सीएम ने एक सभा के लिए जान हथेली पर रखकर किया पुल पार

भोपाल (उपदेश अवस्थी)। यूं तो सुनने में बड़ा अच्छा लगता है कि अपनी जनता से मिलने के लिए एक मुख्यमंत्री ने अपनी जान तक जोखिम में डाल दी, परंतु यदि गंभीरता से विचार करें तो इससे बड़ी मूर्खता कोई नहीं हो सकती। सीएम ने आज पूरे काफिले के साथ उस पुल को पार किया जो पानी में डूब चुका था और उसमें रेलिंग भी नहीं थी।

शुजालपुर से पत्रकार आशीष खन्ना 8109210821 की रिपोर्ट के अनुसार जनआशीर्वाद यात्रा पर निकले सीएम कालापीपल से अकोदिया होते हुए शाजापुर के लिए रवाना हुए लेकिन नेवज नदी में पानी खतरे के निशान से उपर चल रहा था। इस नदी पर बना हुआ एक कमजोर सा पुल पानी में डूब चुका था और उस पर रेलिंग भी नहीं थी। ऐसे हालात में प्रशासन ने आम नागरिकों को पुल पार ना करने की सख्त हिदायत दे रखी है, बावजूद इसके सीएम ने पुल पार करने की जिद ठान ली।

जनआशीर्वाद यात्रा का रथ किसी भी सूरत में पुल पार नहीं कर सकता था, उसके शत प्रतिशत पानी में बह जाने की गारंटी थी। जब सीएम को यह पता चला तो वो रथ से उतरे और अपने काफिले में शामिल एक सफारी में जाकर बैठ गए।

इतना ही नहीं उन्होंने अपने साथ अपनी पत्नि श्रीमती साधना सिंह एवं पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा को इसी सफारी जीप में ले लिया और चालक को पुल पार करने के आदेश दिए। मजबूरी में तमाम भाजपा नेता, कार्यकर्ता और प्रशासनिक अमला भी जान जोखिम में डालकर पुल के पार पहुंचा।

वो तो शुक्र है भगवान का कि कोई हादसा नहीं हुआ, परंतु किसी हादसे से इंकार भी नहीं किया जा सकता था और कम से कम मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री को अपनी व अपने साथ मौजूद तमाम दल की जान जोखिम में डालने का रिस्क कतई नहीं लेना चाहिए था।

संभव है इस लाइन को कोड करके सीएम को हीरो बनाने का प्रयास किया जाए, कि उन्होंने अपनी जनता से मिलने के लिए जान तक की परवाह नहीं की परंतु गंभीरता से विचार करें तो इसे एक बेवकूफी और बचपने से ज्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता। शिवराज सिंह चौहान को समझना चाहिए कि उनका जीवन अब उनकी व्यक्तिगत संपत्ति नहीं रहा और ना ही उनके जीवन पर केवल उनके परिवार का अधिकार है। अब वो मध्यप्रदेश के जननायक हैं और उनका जीवन मध्यप्रदेश की प्रगति के लिए अत्यंत मूल्यवान है।

समझ तो यह भी नहीं आ रहा कि उनकी सुरक्षा में मौजूद अधिकारियों ने उन्हें इसकी अनुमति कैसे दे दी। क्यों उन्हें अगले दो घंटे के लिए अपनी निगरानी में नहीं ले लिया गया। यदि केवल हथियार लेकर आसपास घूमना ही सुरक्षा ऐजेंसियों का कर्तव्य रह गया है तो हटा देनी चाहिए ऐसी सुरक्षा।

सवाल और भी बहुत हैं परंतु लव्वोलुआब केवल एक कि विषय गंभीर है, सीएम को इस बचपने के लिए क्षमा मांगनी चाहिए एवं उनके साथ मौजूद नेताओं व सुरक्षा ऐजेंन्सियों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वो सीएम को ऐसे कदम उठाने से रोकें, आवश्यक हो तो बलपूर्वक रोक दें। मध्यप्रदेश के हित में यह अतिआवश्यक भी है।

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