प्रभाव नहीं छोड़ पाया सीएम का बेटी बचाओ अभियान, बेटियों की संख्या चिंताजनक

भोपाल। प्रदेश में सीएम शिवराज सिंह चौहान ने बेटी बचाओ अभियान को सफल बनाने के लिए हर संभव कोशिश कर डाली थी। अभियान लोगों को जागरुक करने के लिए था कि बेटियां जरूरी हैं और भ्रूणहत्या ना करें, बावजूद इसके मध्यप्रदेश में लिंगानुपात में शर्मनाक आंकड़े सामने आए हैं।

मध्यप्रदेश में वर्ष 2001 से 2011 के बीच बेटियों की आबादी में चिंताजनक कमी दर्ज की गयी है. वर्ष 2011 की जनगणना के प्राथमिक सार के आंकड़े खतरे की घंटी बजाते हुए बताते हैं कि सूबे में छह साल तक की उम्र के बच्चों में 1000 लड़कों पर महज़ 918 लड़कियां रह गयीं हैं.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2001 में शून्य से छह वर्ष के आयु समूह में 1,000 लड़कों पर 932 लड़कियां थीं. यानी आलोच्य दशक के दौरान प्रदेश के बाल लिंगानुपात में 14 अंकों की गंभीर गिरावट दर्ज की गयी.

सामाजिक संगठनों का कहना है कि जनगणना के ये ताजा सरकारी आंकड़े मध्यप्रदेश में आधुनिक दौर के तमाम बदलावों के बावजूद लिंगभेद की सामाजिक रूढ़ियों के बचे रहने की पुष्टि करते हैं और खतरनाक नतीजों के प्रति आगाह करते हैं.

मध्यप्रदेश स्वैच्छिक स्वास्थ्य संगठन (वालेंटरी हेल्थ एसोसियेशन) के कार्यकारी निदेशक मुकेश सिन्हा ने कहा, ‘राज्य में बेटियों को बचाने के लिये अब भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है. इस सिलसिले में सबसे पहली जरूरत प्रसव पूर्व लिंग जांच निरोधक कानून को सख्ती से लागू करने की है. इसके लिये सरकार को संबंधित जिला सलाहकार समिति को सशक्त बनाना होगा.’

सिन्हा का दावा है कि प्रदेश में लिंग परीक्षण का कम से कम दस करोड़ रुपये का सालाना कारोबार होता है. सूबे में लिंग जांचने की क्षमता वाली करीब 1,500 अल्ट्रा सोनोग्राफी मशीनें हैं.

उन्होंने कहा कि प्रदेश में बेटियों को बचाने के लिये लिंग भेद की उस रूढ़िगत मानसिकता को जड़ से खत्म करने की ज़रूरत है, जिसका वजूद बदकिस्मती से आज भी समाज में बना हुआ है.

वर्ष 2011 की जनगणना के प्राथमिक सार में मध्यप्रदेश की कुल आबादी 7,26,26,809 बतायी गयी है. इसमें 3,76,12,306 पुरुष और 3,50,14,503 महिलाएं हैं.

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