Head:- धूमिल हो रहा है शिवराज सिंह चौहान का आभामंडल: आजतक का दावा

धूमिल हो रहा है शिवराज सिंह चौहान का आभामंडल: आजतक का दावा

भोपाल। साल 2005 में मध्‍य प्रदेश का मुख्‍यमंत्री बनने के बाद से शिवराज सिंह ने अपनी छवि जमीन से जुड़े हुए ईमानदार और विकास उन्‍मुख नेता के तौर पर बनाई है. लेकिन अब ऐसा लगता है कि कई विवादों के चलते उनके सुशासन के दावों की हवा निकलने लगी है। यह दावा न्यूज चैनल आजतक ने अपनी एक रिपोर्ट में किया है।

जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव का समय नजदीक आता जा रहा है वैसे-वैसे चौहान के लिए हालात और ज्‍यादा खराब होते जा रहे हैं. इस साल के अंत तक राज्‍य में चुनाव होने है और उसके बाद आम चुनाव भी हैं. विडंबना यह है कि यह विपक्ष का कमाल नहीं है, बल्कि उनके अपने मंत्री और करीबी ही बीजेपी को इस चुनावी साल में पीछे धकेल रहे हैं.

कहीं ले ना डूबे याराना

लेक्‍चरर से खनन उद्योगपति बने सुधीर शर्मा से पिछले साल इनकम टैक्‍स अधिकारियों ने एक डायरी जब्‍त की थी. इस डायरी से खुलासा हुआ कि सुधीर के संबंध दो वरिष्‍ठ कैबिनेट मंत्रियों से हैं, जिनमें संस्‍कृति, पब्लिक रिलेशन्‍स और उच्‍च शिक्षा मंत्री लक्ष्‍मीकांत शर्मा तथा ऊर्जा मंत्री राजेंद्र शुक्‍ला शामिल हैं. सुधीर ने तथाकथित रूप से इन दोनों मंत्रियों और बीजेपी के कई अन्‍य नेताओं की हवाई यात्राओं का खर्च उठाया. हाल ही में राज्‍य कांग्रेस ने दावा किया था कि माइनिंग किंग सुधीर शर्मा ने ही पिछली बार चौहान के चुनाव का सारा खर्चा उठाया था.

इस खुलासे पर राज्‍य के बीजेपी अध्‍यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर का कहना है, 'कांग्रेस मध्‍य प्रदेश में अपनी जमीन खो रही है इसलिए अब वह केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग कर वापस अपनी पुरानी हरकतों पर उतर आई है. आयकर विभाग ने मंत्रियों को पूछताछ के लिए नहीं बुलाया, इससे साफ है कि जो डायरी मिली है उसमें कोई दम नहीं है.'

राज्‍य विधानसभा में विपक्ष के नेता अजय सिंह के मुताबिक, 'आईटी की रिपोर्ट में बीजेपी, आरएसएस के नेताओं और उनके करीबियों की पोल खुल गई है. मुख्‍यमंत्री को दोनों मंत्रियों को निलंबित कर देना चाहिए.'

भोपाल के बिल्‍डर दिलीप सूर्यवंशी के साथ भी शिवराज सिंह के रिश्‍ते संदेह के घेरे में हैं. साल 2012 में छापे के दौरान इनकम टैक्‍स अधिकारियों ने सूर्यवंशी के पास से कुछ ऐसे दस्‍तावेज बरामद किए थे, जिनसे पता चलता है कि उन्‍हें विदेश से करीब 140 करोड़ रुपये मिले हैं.

यह मामला अब प्रवर्तन निदेशालय यानी कि ईडी के पास है. ईडी के एक वरिष्‍ठ अधिकारी मुताबिक मामले की जांच मनी लॉन्ड्रिंग एक्‍ट के तहत की जाएगी. उन्‍होंने यह भी बताया कि सूर्यवंशी को दक्षिण अफ्रीका की एक फर्म से ये रुपये मिले थे.

अवैध खनन

अवैध खनन एक ऐसा मुद्दा है जो आगामी चुनाव में शिवराज सिंह चौहान को बैकफुट पर धकेल सकता है. मुख्‍यमंत्री के भाई का नाम अवैध खनन से जुड़ता रहा है. एक सरकारी टीचर और शिवा कॉर्पोरेशन के मालिक नरेंद्र सिंह चौहान मुख्‍यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र बुधनी में तथाकथित रूप से खनन रैकेट चला रहे हैं. हाल ही में एक एसडीएम ने शिवा कॉर्पोरेशन को नोटिस भेजने की हिम्‍मत दिखाई और एक हफ्ते के भीतर ही उनका ट्रांसफर कर दिया गया. यही नहीं नर्मदा के चारों ओर बालू का अवैध खनन जारी है और जो कोई भी इसे रोकने की कोशिश करता है उसे 'चुप' करा दिया जाता है.

किसान का बेटा, जिसने जीता जनता का दिल

अकसर कहा जाता है कि अगर कोई शख्‍स बीजेपी की पीएम पद की उम्‍मीदवारी की दौड़ में नरेंद्र मोदी को पछाड़ सकता है तो वह शिवराज सिंह चौहान हैं. चौहान को जमीन से जुड़े हुए नेता के तौर पर जाना जाता है.

चौहान ज्‍यादा तकनीकि प्रेमी नहीं हैं और उन्‍होंने हाल ही में माइक्रोब्‍लॉगिंग साइट ट्विटर पर अपना एकाउंट बनाया है. लेकिन वह लोगों से निजी तौर पर मिलना ज्‍यादा पसंद करते हैं.

वह समाज के उपेक्षित वर्गों के उत्‍थान के लिए सुझाव और नीतियों पर चर्चा करने के लिए नियमित रूप से पंचायत लगाते हैं. पिछले सात सालों में उन्‍होंने ऐसे 35 सत्रों की अध्‍यक्षता की है.

शिवराज सिंह चौहान साल 2005 में बाबूलाल गौर को सत्ता से उखाड़कर मुख्‍यमंत्री बने थे. तब किसान के इस बेटे ने किसानों को ब्‍याज मुक्‍त कर्ज, गेहूं उत्‍पादकों के लिए बोनस और बीपीएल परिवारों को बिजली बिल से छूट जैसी कल्‍याणकारी योजनाओं को लागू कर हर किसी को सकते में ला दिया था. इसका परिणाम यह हुआ कि मध्‍य प्रदेश कृषि के क्षेत्र में 18 फीसदी विकास दर के साथ भारत में अव्‍वल रहा.

56 वर्षीय चौहान अपने विनम्र स्‍वभाव के लिए जाने जाते हैं. लोग उनकी इसलिए भी प्रशंसा करते हैं कि वो अपने कामों का बखान नहीं करते फिरते. फिर चाहे वह मुख्‍यमंत्री कन्‍या दान और लड़की बचाओ आंदोलन ही क्‍यों ना हो. उनकी रणनीति है, 'सरकार तभी अच्‍छा करती है जब जनता की भागीदारी होती है'. और वह लोगों की भागीरदारी सुनिश्चित करने की पूरी कोशिश करते हैं.

हालांकि भ्रष्‍ट मंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई ना करने की वजह से उनके सुशासन पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं. लेकिन उनकी लोकप्रियता पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ा. वह बहुत कम ही बीजेपी के हिंदुत्‍व का राग अलापते हुए सुनाई देते हैं और उनका विश्‍वास संपूर्ण विकास में है.

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