमें से नरेश नामक बच्चे ने जब बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष अशोक प्रधान और किशोरीलाल के सामने पूरी दास्ता सुनायी तो वे हैरत में पढ़ गए।