इंदौर। मालवा-निमाड़ के कई दिग्गज नेताओं की हालत मालवी के प्रसिद्ध कवि भावसार बा के चर्चित पात्र ‘रामाजी’ की तरह हो गई है। दिग्गज तैयार तो हुए थे चुनावी रेल में बैठने के लिए, लेकिन टिकट ही नहीं मिला। दौड़ में पीछे और कद में छोटे कार्यकर्ताओं ने जिस तरह टिकट हासिल किए, उसे लेकर गली-चौपाल में एक ही चर्चा है- रामाजी रई ग्या न रेल जाती री..।
अविभाजित मप्र के संगठन मंत्री रहे कृष्णमुरारी मोघे जिन्होंने कभी प्रदेश के 320 टिकटों पर मुहर लगाई, उन्हें एक टिकट के लिए आखिर तक तरसाकर दूसरे को उम्मीदवार बना दिया गया। गुरुवार रात तक टिकट का इंतजार हुआ, लेकिन वे इससे वंचित रह गए। दिल्ली के नेताओं के आश्वासन के बावजूद मोघे को टिकट नहीं देने से कई नेता हैरान रह गए। रतलाम के कद्दावर नेता हिम्मत कोठारी को भी संगठन ने कोई तवज्जों नहीं दी। निर्दलीय मैदान पकडऩे के लिए गुस्से में रैली निकाली, लेकिन रास्ते में रोते हुए खुद की रेल से ही उतर गए।
इंदौर-3 से आखिर तक पूर्व विधायक गोपीकृष्ण नेमा पिछले परफॉर्मेंस और सुषमा स्वराज के दम पर टिकट की आस लगाए बैठे थे। सुषमा के ही दम पर खातेगांव से तीन बार के विधायक ब्रजमोहन धूत चौथी दफा टिकट की आस लगाए बैठे थे। बदनावर के पूर्व विधायक खेमराज पाटीदार को भी पार्टी ने एक तरह से आराम करवाने का ही फैसला सुनाया। यहां भंवरसिंह शेखावत को पैराशूट से उतार दिया। उन्होंने दक्षिण से दो बार के विधायक रहे शिवनारायण जागीदार की भी टिकट की रेल हाथ से निकल गई।