
ज्योतिरादित्य इन दिनों ये कैसे भूल गए कि उनके नाम के पीछे सिंधिया लगा हुआ है। 'सिंधिया' कोई सरनेम मात्र नहीं है, वो तो ब्रांडनेम है, भारत की राजवंशीय परंपरा का। 21वीं सदी के लोकतंत्र में यदि यह देखना हो कि राज परिवार कैसे होते हैं तो सिंधिया परिवार को देखो। इस नाम की अपनी एक गरिमा है, एक रुतबा है। उसके अपने दायरे भी हैं।
ज्योतिरादित्य का अशोकनगर में विधायक देशराज सिंह यादव को यह कहना कि
- क्या समझते हो तुम 10-15 लोग हो, मैं चाहूं तो पूरे संभाग को ला दूंगा।
- तुम 15-20 गाड़ियां लेकर आए हो मैं हजार गाड़ियां ला दूंगा।
- मुरैना, भिंड, श्योपुर सब लोग यहां पहुंचेंगे।
- तुम अगर शेर को छेड़ोगे तो शेर क्या करता है सब जानते हैं।
- तुम मुझे एक बार छेड़ दोगे तो तुम और तुम्हारे नेता पछताएंगे।
कम से कम मेरी समझ से तो बाहर हैं। पूरे 48 घंटे बीत गए हैं पंरतु मैं अब तक स्तब्ध हूं कि क्या सिंधिया परिवार का कोई सदस्य इस तरह की बातें कर सकता है। वो धीर गंभीर, विनम्र, सहनशील और सहृदयी माधवराव सिंधिया जो तमाम दण्डशक्तियों के स्वामी भी हुआ करते थे, के सुपुत्र को क्या एक विधायक के सामने मोहल्लाई धमकियां देनी चाहिए।
विषय भाजपा या कांग्रेस का नहीं है, विषय नितांत व्यक्तिगत और सिंधिया परिवार का है। वो सिंधिया परिवार जो मध्यप्रदेश की शान हुआ करता था। वो सिंधिया राजपरिवार जिसकी मुखिया राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने राजनीति में सहभागिता इसलिए नहीं की थी कि सत्तासुख चाहिए, बल्कि इसलिए की थी कि कैलाशवासी महाराज ने जो संधी भारत संघ से की थी, उसका पालन कराया जा सके और स्वतंत्रता से पूर्व ग्वालियर राज्य में जो क्षेत्र हुआ करते थे वहां का विकास अवरुद्ध ना हो।
राजनीति की थोड़ी बहुत जानकारी रखने वाला हर व्यक्ति जानता है कि माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस इसलिए ज्वाइन नहीं की थी उन्हे पॉवरफुल बने रहना है, उन्हें नजदीक से जानने वाले बेहतर समझते हैं कि अपनी संपत्ति को बचाने के लिए भी उन्होंने राजनीति ज्वाइन नहीं की थी, वो तो केवल मॉ साहब का आदेश था, जिसका उन्होंने पालन किया और बाद में स्व. राजीव गांधी से मित्रता को वो जीवनभर निभाते रहे।
उनके अपने जीवन में भी एक बार शक्तिप्रदर्शन का वक्त आया था, कांग्रेस छोड़कर उन्होंने मध्यप्रदेश विकास कांग्रेस बनाई, परंतु उन्होंने मंच से कभी इस तरह के ओझे शब्द बयां नहीं किए। उन्होंने अपनी ताकत का प्रदर्शन मतपेटियों में किया। जब चुनाव परिणाम आए तो कांग्रेस हाईकमान को अपने आप समझ में आ गया कि एक भूल हो गई है। हाईकमान ने भी उसे तत्काल सुधार लिया और सबकुछ पहले जैसा हो गया।
राजनैतिक दलों से बगावत के इतिहास में बहुत कम नाम हैं जो अपना अलग दल बनाने के बाद इस स्तर पर सफल हुए हों। माधवराव सिंधिया ने यह रिकार्ड बनाकर दिखाया और एक विशेष वर्ग जो उनकी चापलूसी नहीं करता था, वो भी उन्हें 'श्रीमंत' की उपाधि से केवल इसीलिए स्वीकार किया करता था क्योंकि उन्होंने साबित किया कि वो लोकप्रिय हैं, जननायक हैं, उस क्षेत्र की जनता सिंधिया को चुनती है, भाजपा या कांग्रेस को नहीं, क्योंकि उस क्षेत्र की जनता जानती है कि सिंधिया का तात्पर्य है शांति, संरक्षण और विकास।
हजारों लोग हैं जिन्हें स्वतंत्रता के बाद भी सिंधिया राजपरिवार से जीवन यापन का साधन मिला। हजारों एकड़ जमीनें परिवार ने खेती के लिए 999 साल के पट्टों पर दे दीं। अनगिनत कन्याएं हैं जिनके हाथ पीले महल से मिले दहेज के चलते हो पाए। कहीं कोई होर्डिंग नहीं लगा, कोई विज्ञापन नहीं, कभी उपकार भी नहीं जताया। लोकतंत्र स्थापित हो जाने के दशकों बाद भी जनसेवा में जुटा रहा यह परिवार और इसीलिए इस परिवार के लोग जननायक हुआ करते थे।
अपने विरुद्ध लगने वाले आरोपों का जवाब भी इस परिवार के लोगों ने नहीं दिया। उनके फालोअर्स ही इतने शक्तिशाली हुआ करते थे कि वो किसी एक विधायक को क्या, सीधे मुख्यमंत्री को जवाब दे सकें और कई बार दिए भी। हिरण्यवन कोठी मामले में केपी सिंह और अन्य लोग आरोपी इसलिए नहीं हैं कि श्रीमंत माधवराव सिंधिया ने उन्हें आदेशित किया था, बल्कि इसलिए हैं क्योंकि वो खुद निकल पड़े थे 'आंग्रे' को जवाब देने, स्वप्रेरणा से।
'तुम मुझे जानते नहीं हो, मैं ये कर दूंगा, वो कर दूंगा' ये सारे बयान मोहल्लाई राजनीति में अच्छे लगते हैं। कांग्रेस में ही राज्य स्तर के कुछ नेता बोल डालें तब भी कोई आश्चर्य नहीं होगा, परंतु ज्योतिरादित्य सिंधिया के मुंह से निकले ये शब्द हर हाल में उनके कद को बहुत और बहुत ज्यादा छोटा कर देने वाले हैं।
मैं अब तक समझ नहीं पा रहा हूं कि ज्योतिरादित्य, अपने सिंधिया परिवार का समृद्धशाली इतिहास कैसे भूल गए। उनका आचरण इतना दोयम कैसे हो गया। शायद ज्योतिरादित्य को बाद में समझ आया हो कि ऐसा करके उन्होंने देशराज सिंह यादव या उनके समर्थकों को डराया नहीं, देशराज के सरपरस्तों को भी धमकी नहीं भेजी, बल्कि उनका कद बढ़ा दिया।
मेरे विचार से यह घटनाक्रम देशराज सिंह यादव के लिए जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है और ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए उनके अब तक के सार्वजनिक जीवन का सबसे शर्मनाक घटनाक्रमा।