राकेश दुबे@प्रतिदिन। देश की राजनीति अभी टोपी राग से नहीं उबरी है | भोपाल में २५ सितम्बर को टोपी का कवच और चुनौती दोनों एक साथ दिखाई देने के मंसूबे राजनीतिक दलों ने बांध लिए हैं| अभी तक किसने पहनी और किसने नहीं पहनी की बात थी अब तो सभा में टोपी लगाकर और बुर्का पहनकर आने की गुजारिश की जा रही है |
सभा का आकर्षण गुजरात के मुख्यमंत्री और एन डी ए के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी है | देश में टोपी अध्याय की शुरुआत गुजरात से हुई थी और अब मध्यप्रदेश में चुनौती बन गई है |
चुनौती देने वाले कांग्रेस नेता और पूर्व सांसद गुफरान-ए-आजम ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को अजीब सी उलझन में फंसा दिया है | गुफरान ने चुनौती दी है कि “शिवराज भोपाल में नरेंद्र मोदी को टोपी पहना कर दिखाएं” मोदी और टोपी की कहानी इतनी लम्बी हुई कि नीतीश कुमार को बिहार में टोपी पहन कर दिखाना पड़ा और भोपाल में शिवराज को टोपी लग गई |
अब सवाल यह टोपी हो या बुर्का अथवा रामनामी चादर यह सब भारतीय समाज में प्रतिष्ठा सूचक वस्तुएं है | क्या चुनाव के पहले या उसके बाद उनका इस तरह प्रयोग सामजिक प्रतिष्ठा की अवमानना नहीं है ? टोपी पहनना और टोपी पहनाना आम बोलचाल की भाषा में सम्मानजनक अर्थ नहीं रखते हैं | चुनाव के दौरान ऐसी किसी सभा में वेशभूषा विशेष का आग्रह किसी अच्छी मानसिकता का परिचय नहीं है और ऐसी चुनौती और अपेक्षा तो और भी गलत है| चुनाव प्रदेश और देश के विकास के मुद्दों पर हो| ये टोपीबाज़ी का खेल देश के लिए खतरनाक है, संविधान के विरुद्ध भी| क्योंकि यह चुनाव को निष्पक्ष नहीं रहने देगा |