राकेश दुबे@प्रतिदिन। मध्यप्रदेश में दोनों बड़े दल जिस एक मर्ज़ से जूझ रहे हैं , वह का बागियों की फौज | भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बड़े नेता इस बीमारी का इलाज खोज रहे हैं |
अत्यधिक आशा और पांच साल तक सेवा थल के बाद की यह निराशा कैसे दूर हो और इसका परिणाम सकारत्मक कैसे हो, दोनों की चिंता का विषय है | ये विद्रोही उम्मीदवार मतदान प्रतिशत तो पार्टी का कम करेंगे ही कुछ सीटें भी झमेले में पड़ सकती हैं | इसका लाभ सिर्फ उन्हें ही होगा जो जितके आयेंगे और कसी बड़े दल को समर्थन देंगे |
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान दो स्थानों से दावेदार हैं | कांग्रेस ने उनके विरुद्ध दोनों ही सीटों बुधनी और विदिशा में कोई दमदार उम्मीदवार नहीं उतारे हैं | विदिशा चुनाव क्षेत्र भाजपा के लिये वैसे भी राघव जी कांड के बाद चुनौती पूर्ण हो गया था | भाजपा को उस कालिख को मिटाने के लिए तगड़े उम्मीदवार की जरूरत थी | राजनीतिक दलों की आपसी नूराकुश्ती का इस चुनाव से बड़ा कोई उदाहरण नहीं हो सकेगा | जब मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष के सामने अत्यधिक कमजोर उम्मीदवार हो |
अपनी और अपनों की सीट के लिए समझौते और कुछ सीटों पर तय मापदंडों के विपरीत टिकट का वितरण ही दोनों दलों में असंतोष दिखा रहा है | विद्रोही उम्मीदवारों को समझाने के लिए भाजपा ने संघ की मदद ली है तो कांग्रेस अब निष्कासन की बात कर रही है | इस बार चुनाव मध्यप्रदेश में मजेदार हो गया है | वंशवाद, भतीजावाद और नूराकुश्ती से पूर्ण |