भोपाल। मध्यप्रदेश के पेंशनर्स शिवराज सरकार से नाराज हैं। पेशनर्स अर्थात वो समूह सरकारी कर्मचारी जिन्हे अब रोज आफिस नहीं जाना पड़ता और वो 24 घंटे जनता के संपर्क में होते हैं।
पेंशनर्स ने अब एलान कर दिया है कि वो शिवराज सरकार के विरोध में वोट करेंगे और लोगों को इसके लिए प्रेरित करेंगे। कांग्रेस का नाम लिए बगैर पेंशनरों ने कहा कि किसी राजनीतिक दल के समर्थन में यह घोषणा नहीं की गई है। वे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से कई बार की मुलाकात के बाद भी निराश हैं।
पेंशनर एसोसिएशन मप्र के प्रांताध्यक्ष सुरेश जाधव, कार्यवाहक प्रांताध्यक्ष देवी प्रसाद शर्मा, महामंत्री अंबिका प्रसाद रावत, एसपी श्रीवास्तव ने संयुक्त रूप से सोमवार को पत्रकारों से चर्चा करते हुए यह घोषणा की। जाधव ने कहा कि पेंशनरों की आर्थिक और अनार्थिक मांगों को लेकर पिछले पांच साल से राज्य सरकार से कई बार मांगें पूरी करने का आग्रह किया गया। इस दरमियान ज्ञापन भी सौंपे गए, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। राज्य सरकार ने कभी भी पेंशनर्स के हक में कोई उल्लेखनीय निर्णय नहीं लिया।
चालू वित्त वर्ष में पेंशनरों के इलाज के लिए दवाओं के बजट प्रावधान को खत्म करने के राज्य सरकार के निर्णय को भी उन्होंने अमानवीय बताया। पिछले विधानसभा चुनाव के पहले 10 सितंबर 2008 के राजपत्र की प्रति दिखाते हुए पेंशनरों ने कहा कि छठवें वेतनमान के तहत पेंशनरों को 32 महीने का एरियर देने का वादा किया गया था, लेकिन इस पर अब तक अमल नहीं हुआ।
सहमति पत्र भी भरवा रहे हैं
पेंशनर एसोसिएशन के पदाधिकारी प्रदेश के पेंशनरों से एक सहमति पत्र भी भरवा रहे हैं। एसोसिएशन के अध्यक्ष को संबोधित इंस पत्र में 4 प्रमुख मांगों का जिक्र है कि 29 जुलाई 2003 को हमें भरोसा दिलाया गया था कि पेंशनरों को वाजिब हक मिलेगा। अगले चुनाव के पहले राज्य सरकार ने 4 मांगें पूरी नहीं की तो मौजूदा सरकार को वोट नहीं देंगे।
इसलिए भी नाराजगी
- 15 सितंबर 2003 के हाईकोर्ट के निर्णय के बावजूद राज्य सरकार ने रोके गए 19 महीने के महंगाई भत्ते का भुगतान नहीं किया।
- 114 महीने की कटौती कर एक पेंशनर को 37,276 रुपए महंगाई भत्ते में कम दिए।
- अन्य राज्यों की तुलना में मप्र में न्यूनतम पेंशन कम तय की गई, जिससे 50 हजार महिला पेंशनरों को साढ़े सात सौ रुपए हर महीने कम मिल रहे हैं।
- पेंशनरों को इलाज के लिए दवाओं के बजट प्रावधान को इस साल से खत्म कर दिया गया।