राकेश दुबे@प्रतिदिन। पूर्व सेनाध्यक्ष वी के सिंह द्वारा यह खुलासा कि सेना से कश्मीर के मंत्री गुप्त धनराशियाँ प्राप्त करते थे, कोई सनसनी खेज खबर नहीं है |
प्रशासन सेना पुलिस और राज्य सरकारों के पास विधिवत तरीके से बजट स्वीकृत कर ऐसी राशियाँ प्राप्त और खर्च की जाती हैं, जिनका कोई अंकेक्षण नहीं होता है | इसे पूरी तरह नियमित राशि की संज्ञा दी जाती है | इसके विपरीत इससे कई गुना अधिक वह काली राशि होती है, जिनसे राजनीतिक दलों के कार्यालय चलते हैं |
यही एक बड़ा कारण है जो राजनीतिक दल अपने को सूचना के अधिकार से मुक्त रखना चाहते थे | बहुत ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है | मध्यप्रदेश की बात ले ले | भारतीय पुलिस सेवा से सेवा निवृत एक वरिष्ठ अधिकारी {नाम न लेने की शर्त } ने बताया की प्रदेश के सत्तारूढ़ और प्रतिपक्ष के राजनीतिक कार्यालयों का खर्च परिवहन और आबकारी विभाग द्वारा एकत्रित काले धन से चलता है | एक दूसरे पर नूराकुश्ती की तरह आरोप लगाने वाले इन दलों को अपना खर्च जग जाहिर करना चाहिए |
राजनीतिक दल चुनाव के पूर्व और पश्चात बड़े उद्योगपतियों के साथ उन लोगों से भी चंदा लेते हैं , जिनके कारोबार वैध नहीं है | ऐसे लोग इन दलों की टिकिट पर विधायक और सांसद भी बन जाते हैं | कुल मिलाकर अंत में प्रदेश या देश का नुकसान होता है | राजनीतिक दल पहले खुद पारदर्शी बने फिर जनता से चंदा मांगे | पांच रूपये के कूपन और सदस्यता राशि का हिसाब देकर सुशासन की बात करने का हक होगा अन्यथा नहीं |
- लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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