राकेश दुबे@प्रतिदिन। बहुत गर्व था, भाजपा को दक्षिण के द्वार का। हवा बनाने और पहचानने का दावा भी भाजपा के नेता करते थे। भ्रष्टाचार के मुद्दे की हवा थी। सुप्रीम कोर्ट न्यायसंगत बात कर रही थी,प्रतिपक्ष द्वारा उठाये गए मुद्दे गर्म थे फिर क्या हुआ ? सही मायने में भाजपा आत्ममुग्ध थी प्रतिपक्ष का काम कभी नियंत्रक महालेखा परीक्षक कर रहे थे।
आज नतीजे आते समय भी सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी सरकार के विपरीत थी। सरकार क्या करेगी कब करेगी अलग विषय है , अभी तो विषय भाजपा की बेहोशी टूटने का है क्योंकि आगामी कल भाजपा पुन: प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के नाम को गर्म करेगी और ययाति की भांति फिर अडवाणी के अलावा कोई नहीं से बात शुरू होगी। ययाति का अंतिम सन्देश महत्वपूर्ण है और भाजपा में कथावाचक बहुत हैं।
कर्नाटक में भाजपा इस गति को क्यों प्राप्त हुई ? इसके अर्थ भाजपा और कांग्रेस के लिए अलग अलग है, लेकिन सन्देश दोनों के लिए एक है। कांग्रेस को यह गलतफहमी नहीं पालना चाहिए , वो अपनी दम पर जीती है गलत है। वह भाजपा के नकारत्मक वोट से जीती है। भाजपा अपनी फूट और भ्रष्टाचार के कारण हारी है। दोनों के लिए एक ही सन्देश है की अब भ्रष्टाचार बर्दाशत नहीं होगा। कर्नाटक के बाद अब कुछ और राज्यों की बारी है । वहाँ के लिए यह सबक है।