अजीतपाल यादव। अध्यापकीय आंदोलन को मंझधार में छोडकर म.प्र. विधानसभा चुनाव में विधायक पद हेतु किस्मत आजमा रहे राज्य अध्यापक संघ के प्रदेश अध्यक्ष मुरलीधर पाटीदार इन दिनों अध्यापकों के आक्रोश का केन्द्र बने हुए हैं।
इस बीच उनके कुछ समर्थक अध्यापकों ने इसे मुरलीधर पाटीदार का निजी निर्णय बताते हुए उनका बचाव करने की कोशिश की थी. जिसके कारण मामला और अधिक उग्र हो उठा है. ऐसे अध्यापकों की निंदा करते हुए एक खुले खत के माध्यम से अध्यापक संघों ने चेतावनी देते हुए पाटीदार के समर्थन पर सवालिया निशान खड़े किये हैं.
पत्र में ऐसे चाटुकार अध्यापकों को सम्बोधित करते हुए कहा गया है, की आप स्वयं अपने आप एक विरोधाभासी विचारधारा से जूझ रहे हैं.आप स्वयं बताए की भले ही राजनीती में जाने का यह फैसला नेताजी का निजी फैसला हो, लेकिन इस फैसले से अध्यापकों की आस्थाओं पर कितना दुष्प्रभाव पडा है, आप बताएं की
[१]जो अध्यापक विगत 17 वर्षों से अपने भविष्य के लिए नेताजी के हर आव्हान पर नौकरी दांव पर लगा कर आंदोलन में कूद पड़ने के लिए तत्पर रहता था..जो अपने बीबी बच्चों को माननीय नेताजी की तस्वीर भवसागर पार लगाने वाले देवताओं की तरह दिखाकर सुनहरे भविष्य के सपने बयाँ करता था.वो अध्यापक आज इस अकल्पनीय घटना से
कितना ठगा हुआ महसूस कर रहा होगा. ये निजी फैसला लेने का अधिकार आम अध्यापक
को हो सकता था, आपके नेताजी कोई आम अध्यापक नहीं थे,
[२]क्या इस फैसले से पूर्व उन्होंने आप जैसे तथाकथित अनुयायियों से चर्चा की थी, जो आज भी उनकी इस नीच और विश्वासघाती नीति की पैरोकारी कर रहे है.यदि नहीं ,तो इस घटना से क्या स्वयं आपको सदमा नहीं लगा.
[३] आपसी मतभेदों से परे केवल एक अध्यापक होने के कारण क्या आपको अन्य दूसरे नियमित कर्मचारियों के व्यंगात्मक टिप्पणियों का सामना नहीं करना पड़ा
[४]किसी सत्ताधारी पार्टी का विधायक का टिकट पाना इतना आसान नहीं होता, जिस अज्ञात दबाव का इस्तेमाल टिकट पाने में किया गया,क्या उस अज्ञात दबाव को निर्मित करने के लिए अध्यापक के हितों से समझौता नहीं किया गया. कोई मुख्यमंत्री उनकी शक्ल देखकर ही टिकट दे देगा क्या [वो भी वर्तमान विधायक का टिकट काटकर] यदि नेताजी विधायक बन भी गए, तो क्या हमेशा की तरह उनका अंधानुकरण करते हुए हमें भी मास्टरी छोडकर भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर लेनी चाहिए
[५] विगत १३ अप्रेल से हड़ताल खत्म करके नेताजी किधर गायब हुए, आंदोलन से विरत होकर वे किस शैतानी जुगाड में थे, कहाँ थे ,क्या कर रहे थे,किसे साथ लेकर चल रहे थे,
[६]किश्तों का फार्मूला किसका था. 22 सितम्बर के प्रस्तावित धरने का विरोध किसने किया था. जिन लोगों ने विगत 6 माह में आन्दोलन का प्रयास किया था, उनका विरोध किसने किया था. बंद कमरे में केवल यही अकेले जाकर क्यों बात करते थे.२३००/ की बढौतरी का विरोध करने वाले ७०० की किश्त पर क्या सोचकर राजी हुए. अध्यापकीय आंदोलन छोडकर सत्ता में शामिल होने का उनका प्रयास ठीक वैसा ही है,जैसा आजादी की लड़ाई बीच में छोडकर महात्मा गांधी ईस्ट इण्डिया कम्पनी की कोई नौकरी लेकर ब्रिटेन में जा बसे, क्या तब वे देशद्रोही करार नहीं दिए जाते. तो फिर गद्दार को गद्दार कहने पर आपको दर्द क्यों हो रहा है..आज भी आप लोग संगठन के बजाए किसी व्यक्ति विशेष के मोहपाश से बंधे हुए हैं.और इसका कोई विशिष्ट कारण क्या है......यदि आपके पास इन सवालों के उत्तर हो, तो प्रदेश के सारे अध्यापकों के समक्ष बताने का कष्ट करें..अथवा मुरलीधर पाटीदार की पैरोकारी करना बंद करें.
अजीतपाल यादव
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