राकेश दुबे@प्रतिदिन। नितीश कुमार गठबंधन पालन का धर्मबंधन तोड़ कांग्रेस के सहारे सत्ता बचाने के खेल में लग गये है । आपसी टूट-फूट से परेशान भारतीय जनता पार्टी के बहिर्गमन के कारण नितीश बाबू के विश्वास मत को 124 मत मिले ।
नितीश कुमार खुश हुए ,परन्तु बिहार की जनता ने उनके प्रति विश्वास कम होने की मुहर लगा दी । बिहार के आम मतदाता का मानना है कि" सोच समझ के निर्णय लेने का दावा" करने वाले नितीश बाबू गच्चा खा गये हैं । कांग्रेस से समर्थन लेने की बात ही उनके उस स्वप्न को समाप्त कर देती है, जो उन्होंने 2014 के लिये देखा है।
बिहार के लोगों की इस बात में दम है । बिहार के मतदाता पूरी तरह विभाजित हो चुके हैं । राजनीतिक दल आज जिस समभाव और सदभाव की बात करते हैं ,वह तो आवरण है । हकीकत में मतों का विभाजन जातिवाद, धनबल और बाहुबल के आधार पर हो चुका है । नितीश कुमार के नेतृत्व में बनी पिछली भाजपानीत गठबंधन सरकार का मूल भाजपा के परम्परागत वोट की दूसरी प्राथमिकता जनता दल यू होना था।
अब भाजपा और जनता दल यू दोनों के लिए बिहार एक प्रश्न बन जायेगा । जहाँ भाजपा पहले अपने कारणों से अपने विधायको को एकजुट नहीं रख पायेगी । वही नितीश कुमार के साथ आज दिख रहे कुछ विधायक कभी भी अपनी जाति की आवाज़ पर अपनी जाति के नेता का दामन थाम सकते हैं ।